इजरायल और ईरान के बीच सैन्य तनाव काफी बढ़ गया है और इसने वैश्विक तेल बाजार को अस्थिर कर दिया है। हालांकि, भारत ने जून 2025 में रूस से तेल खरीद को काफी बढ़ा दिया है। रूस से भारत की यह खरीद इतनी ज्यादा हो गई है कि यह अब सऊदी अरब, इराक, कुवैत और यूएई जैसे मध्य पूर्व देशों से कुल मिलाकर किए गए इम्पोर्ट से भी ज्यादा हो गई है।
13 जून को इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद अमेरिका ने भी ईरान में तीन जगहों पर सीधे हमले किए। इसके कारण वैश्विक न सिर्फ तेल की आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ी है, बल्कि हिंद महासागर और खाड़ी क्षेत्र में जहाजों की आवाजाही पर भी असर पड़ा है। भारत की बात करें तो उसने मई में रूस से करीब 1.96 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया था, जो जून में बढ़कर 2 से 2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया है। यह मात्रा पिछले दो सालों में सबसे ज्यादा है।
भारत ने कब रूस से बढ़ाया तेल आयात?
वैसे तो भारत मध्य पूर्व के देशों से तेल खरीदता आया है लेकिन 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने तेल पर बड़ी छूट देना शुरू किया, जिसे भारत ने एक अवसर की तरह देखा। पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते यूरोपीय बाजारों में तेल की मांग कम हो गई और भारत ने वहां से सस्ते दाम पर तेल खरीदना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया और कुल तेल आयात में इसकी हिस्सेदारी 40 से 44 प्रतिशत तक पहुंच गई।
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एक रिपोर्ट में सामने आया है कि अमेरिका से भी भारत का तेल आयात बढ़ा है। मई में यह संख्या 2.8 लाख बैरल प्रतिदिन थी, जो जून में बढ़कर 4.39 लाख बैरल प्रतिदिन हो गई। वहीं मध्य पूर्व से कुल आयात लगभग 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक सिमट गया है, जो पहले की तुलना में कम है। कारण यह है कि खाड़ी क्षेत्र में हाल की सैन्य गतिविधियों और अस्थिरता के कारण जहाज मालिक वहां खाली टैंकर भेजने से हिचक रहे हैं। खाड़ी क्षेत्र में खाली टैंकरों की संख्या घटकर 69 से सिर्फ 40 रह गई है और ओमान की खाड़ी से MEG (Middle East Gulf) की ओर जाने वाले संकेत भी लगभग आधे रह गए हैं।
स्ट्रेट ऑफ होरमुज भी है अहम
ईरान और ओमान के बीच स्थित स्ट्रेट ऑफ होरमुज की भूमिका बहुत अहम है। यह रास्ता सऊदी अरब, ईरान, इराक, कुवैत और यूएई जैसे देशों के तेल और गैस निर्यात का अहम रास्ता है। ईरान ने अगर इस रास्ते को बंद करने की धमकी को अमल में लाया, तो इससे वैश्विक आपूर्ति पर भारी असर पड़ेगा। भारत अपने कुल तेल और गैस का लगभग 40 प्रतिशत और 50 प्रतिशत हिस्सा इसी पानी के रास्ते से इम्पोर्ट करता है। ईरान की ओर से इस रास्ते बंद करने की संभावना पर चर्चा तो है लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि इसकी संभावना बहुत कम है।
Kpler की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान खुद 96 प्रतिशत तेल निर्यात Kharg Island के जरिए इसी स्ट्रेट से करता है। वह खुद यदि इस मार्ग को बंद कर दे, तो उसे खुद भी भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। साथ ही चीन, जो ईरान से सबसे ज्यादा तेल खरीदता है और खाड़ी इलाके से 47 प्रतिशत कच्चा तेल मंगाता है, वह भी इस स्थिति से प्रभावित होगा। इसके अलावा, ईरान ने पिछले कुछ सालों में सऊदी अरब और यूएई से अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश की है। ऐसे में इन देशों के तेल व्यापार को नुकसान पहुंचाना उसके अपने राजनयिक प्रयासों को विफल कर सकता है।
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क्या भारत पर भी होगा असर?
जहां तक भारत के ईरान से कच्चे तेल के आयात की बात है, तो 2018 तक भारत ईरान से प्रतिदिन लगभग 4.5 से 5 लाख बैरल तेल खरीदता था। यह संबंध काफी मजबूत था लेकिन अमेरिका द्वारा 2019 में ईरान पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के बाद भारत को यह आयात बंद करना पड़ा। तब से भारत का ईरान से तेल आयात शून्य के आसपास आ गया है। हालांकि कुछ बार भारत ने मानवीय आधार पर सीमित मात्रा में तेल खरीदा लेकिन वह व्यावसायिक पैमाने पर नहीं था।