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मोनोपोली और कंपीटिशन का खेल जिसमें फंस गया Apple! समझें पूरी कहानी

अमेरिका की न्यू जर्सी की फेडरल कोर्ट ने Apple के खिलाफ एंटीट्रस्ट केस चलाने की इजाजत दे दी है। यह केस अमेरिकी सरकार के जस्टिस डिपार्टमेंट की ओर से दाखिल किया गया है।

apple iphone

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

अमेरिकी टेक कंपनी Apple मुश्किल में पड़ गई है। अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट की ओर से Apple के खिलाफ दाखिल एंटीट्रस्ट केस को आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी है। जस्टिस डिपार्टमेंट ने 15 महीने पहले यह केस दाखिल किया था। Apple ने इस केस को खारिज करने की मांग की थी। हालांकि, फेडरल कोर्ट ने Apple की इस अपील को खारिज कर दिया और एंटीट्रस्ट केस को आगे बढ़ाने की इजाजत दे दी।


जस्टिस डिपार्टमेंट ने मार्च 2024 में Apple के खिलाफ यह केस दाखिल किया था। जस्टिस डिपार्टमेंट ने Apple पर 'मोनोपोली' का इल्जाम लगाया है। आरोप है कि Apple ने अपने प्रोडक्ट्स को इस तरह से डिजाइन किया है, जो यूजर्स को दूसरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स यूज करने से रोकता है। हालांकि, Apple ने इन सभी आरोपों को खारिज किया है। 


अब न्यू जर्सी के फेडरल जज जेवियर नील्स ने Apple के खिलाफ इस केस को चलाने की इजाजत दे दी है। इसके लिए उन्होंने एक डेडलाइन भी सेट कर दी है। हालांकि, Apple के खिलाफ इस केस का ट्रायल 2027 से शुरू होने की उम्मीद है। यानी, इस मामले में Apple के खिलाफ ट्रायल शुरू होने में अभी दो साल का वक्त है।

 

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Apple ने ऐसा क्या किया है, जिस कारण सरकार ने ही उसके खिलाफ केस कर दिया? और इसका आम यूजर्स से लेकर कंपनी तक पर क्या असर पड़ेगा? समझते हैं लेकिन उससे पहले जानते हैं कि यह 'एंटीट्रस्ट कानून' क्या है?

क्या है एंटीट्रस्ट कानून?

दरअसल, अमेरिका में एक कानून है, जो कंपनियों की 'मोनोपोली' को रोकती है। इसे ही 'एंटीट्रस्ट लॉ' या 'कंपीटिशन लॉ' कहा जाता है। इस कानून को इसलिए लाया गया था, ताकि कोई भी कंपनी बाजार में 'एकछत्र राज' कायम न कर सके। सभी कंपनियों को बराबरी का मौका मिले और बाजार में हेल्दी कंपीटिशन बना रहे। इसका असर सिर्फ दूसरी कंपनियों पर ही नहीं पड़ता, बल्कि आम यूजर्स पर भी पड़ता है, क्योंकि उन्हें सर्विसेस यूज करने के लिए ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है।


अमेरिका में अगर कोई भी कंपनी ऐसा कुछ करती है, जिससे उसकी मोनोपोली बने या कंपीटिटर्स को दबा दे तो जस्टिस डिपार्टमेंट उसके खिलाफ एंटीट्रस्ट केस दाखिल कर सकती है।


इस मामले में जस्टिस डिपार्टमेंट ने Apple के खिलाफ न्यू जर्सी की फेडरल कोर्ट में एंटीट्रस्ट केस दाखिल किया है। जस्टिस डिपार्टमें ने आरोप लगाया है कि Apple ने अपने यूजर्स को iPhone में ही बांध दिया है, जिसने दूसरी कंपनियों को बाजार से बाहर कर दिया है।

 

 

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Apple पर क्या आरोप लगे हैं?

Apple के खिलाफ जस्टिस डिपार्टमेंट ने 21 मार्च 2024 को न्यू जर्सी की अदालत में केस दायर किया था। यह केस 16 राज्यों के अटॉर्नी जनरल की तरफ से दाखिल किया गया है। 


आरोप लगाया है कि Apple ने कई सारी पाबंदियां लगा दी हैं, जिसने उसे स्मार्टफोन मार्केट में गैरकानूनी तरीके से मोनोपोली बनाने में मदद की है।


अटॉर्नी जनरल मैरिक बी. गार्लैंड ने कहा था, 'कोई कंपनी एंटीट्रस्ट कानून को तोड़ रही है तो उसकी कीमत यूजर्स को नहीं चुकानी चाहिए।' डिप्टी अटॉर्नी जनरल लीसा मोनेको ने कहा था, 'इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कंपनी कितनी ताकतवर है या कितनी पॉपुलर है। कोई भी कंपनी कानून से ऊपर नहीं हो सकती।'


Apple के खिलाफ दाखिल मुकदमे में जस्टिस डिपार्टमेंट ने कहा था, 'जब कोई कंपनी बाजार में कंपीटिशन को खत्म करने में लगी रहती है तो उसका खामियाजा अमेरिकियों और हमारी अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता है।' इस मुकदमे में Apple पर आरोप लगाया गया था कि कंपनी मोनोपोली बनाने और स्मार्टफोन मार्केट को प्रभावित करने की कोशिश कर रही है।

 

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Apple ने ऐसा क्या किया?

Apple पर आरोप है कि उसने iPhone का ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया है, जो यूजर्स को उसमें ही 'लॉक' कर देता है। यानी बांध देता है। जस्टिस डिपार्टमेंट का कहना है कि Apple ने अपने iPhone और दूसरे प्रोडक्ट्स के जरिए एक ऐसा 'Walled Garden' बनाया है, जिससे दूसरी कंपनियों और यूजर्स को नुकसान हो रहा है।


आसान भाषा में समझें तो 'Walled Garden' एक ऐसा डिजिटल इकोसिस्टम होता है, जिसका पूरा कंट्रोल एक कंपनी के पास होता है। मतलब Apple ने iPhone और बाकी प्रोडक्ट्स में एक ऐसा सिस्टम तैयार किया, जिससे कोई बाहरी कंपनी या डेवलपर्स बिना उसकी मंजूरी के नहीं आ सकता।


जस्टिस डिपार्टमेंट की ओर से दाखिल मुकदमे में Apple पर आरोप है कि उसनेः-

  • Apple ने अपने App Store पर कई सारे 'सुपर ऐप्स' को ब्लॉक कर दिया, जिससे यूजर्स के लिए iPhone से दूसरे फोन में स्विच करना मुश्किल हो।
  • Apple ने क्लाउड-स्ट्रीमिंग सर्विसेस को ब्लॉक कर दिया। यह सर्विसेस यूजर्स को बिना महंगे फोन खरीदे हाई-एंड गेम्स और ऐप्स यूज करने की सुविधा देता है। Apple ने ऐसा इसलिए किया, ताकि यूजर्स को iPhone को खरीदने पड़ें।
  • Apple पर आरोप है कि वह क्रॉस-प्लेटफॉर्म मैसेजिंग की क्वालिटी को जानबूझकर खराब करता है। अगर कोई एंड्रॉइड यूजर iPhone यूजर को मैसेज करता है तो iMessage पर मैसेजिंग का अनुभव उतना अच्छा नहीं होता, जिससे लोगों को iPhone खरीदना पड़ता है।
  • Apple दूसरी कंपनियों की स्मार्टवॉच को iPhone के साथ अच्छे तरीके से काम करने से रोकता है। दूसरी कंपनियों की स्मार्टवॉच iPhone के साथ ठीक तरह से काम नहीं कर पातीं। इससे Apple Watch यूजर्स का iPhone से जुड़े रहना मजबूरी बन जाता है।
  • Apple थर्ड पार्टी डिजिटल वॉलेट ऐप्स को iPhone पर 'tap-to-pay' जैसी सुविधा देने से रोकता है। इससे यूजर्स को Apple Pay का इस्तेमाल करना पड़ता है और वे दूसरी पेमेंट सर्विसेस का पूरा फायदा नहीं उठा पाते।

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इन सब  पर Apple का क्या है कहना?

Apple ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों को खारिज किया है। उसका दावा है कि यह मुकदमा बेबुनिया और गलत तथ्यों पर आधारित है। कंपनी का कहना है कि वह अपनी लड़ाई अब अदालत में लड़ेगी।


पिछले साल जस्टिस डिपार्टमेंट के मुकदमे पर जवाब देते हुए Apple ने कहा था कि अगर वह हार जाता है तो इससे ऐसी तकनीक बनाने में बाधा आएगी, जिसकी उम्मीद यूजर्स करते हैं।

 

Apple ने दावा किया था कि वह अपने यूजर्स को बेहतर सिक्योरिटी और प्राइवेसी देता है। अगर थर्ड पार्टी ऐप्स आती हैं तो इससे यूजर्स की प्राइवेसी और सिक्योरिटी को खतरा हो सकता है। कंपनी ने यह भी कहा था कि यह मुकदमा उसके अस्तित्व और उन सिद्धांतों को खतरे में डालता है जो उसे कंपीटिटिव मार्केट में अलग बनाते हैं।

इस सबका असर क्या पड़ेगा?

  • यूजर्स परः अगर जस्टिस डिपार्टमेंट यह केस जीत जाता है तो iPhone यूजर्स को भी Android यूजर्स की तरह एक्सपीरियंस मिल सकता है। थर्ड पार्टी ऐप्स और क्रॉस मैसेजिंग प्लेटफॉर्म बेहतर हो सकते हैं।
  • कंपनी परः अगर Apple यह केस हार जाती है तो उसे अपने बिजनेस मॉडल में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं। ऐप स्टोर की पॉलिसी बदलनी होगी और थर्ड-पार्टी ऐप्स को ज्यादा फ्रीडम देनी होगी। 
  • टेक कंपनियों परः सिर्फ Apple ही नहीं, बल्कि कई टेक कंपनियों पर एंटीट्रस्ट केस चल रहे हैं। अगर Apple हार जाती है तो गूगल और अमेजन जैसी कंपनियों को भी अपनी पॉलिसी में बदलाव करना पड़ सकता है।

क्या इतनी ही है Apple की मुसीबत?

Apple के खिलाफ सिर्फ यही एक केस नहीं है, बल्कि और भी कई केस हैं। Apple अपने ऐप स्टोर पर थर्ड-पार्टी ऐप्स से 15 से 30% तक कमीशन लेता था। इसी साल अप्रैल में एक फेडरल कोर्ट ने Apple के खिलाफ सिविल कंटेम्प्ट ऑर्डर जारी किया था, जिससे कंपनी पर iPhone पर इन-ऐप ट्रांजेक्शन से कोई भी फीस लेने पर रोक लगा दी थी। 


इतना ही नहीं, Apple पर एक और एंटीट्रस्ट केस चल रहा है। यह गूगल से जुड़ा है। दरअसल, Apple में iPhones में गूगल को डिफॉल्ट सर्च इंजन बनाने के लिए सालाना 20 अरब डॉलर मिलता है। कोर्ट यह तय करेगी कि गूगल की मोनोपोली को खत्म करने के लिए Apple के साथ हुई डील को रद्द किया जाए या नहीं।

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