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Jane Street ने 90 पर्सेंट निवेशकों को चूना लगाया? पढ़िए पूरी कहानी

इन दिनों जेन स्ट्रीट कंपनी खूब चर्चा में है। जेन स्ट्रीट पर लगे आरोपों के बाद कंपनी का कहना है कि उसने कुछ गलत नहीं किया है और वह कानूनी रास्ते तलाश रही है।

Jane Street

Jane Street

आज की कहानी एक पहेली से शुरू होती है। एक ऐसी पहेली जो भारतीय शेयर बाज़ार के दिल में छुपी है। सोचिए, कोई कंपनी जानबूझकर 7,500 करोड़ रुपये का घाटा करे और उसी घाटे की आड़ में 36,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का मुनाफ़ा कमा ले। यह कहानी है अमेरिका की एक बेहद ताकतवर ट्रेडिंग फ़र्म जेन स्ट्रीट की। यह कहानी है टेक्नोलॉजी, लालच और चालाकी की और यह कहानी है उस रेगुलेटर की, जिसने इस पूरे खेल का पर्दाफ़ाश किया।

 

आज हम समझते हैं कि जेन स्ट्रीट कौन है? उसने ऐसा क्या किया जिसे बाज़ार का सबसे बड़ा मैनिपुलेशन कहा जा रहा है और कैसे गुरुग्राम के एक ऑफ़िस से भारतीय निवेशकों की जेब पर हज़ारों करोड़ का डाका डाला गया? इस कहानी को समझने के लिए, हमें पहले इसके दो मुख्य किरदारों को जानना होगा। एक जेन स्ट्रीट और दूसरा सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी)।

जेन स्ट्रीट की पूरी कहानी क्या है?

 

जेन स्ट्रीट की शुरुआत साल 2000 में न्यूयॉर्क में कुछ गणित के जीनियसों ने की थी। ये ऐसे लोग थे जिन्हें स्टॉक मार्केट से ज़्यादा दिलचस्पी मैथमेटिकल पहेलियां सुलझाने में थी। उन्होंने एक ऐसी ट्रेडिंग फ़र्म बनाई जो इंसानी भावनाओं पर नहीं, बल्कि शुद्ध गणित, प्रोबेबिलिटी और कंप्यूटर एल्गोरिदम पर चलती है। ये अपने खुद के पैसे से ट्रेड करते हैं, जिसे प्रोप्राइटरी ट्रेडिंग कहते हैं। मतलब, यह आपका या मेरा पैसा नहीं बल्कि अपने अरबों डॉलर दांव पर लगाते हैं। इनकी कंपनी काफ़ी गोपनीय है। ये सिर्फ़ दुनिया के सबसे तेज़ दिमाग वाले गणितज्ञों, फिज़िसिस्ट और कंप्यूटर साइंटिस्ट को काम पर रखते हैं। फ़ाइनेंस की डिग्री यहां उतनी ज़रूरी नहीं, जितना की पहेलियां सुलझाने की क़ाबिलियत। आज की तारीख़ में जेन स्ट्रीट दुनिया की सबसे बड़ी मार्केट मेकर्स में से एक है। ये रोज़ाना खरबों रुपये के सौदे करते हैं। ये सिर्फ़ पैसे से पैसा नहीं कमाते, ये पैसा बनाने के नए-नए गणितीय मॉडल बनाते हैं।

 

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SEBI को समझिए

 

हमारी कहानी का दूसरा किरदार है SEBI (सेबी)। सीधे शब्दों में कहें तो यह भारतीय शेयर बाज़ार की पुलिस है। सेबी का काम है बाज़ार में धोखाधड़ी रोकना, जेन स्ट्रीट जैसी बड़ी मछलियों पर नज़र रखना और आप जैसे छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करना। यह सुनिश्चित करती है कि खेल नियमों के अनुसार ही खेला जाए। अब बात करते हैं उस मैदान की, जहां यह सारा खेल खेला गया।

 

यह खेल हुआ F&O मार्केट में। यह शेयर बाज़ार का वह कोना है, जो किसी कसीनो की तरह है। यहां पल में पैसा डबल भी हो सकता है और ज़ीरो भी। सेबी की अपनी रिपोर्ट बताती है कि F&O में ट्रेड करने वाले 10 में से 9 लोग पैसा गंवाते हैं। FY23-24 में ही, 86 लाख से ज़्यादा भारतीय ट्रेडर्स ने F&O में 75,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाया। एक तरफ़ जहां 90% भारतीय पैसा गंवा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ़ जेन स्ट्रीट इसी F&O से हज़ारों करोड़ कमा रही थी। सवाल है, कैसे? क्या वे बाक़ी सबसे ज़्यादा होशियार थे या वे खेल ही बेईमानी से खेल रहे थे? इस 'कैसे' का जवाब जानने के लिए, आपको F&O का मूलमंत्र समझना होगा।

 

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चलिए, F&O को एक आसान कहानी से समझते हैं। हमारी कहानी में एक किसान है जो गेहूं उगाता है और एक बिस्किट बनाने वाली कंपनी। किसान को डर है कि 3 महीने बाद जब उसकी फसल तैयार होगी तो गेहूं का दाम गिर जाएगा। वहीं, बिस्किट कंपनी को डर है कि गेहूं का दाम बढ़ जाएगा, जिससे उसका मुनाफ़ा कम हो जाएगा।

इस डर को मिटाने के लिए वे दो तरह के कॉन्ट्रैक्ट कर सकते हैं:

 

1. फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (पक्का सौदा): किसान और कंपनी आज ही एक सौदा करते हैं कि 3 महीने बाद, कंपनी किसान से 100 किलो गेहूं 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से ही खरीदेगी। यह एक पक्का वादा है। 3 महीने बाद बाज़ार में गेहूं का भाव चाहे 15 रुपये हो या 25 रुपये, दोनों को यह सौदा पूरा करना ही पड़ेगा। यहां वादा निभाना मजबूरी है।

2. ऑप्शन्स कॉन्ट्रैक्ट (अधिकार का सौदा): फ्यूचर्स के विपरीत, ऑप्शंस में वादा नहीं, बल्कि एक अधिकार खरीदा या बेचा जाता है। यह दो तरह का होता है:

कॉल ऑप्शन: यह बिस्किट कंपनी के लिए है। कंपनी किसान के पास जाकर कहती है, 'मैं तुमसे 20 रुपये में गेहूं खरीदने का सिर्फ़ 'अधिकार' चाहती हूं, वादा नहीं।' इस अधिकार के लिए कंपनी किसान को एक छोटा, नॉन-रिफंडेबल बुकिंग अमाउंट देती है, जिसे प्रीमियम कहते हैं।

अगर गेहूं का भाव 25 रुपये हो गया: कंपनी अपने अधिकार का इस्तेमाल करेगी और 20 रुपये में सस्ता गेहूं खरीद लेगी।
अगर गेहूं का भाव 15 रुपये हो गया: कंपनी अपना अधिकार छोड़ देगी और बाज़ार से और सस्ता खरीद लेगी। उसका नुकसान सिर्फ़ प्रीमियम का होगा।

पुट ऑप्शन (बेचने का अधिकार): यह किसान के लिए है। किसान को डर है कि दाम गिर जाएगा तो वह भी एक ऑप्शन खरीद सकता है - बेचने के अधिकार का ऑप्शन, जिसे 'Put Option' कहते हैं। वह एक छोटा सा प्रीमियम देकर यह अधिकार खरीदता है कि चाहे दाम कितना भी गिर जाए, वह अपने गेहूं को 20 रुपये के तय दाम पर बेच सकेगा।

 

अगर दाम 15 रुपये हो जाता है: तो किसान अपना अधिकार इस्तेमाल करेगा और अपनी फसल को नुक़सान से बचाकर 20 रुपये में बेचेगा।
अगर दाम 25 रुपये हो जाता है: तो किसान अपना अधिकार भूलकर बाज़ार में महंगा बेचेगा। उसका नुकसान सिर्फ दिए गए प्रीमियम का होगा।

तो अब आप समझ गए। कॉल ऑप्शन तेज़ी पर दांव है और पुट ऑप्शन मंदी पर। अब असली कहानी पर आते हैं। जेन स्ट्रीट ने क्या किया?  जेन स्ट्रीट ने इसी पुट ऑप्शन को अपना मुख्य हथियार बनाया।

इस खेल में:
चालाक बिस्किट कंपनी थी = जेन स्ट्रीट
गेहूं था = BANKNIFTY इंडेक्स (भारत के 12 सबसे बड़े बैंकों का समूह)
छोटे किसान/व्यापारी थे = आप और हम जैसे रिटेल निवेशक
और यह सारा खेल खेला गया महीने के एक ख़ास दिन, जिसे कहते हैं Expiry Day;

 

Expiry Day वह दिन होता है जब महीने भर के सारे F&O कॉन्ट्रैक्ट्स की मियाद खत्म होती है। इस दिन ट्रेडर्स को अपने सौदे पूरे करने पड़ते हैं, प्रॉफ़िट या लॉस बुक करना पड़ता है। इस वजह से बाज़ार में बहुत ज़्यादा उतार-चढ़ाव और घबराहट होती है। जेन स्ट्रीट ने इसी घबराहट का फ़ायदा उठाने का प्लान बनाया।

 

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उनका प्लान तीन कदमों में काम करता था:

 

कदम 1: सुबह का खेल - बाज़ार में झूठी तेज़ी पैदा करना। Expiry Day की सुबह, जैसे ही बाज़ार खुलता, जेन स्ट्रीट अपने अरबों रुपये के फंड से BANKNIFTY के फ्यूचर्स धड़ल्ले से खरीदना शुरू कर देती। सोचिए, जब इतनी बड़ी मछली अचानक ख़रीदारी करने लगती है, तो क्या होता है? बाज़ार में एक आर्टिफ़िशियल यानी बनावटी डिमांड पैदा होती है। बाक़ी ट्रेडर्स और एल्गोरिदम को लगता है कि बाज़ार में कोई बड़ी पॉजिटिव ख़बर आई है और बैंक के शेयर ऊपर जाने वाले हैं। सब लोग उस चढ़ती ट्रेन में सवार हो जाते हैं। रिटेल निवेशक भी ख़रीदारी शुरू कर देते हैं। देखते ही देखते, BANKNIFTY का इंडेक्स तेज़ी से ऊपर चढ़ जाता है।

कदम 2: दोपहर का खेल - चुपचाप उल्टी चाल चलना एक तरफ़ तो जेन स्ट्रीट सबको ये दिखा रही थी कि वह बाज़ार के ऊपर जाने पर दांव लगा रही है लेकिन पर्दे के पीछे, उसी समय, वह एक बिल्कुल उल्टी चाल चल रही थी। जब सब लोग तेज़ी की उम्मीद कर रहे थे, जेन स्ट्रीट BANKNIFTY के गिरने पर दांव लगा रही थी। उन्होंने बड़ी मात्रा में 'Put Options' ख़रीद लिए। जैसा कि हमने समझा, पुट ऑप्शन की क़ीमत तब बढ़ती है जब बाज़ार गिरता है। यह उनका छिपा हुआ तुरुप का इक्का था। उन्हें एक ऐसा राज़ पता था जो बाज़ार में किसी और को नहीं पता था। राज़ यह था कि ये जो तेज़ी है, यह नकली है और इसे गिराने वाला भी ख़ुद जेन स्ट्रीट ही होगा।

कदम 3: शाम का खेल - बाज़ार को गिराना और मुनाफ़े की कटाई। अब आता है खेल का आख़िरी और सबसे क्रूर हिस्सा। दिन के आख़िरी कारोबारी घंटों में, जब Expiry नज़दीक आ जाती, जेन स्ट्रीट अचानक अपने सुबह खरीदे हुए सारे फ्यूचर्स को भारी मात्रा में बेचना शुरू कर देती। बाज़ार में अचानक बिकवाली की बाढ़ आ जाती। जो इंडेक्स सुबह तेज़ी से ऊपर गया था, वह अब उतनी ही तेज़ी से धड़ाम से नीचे गिर जाता। जिन छोटे निवेशकों ने तेज़ी पर दांव लगाया था, उनके सौदे भारी नुक़सान में कटने लगते हैं। बाज़ार में हाहाकार मच जाता है।

 

अब जेन स्ट्रीट का हिसाब समझिए:


दिखने वाला घाटा: फ्यूचर्स को नुक़सान में बेचने की वजह से उन्हें ₹7,496 करोड़ का घाटा हुआ। बाहर से देखने पर यही लगता।
असली, छिपा हुआ मुनाफ़ा: लेकिन बाज़ार के गिरने से उनके गुप्त रूप से खरीदे हुए 'Put Options' की क़ीमत रॉकेट की तरह बढ़ गई। उस सौदे से उन्होंने ₹43,289 करोड़ का महा-मुनाफ़ा कमाया।
नतीजा: लगभग ₹36,000 करोड़ का नेट प्रॉफ़िट। यह एक ज़ीरो-सम-गेम था। जेन स्ट्रीट ने जो 36,000 करोड़ कमाए, वह किसी और ने गंवाए थे। यह पैसा उन लाखों रिटेल ट्रेडर्स की जेब से निकला था, जो बाज़ार की इस नकली चाल को समझ ही नहीं पाए। जेन स्ट्रीट का यह खेल कई महीनों तक चलता रहा। हर Expiry पर लगभग एक जैसा पैटर्न लेकिन जब कोई चीज़ बार-बार एक ही तरीक़े से हो, तो वह शक पैदा करती है और सेबी के सर्विलांस सिस्टम ने इस पैटर्न को पकड़ लिया। सेबी की 105 पन्नों की जांच रिपोर्ट ने इस पूरे खेल का परत-दर-परत पर्दाफ़ाश किया।

सेबी की जांच के मुख्य बिंदु

1. चेतावनी को नज़रअंदाज़ किया: सेबी ने खुलासा किया कि उन्होंने फरवरी 2025 में ही जेन स्ट्रीट को उनके संदिग्ध ट्रेडिंग पैटर्न के बारे में चेतावनी दी थी और इसे बंद करने को कहा था लेकिन जेन स्ट्रीट ने इस चेतावनी को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया और अपना खेल जारी रखा।
2. जानबूझकर किया गया मैनिपुलेशन: रिपोर्ट ने साफ़ कहा कि 18 ट्रेडिंग दिनों में बाज़ार का उतार-चढ़ाव सामान्य नहीं था। यह जेन स्ट्रीट द्वारा जानबूझकर, सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया मैनिपुलेशन था।
3. नियमों का उल्लंघन: जेन स्ट्रीट ने अपनी भारतीय ब्रांच का इस्तेमाल करके विदेशी निवेशकों को इंट्रा-डे ट्रेडिंग करने में मदद की, जो नियमों के ख़िलाफ़ है। उन्होंने जानबूझकर कुछ सौदों में घाटा दिखाया ताकि टैक्स और नियमों से बचा जा सके।

जब चेतावनी का असर नहीं हुआ तो SEBI ने आख़िरकार जुलाई 2025 में अपना सबसे बड़ा हथौड़ा चलाया।

 

SEBI की सजा

 

ऐक्शन 1: जेन स्ट्रीट और उसकी सभी भारतीय इकाइयों पर भारतीय शेयर बाज़ार में ट्रेड करने से तत्काल रोक (बैन) लगा दी गई।
ऐक्शन 2: ग़लत तरीक़े से कमाए गए ₹4,843 करोड़ के मुनाफ़े को ज़ब्त करने का आदेश दिया गया और उसे एक एस्क्रो अकाउंट में डालने को कहा गया।
ऐक्शन 3: मामले की पूरी जांच होने तक कंपनी की गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखने का आदेश दिया।

 

SEBI की इस सख़्त कार्रवाई से बाज़ार में हड़कंप मच गया। कई ब्रोकरेज फ़र्मों के शेयर गिर गए लेकिन छोटे निवेशकों को एक संदेश मिला कि कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है। कहानी यहां ख़त्म नहीं होती। जेन स्ट्रीट ने एक बयान जारी करके कहा है कि उन्होंने कोई नियम नहीं तोड़ा है और उनकी ट्रेडिंग स्ट्रैटजी पूरी तरह से क़ानूनी है। उनका कहना है कि वे सेबी के इस फ़ैसले को सिक्योरीज अपीलीय ट्राइब्यूनल (SAT) में चुनौती देंगे। SAT एक स्पेशल कोर्ट है जहां सेबी के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ अपील की जा सकती है। अब यह लड़ाई सेबी के दफ़्तर से निकलकर अदालत के गलियारों में लड़ी जाएगी लेकिन इस केस ने कुछ बेहद ज़रूरी सवाल खड़े कर दिए हैं:
क्या भारत के स्टॉक एक्सचेंज, NSE और BSE, इस मैनिपुलेशन को पहले ही नहीं रोक सकते थे? 
वे इस पैटर्न को क्यों नहीं पकड़ पाए?
जेन स्ट्रीट तो पकड़ी गई। ऐसी और कितनी बड़ी मछलियां हैं जो पर्दे के पीछे यही खेल-खेल रही हैं और किसी को कानों-कान ख़बर नहीं?

क्या टेक्नोलॉजी इतनी आगे निकल गई है कि रेगुलेटर हमेशा एक क़दम पीछे ही रहेंगे?

 

जेन स्ट्रीट की कहानी एक छोटे से स्टार्टअप से दुनिया के सबसे ताक़तवर ट्रेडिंग हाउस बनने की है लेकिन यह कहानी इस बात की भी है कि कैसे असीमित लालच और टेक्नोलॉजी का ग़लत इस्तेमाल पूरे सिस्टम को खोखला कर सकता है। यह केस भारतीय बाज़ार और उसके निवेशकों के लिए एक वेक-अप कॉल है। सेबी का फ़ैसला तारीफ़ के क़ाबिल है क्योंकि इतनी बड़ी विदेशी फ़र्म के ख़िलाफ़ ऐसा स्टैंड लेना हिम्मत का काम है।

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