भारत के कई बड़े और अमीर परिवारों ने पिछले कुछ सालों में अपने बच्चों को विदेश में संपत्ति खरीदने, पढ़ाई के लिए खर्च जुटाने या अमेरिकी EB-5 वीजा जैसी योजनाओं के लिए विदेशी मुद्रा भेजने की रणनीति अपनाई थी। इस योजना में वह अपनी विदेश में कमाई गई संपत्ति को 'गिफ्ट' के रूप में अपने बच्चों को भेज रहे थे। हालांकि, अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस तरीके पर आपत्ति जताई है।
RBI का क्या कहना है?
भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार, एक भारतीय नागरिक हर साल 2.5 लाख डॉलर तक विदेश भेज सकता है। इसे लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत अनुमति मिली है। इस राशि से विदेश में निवेश, प्रॉपर्टी खरीद या रिश्तेदारों के रखरखाव में खर्च किया जा सकता है। अगर निवेश से कमाई होती है या संपत्ति बिकती है, तो उस पैसे को या तो वापस भारत लाना होता है या फिर उसे फिर से निवेश करना होता है।
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RBI के 2022 के संशोधित नियमों के अनुसार:
'कोई भी विदेश से मिला, अर्जित या बचा हुआ धन, यदि वापस निवेश नहीं किया गया है, तो उसे 180 दिनों के भीतर भारत वापस लाना होता है और अधिकृत बैंक को सौंपना अनिवार्य है।'
हालांकि कुछ परिवार ऐसा नहीं कर रहे थे। वह निवेश बेचने के बाद विदेश में ही धन अपने बच्चों को गिफ्ट कर रहे थे, जो अब एनआरआई (NRI) बन चुके हैं।
ये योजना कैसे काम कर रही थी?
परिवार का हर सदस्य सालाना 2.5 लाख डॉलर विदेश भेजता था। जब विदेश में निवेश से पैसा मिलता था (जैसे प्रॉपर्टी बेचने पर), उसे वापस भारत नहीं लाया जाता था। इसके बजाय, वह पैसा विदेश में रह रहे बच्चों को उपहार के रूप में दे दिया जाता था। इस तरह वे अपने LRS की सीमा को छुए बिना विदेशी संपत्ति बच्चों को ट्रांसफर कर रहे थे।
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अगर वह नियम के अनुसार पैसे को भारत लाकर फिर से गिफ्ट भेजते, तो उन्हें हर बार 2.5 लाख डॉलर की सालाना सीमा का पालन करना पड़ता और पूरी प्रक्रिया लंबी हो जाती। इस बचाव के लिए वह सीधे विदेश में पैसा ट्रांसफर कर रहे थे।
RBI को क्यों है आपत्ति?
RBI का मानना है कि इस तरीके से नियमों का उल्लंघन हो रहा है और इससे व्यक्तिगत लाभ लिया जा सके। नियम के अनुसार, विदेश से मिलने वाले धन का सही तरीका है- या तो उसे वापस लाएं या फिर से उसे निवेश करें। उसे गिफ्ट के नाम पर विदेश में ही देना, नियमों के खिलाफ है।