भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में देश को बताया कि सरकार छठ को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कराने के लिए प्रयास कर रही है। छठ पूजा दीवाली के बाद मनाई जाती है। यह खासकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है। अब देश-विदेश में रहने वाले लोग जहां रहते हैं, वहां भी इसको बहुत धूमधाम से मनाते हैं। इसके पहले 2021 में दुर्गा पूजा को UNESCO लिस्ट में शामिल किया गया था। 1 दिसंबर 2016 में भी योग को इस सूची में शामिल किया गया था। इस बारे में जानना जरूरी है कि इन लिस्ट में शामिल होने से स्थल को क्या फायदा मिलता है?
प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने लिखा, 'सूर्यदेव को समर्पित छठ महापर्व बिहार की सांस्कृतिक परंपरा का भव्य और दिव्य उत्सव है। मुझे यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि हमारी सरकार इस महापर्व को UNESCO की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कराने के प्रयासों में जुटी है।'
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बताते चलें कि भारत में अब तक कुल 43 यूनेस्को साइट हैं। इनमें 35 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित (कंचनजंगा) स्थल शामिल हैं। 43वीं जगह असम का चराईदेव मोईदाम है। भारत की सबसे पहले शामिल जगहों में आगरा का किला, अजंता और एलोरा की गुफाएं एवं ताजमहल हैं, जिन्हें 1993 में UNESCO की लिस्ट में शामिल किया गया था।
क्या है UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट?
UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज साइट उन सांस्कृतिक और/या प्राकृतिक स्थलों को कहते हैं जो दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यूनेस्को इन जगहों को लोगों की साझा विरासत के रूप में पहचानता है और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाने के उद्देश्य से काम करता है। इन स्थलों को एक अंतरराष्ट्रीय संधि, यूनेस्को विश्व धरोहर सम्मेलन, 1972 के तहत कानूनी संरक्षण प्राप्त है। इनमें बहुत पुराने स्मारक, आर्किटेक्चर और वाइल्ड लाइफ जीव के रहने वाले स्थान जैसी कई तरह की विरासत शामिल किए जाते हैं।
UNESCO लिस्ट में शामिल करने की प्रक्रिया
सरकार जो भी संबंधित मंत्रालय या संस्था हो उसके माध्यम से एक डोजियर तैयार करती है। इस डोजियर में उसका पूरा महत्व समझाया जाता है। इन डॉक्यूमेंट के माध्यम से अन्य देशों से मदद मांगी जाती है। नामांकन को यूनेस्को की संबंधित विभाग के सामने प्रस्तुत किया जाता है। कमेटी यह मूल्यांकन करती है कि वह यूनेस्को के मानदंडों (जैसे सामुदायिक भागीदारी, सांस्कृतिक महत्व, और संरक्षण की आवश्यकता) को पूरा करती है या नहीं। इस प्रक्रिया में 18 से 24 महीने लग जाते हैं।
त्योहारों को शामिल करने का प्रोसेस
किसी देश को अपना त्योहार यूनेस्को लिस्ट में शामिल कराने के लिए देश के संबंधित विभाग के माध्यम से सबसे पहले उसे नामित किया जाता है। जैसे भारत में संस्कृति मंत्रालय, सरकार की ओर से इस काम को करता है। मंत्रालय इस मामले में एक डोजियर तैयार करता है जिसे यूनेस्को को दिया जाता है। इसके बाद यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अंतर सरकारी समिति इनकी समीक्षा करती है। मानदंडों को पूरा करने के बाद किसी भी त्योहार को इस लिस्ट में शामिल किया जाता है।
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UNESCO लिस्ट में शामिल होने का फायदा
UNESCO लिस्ट में शामिल होने से देशों को कई तरह से फायदे मिलते हैं। इससे साइट की वैश्विक पहचान बढ़ती है। यूनेस्को सूची में शामिल होने पर साइट को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों के तहत बचाव मिलता है। यूनेस्को और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों से तकनीकी और वित्तीय सहायता मिलती है, खासकर उन स्थानों के लिए जो खतरे में हैं। वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में मान्यता मिलने से टूरिज्म बढ़ता है, जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर इंडस्ट्री को फायदा मिलता है।
इससे लोगों को अपनी विरासत को समझने और उसको बचाने के लिए प्रेरित करती है। इन साइट को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है, जिससे अवैध गतिविधियों जैसे अवैध निर्माण, माइनिंग या नुकसान से बचाव मिलता है।