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सोशल मीडिया पर RBI और SBI के बीच हुई भिडंत, क्या रही वजह?

सोशल मीडिया लिंक्डइन पर आरबीआई और एसबीआई के बीच भिड़ंत हो गई। आरबीआई के एक अधिकारी ने एसबीआई पर अपनी रिपोर्ट की नकल करने का आरोप लगाया।

Representational Image। Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

दीवाली के त्योहार के बीच एक ऐसी खबर आई जो पूरे बैंकिंग और अर्थ जगत को चौंका गई। भारत के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के बीच सोशल मीडिया पर खुली बहस हो गई। यह बहस इतनी बढ़ी कि दोनों संस्थानों के प्रोफेशनल्स एक-दूसरे पर सवाल उठा रहे हैं।

 

आरबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एसबीआई के इकोनॉमिस्ट पर चोरी का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि एसबीआई की रिपोर्ट में आरबीआई की रिपोर्ट की नकल की गई है। यह बात आरबीआई के मौद्रिक नीति विभाग में सहायक महाप्रबंधक के पद पर काम करने वाले इकोनॉमिस्ट सार्थक गुलाटी ने लिंक्डइन पर लिखी।

 

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सबूत दिखाने की कोशिश

गुलाटी ने अपने पोस्ट में कहा, 'हम इकोनॉमिक रिसर्च करने वाले लोग मूल बातों, स्रोत बताने और ईमानदारी पर भरोसा करते हैं। लेकिन यह देखकर दुख होता है कि एसबीआई की ‘इकोरैप’ रिपोर्ट में आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट (एमपीआर) के बड़े-बड़े हिस्से को बिल्कुल वैसा ही लिख दिया गया है, बिना किसी स्रोत का जिक्र किए।’ उन्होंने पैराग्राफ, चार्ट और विवरण को सबूत के तौर पर पेश करने की कोशिश की।

 

यह विभाग आरबीआई की डिप्टी-गवर्नर पूनम गुप्ता के नेतृत्व में काम करता है। गुलाटी ने अप्रैल और अक्टूबर की दोनों रिपोर्टों की तुलना की। उन्होंने कहा कि अक्टूबर की इकोरैप में भी आरबीआई की अक्टूबर रिपोर्ट जैसा ही ढांचा और कॉन्टेंट है। हालांकि गुलाटी ने अपने प्रोफाइल पर साफ लिखा है कि ये उनकी निजी राय है, संस्थान की नहीं।

SBI ने खारिज किया आरोप

दूसरी तरफ एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष की टीम बनाती है। घोष बहुत बड़े नाम हैं। वे 16वें वित्त आयोग के सदस्य हैं और प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद में भी हैं। उनकी रिपोर्ट अक्सर सरकारी नीतियों का समर्थन करती है।

 

एसबीआई ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। बैंक ने कहा कि ये आरोप 'दुखद और सनसनी फैलाने वाले' हैं। इसके जवाब में घोष की टीम के सदस्य तपस परिडा ने लिंक्डइन पर लिखा, 'हमारा समीकरण और तरीका आरबीआई से बिल्कुल अलग है। हमारी रिसर्च रिसर्च मूल और रचनात्मक है।'

 

यह पूरा विवाद 'स्थानिक मुद्रास्फीति अभिसरण' नाम के विषय पर है। आसान भाषा में कहें तो अलग-अलग इलाकों में महंगाई की दर समय के साथ एक समान स्तर पर आती है, यही प्रक्रिया है।

लंबे समय का डेटा

परिडा ने समझाया कि आरबीआई ने लंबे समय का डेटा देखा, जबकि एसबीआई ने सिर्फ पिछले 12 महीनों का डेटा लिया ताकि वर्तमान महंगाई की स्थिति समझी जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी रिपोर्ट की एक तालिका में स्रोत के रूप में 'आरबीआई, एनएसओ और एसबीआई रिसर्च' का जिक्र है।

 

यह घटना इसलिए चौंकाने वाली है क्योंकि आरबीआई का एक मध्यम स्तर का अधिकारी देश के सबसे बड़े बैंक की रिसर्च टीम पर खुलकर सवाल उठा रहा है। एसबीआई को वैश्विक निवेशक लगभग सरकार जितना ही महत्वपूर्ण मानते हैं।

 

प्रसिद्ध इकोनॉमिस्ट अजीत रणदे ने भी इस पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, 'किसी की सोच चुराना मूल लेखक के लिए तारीफ हो सकती है, लेकिन रिसर्च जगत में यह गंभीर उल्लंघन है। स्रोत बताना, उद्धरण देना और संदर्भ देना बुनियादी नियम हैं। उम्मीद है इकोरैप इस पर सफाई देगी।'

SBI ने क्या कहा?

परिडा ने एसबीआई का बचाव करते हुए एक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि एसबीआई ने ट्रंप के नेतृत्व वाली फेडरल रिजर्व की नीति पर रिसर्च किया था, उसके बाद हार्वर्ड के एक प्रोफेसर ने भी उसी विषय पर काम किया। उनका कहना था कि विचारों का आदान-प्रदान रिसर्च को बेहतर बनाता है। कोई भी संस्था या व्यक्ति विचारों पर एकाधिकार नहीं जता सकता।

 

उन्होंने लिखा, 'यह झगड़ा या पहले-बाद का सवाल नहीं है। यह दिखाता है कि साझा विचार वैश्विक रिसर्च को कैसे मजबूत करते हैं। किसी को भी विचारों पर कब्जा करने का हक नहीं है।'

 

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यह बहस सिर्फ दो लिंक्डइन पोस्ट तक सीमित रही। दोनों संस्थान प्रतिष्ठित हैं, इसलिए यह लंबा विवाद बनने की संभावना नहीं है। लेकिन इसकी तीखापन और अचानक प्रकट होना सबको हैरान कर गया।

 

आर्थिक जगत में कुछ लोग इसे पेशेवर प्रतिद्वंद्विता या वरिष्ठ अधिकारियों के बीच मतभेद का नतीजा मान रहे हैं। लेकिन एक बात साफ है – रिसर्च में ईमानदारी बरतना और स्रोत बताना बहुत जरूरी है।

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