अमेरिका ने भारत से जाने वाली चीजों पर लगने वाले टैरिफ में 25 पर्सेंट की बढ़ोतरी कर दी है। इस टैरिफ के अलावा 25 पर्सेंट पेनाल्टी भी लगा दी गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि ऐसा करने की वजह है कि भारत लगातार रूस से तेल खरीदता जा रहा है जबकि अमेरिका और यूरोप के देशों ने रूस के तेल पर प्रतिबंध लगाया है। अब इस पर एक आम सवाल उठता है कि अगर रूस का तेल ही दिक्कत है तो हम रूस के बजाय किसी और से तेल क्यों नहीं खरीद लेते? सुनने में शायद यह एक आसान समाधान लगे लेकिन यह है बहुत टेढ़ा। इसकी बड़ी वजह है कि बीते कुछ साल में भारत की रिफाइनरी रूसी तेल के हिसाब से ढलती गई हैं और एक झटके में इसे बदल पाना संभव नहीं है। कुछ समय में बदलाव किया तो जा सकता है लेकिन इसकी एक बड़ी कीमत भारत की कंपनियों को चुकानी पड़ेगी।
लंबे समय से भारत सबसे ज्यादा तेल का आयात अरब के देशों से करता रहा था। भारत में आने वाले तेल में रूस की हिस्सेदारी बेहद कम थी। रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू होने से पहले भारत के तेल में रूस की हिस्सेदारी लगभग 2 पर्सेंट थी। युद्ध शुरू हुआ तो अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस के तेल पर प्रतिबंध लगा दिया और भारत को यहीं पर मौका मिला। भारत ने सस्ती कीमत पर रूसी तेल खरीदना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि सिर्फ 3 साल में भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी 19 गुना बढ़कर 38 पर्सेंट तक पहुंच गई है। यही वजह है कि रूस पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं...
यह भी पढ़ें- टैरिफ वॉर में भारत के किसान चुकाएंगे कीमत! डेटा से समझिए पूरी बात
रूस और भारत का तेल कारोबार
भारत की कई बड़ी तेल रिफाइनरी को कच्चा तेल इस समय रूस से मिल रहा है। Kpler ने अपनी रिपोर्ट 'US टैरिफ ऑन इंडियन इम्पोर्ट्स: इम्प्लीकेशन्स फॉर एनर्जी मार्केट्स एंड ट्रेड फ्लोस' में कहा है कि भारतीय रिफाइनरी रूस से आने वाले कच्चे तेल के बिना भी काम कर सकती हैं लेकिन इसका आर्थिक असर काफी ज्यादा होगा। Kpler के अनुमान के मुताबिक, भारत अगर रूस के अलावा अन्य देशों से तेल खरीदता है तो वह 5 डॉलर प्रति बैरल महंगा मिलेगा और इस तरह से सालाना 3 से 5 बिलियर डॉलर सालाना का खर्च बढ़ जाएगा। अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो इसकी यह खर्च 7 से 11 बिलियन डॉलर तक भी जा सकता है।
SBI रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में भारत जिन देशों से तेल खरीद रहा था उनमें रूस दूसरे नंबर पर था और इराक नंबर 1 पर था। 2023 में भी इराक नंबर 1 पर ही था लेकिन रूस नंबर 10 से नंबर 2 पर आ गया और 2025 में रूस नंबर 1 पर है और इराक नंबर 2 पर पहुंच गया है। दरअसल, रूस अपने तेल से मोटी कमाई करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद जब प्रतिबंध लगे तो रूस को ऐसे देशों की तलाश थी जो उसका तेल खरीद सकें। ऐसे में भारत और चीन जैसे देश सामने आए और रूस से जमकर तेल खरीदना शुरू कर दिया।
यह भी पढ़ें- 'देखते जाइए क्या होता है', भारत पर टैरिफ के बाद ऐसा क्यों बोले ट्रंप?
वित्त वर्ष 2025 में भारत ने रूस से 8.8 करोड़ टन कच्चा तेल खरीदा है और रूस भारत के लिए सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश बन गया है। अब अगर भारत रूस के बजाय किसी और देश से कच्चा तेल खरीदना चाहता है तो उसे 60 से 70 प्रतिशत तेल अरब के देशों से लेना होगा। इसके अलावा, अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से भी उसे तेल खरीदना होगा। भले ही ये देश भारत की तेल जरूरतों को पूरा कर पाएं लेकिन कीमत, गुणवत्ता और सप्लाई के मामले में रूस की बराबरी नहीं कर पाएंगे।
Nayara के उदाहरण से समझिए
भारत में आपने Nayara एनर्जी के पेट्रोल पंप देखे होंगे। यह कंपनी रूस के सहयोग से भारत में रिफाइनरी भी चलाती है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंधों के चलते इस कंपनी की चुनौतियां बढ़ गई हैं। वैश्विक स्तर पर शिपिंग हो, घरेलू रेगुलेशन से जुड़ी बाधाएं हों या फिर नेतृत्व में बदलाव, इस कंपनी को तमाम समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। यह कंपनी भारत की रिफाइनरी क्षमताओं में 8 पर्सेंट की हिस्सेदार है। भारत में दूसरी सबसे बड़ी प्राइवेट रिफाइनरी नायरा ही है और 6 हजार से ज्यादा पेट्रोल पंप इसी के पास हैं।
यह भी पढ़ें- 'आप भी तो रूस से कारोबार कर रहे हैं', ट्रंप की धमकी पर भारत का पलटवार
इन्हीं प्रतिबंधों का असर है भारत को अपना नेटवर्क बड़ा करना पड़ा है और अब भारत की कंपनियां लगभग 40 देशों से कच्चा तेल खरीदने लगी हैं। अब भारत गुयाना, ब्राजील और कनाडा जैसे देशों से भी तेल खरीदने लगा है।