भारत में बीते पांच वर्षों में निवेश का तरीका तेजी से बदल रहा है। अब लोग निवेश के पुराने तरीके, जैसे बैंक की फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी), की बजाय म्यूचुअल फंड और शेयरों में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव देश के आर्थिक विकास, ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव और लोगों की बढ़ती समझ के कारण हो रहा है। आइए जानते हैं कि आखिर भारतीयों का निवेश पैटर्न कैसे बदला और इसके क्या मायने हैं।
RBI द्वारा जारी ‘बेसिक स्टैटिस्टिकल रिटर्न्स’ रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में जहां भारतीय घरों की कुल वित्तीय बचत में एफडी का हिस्सा 50.54% था, वहीं 2025 के अंत तक यह घटकर 45.77% रह गया। जिसका मतलब है कि लोगों की एफडी में रुचि 5 साल में लगभग 5% घटी है।
वित्तीय क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि इस गिरावट की एक बड़ी वजह यह है कि एफडी में मिलने वाला ब्याज कम होता है और जब महंगाई दर अधिक हो, तो वास्तविक मुनाफा और भी घट जाता है।
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म्यूचुअल फंड में बूम
एफडी में गिरावट के साथ ही म्यूचुअल फंड का ग्राफ तेजी से ऊपर गया है। मई 2021 में म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या 10 करोड़ थी, जो अप्रैल 2025 तक बढ़कर 23 करोड़ हो गई है। म्यूचुअल फंड की कुल प्रबंधन संपत्ति (AUM) 2020 में 22.26 लाख करोड़ रुपए थी, जो अब बढ़कर करीब 69.50 लाख करोड़ रुपए हो गई है- यानी तीन गुना से ज्यादा बढ़ोतरी।
इसकी वजह यह भी है कि म्यूचुअल फंड लंबी अवधि में एफडी की तुलना में बेहतर रिटर्न दे सकते हैं। साथ ही SIP जैसे विकल्पों ने आम लोगों को छोटी राशि से निवेश की सुविधा दी है।
ब्याज दरों का असर
कोविड महामारी के दौरान, मार्च 2020 से मई 2022 तक, RBI ने रेपो रेट को 1.15% तक घटाया था। बाद में इसमें फिर से 2.25% की बढ़ोतरी हुई। फरवरी 2025 से फिर से ब्याज दरों में कटौती का सिलसिला शुरू हुआ और अब तक 1% की कटौती की जा चुकी है।
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कम ब्याज दरों का मतलब है कि एफडी से मिलने वाला रिटर्न भी कम हो गया। इसलिए निवेशकों ने म्यूचुअल फंड और शेयरों की ओर रुख किया।
लोग कर रहे हैं जोखिम भरे निवेश
एक RBI की स्टडी में यह बताया गया है कि, 2019 में जहां 15.7% परिवारों ने जोखिम भरे निवेश किए थे, 2022 में यह संख्या 17.8% हो गई। इसका मतलब है कि लोग अब थोड़ा जोखिम लेकर ज्यादा रिटर्न पाने के लिए तैयार हैं। इसी तरह, घरेलू वित्तीय बचत में बैंक जमा का हिस्सा 2021 में ग्रॉस नेशनल एक्सपेंडिचर इनकम (GNDI) का 6.2% था, जो 2024 में घटकर 4.5% रह गया। जबकि शेयर और डिबेंचर का हिस्सा 0.5% से बढ़कर 0.9% हो गया।