मजबूरी या जरूरत! रूस का तेल भारत के लिए फायदे का सौदा क्यों?
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• NEW DELHI 04 Aug 2025, (अपडेटेड 05 Aug 2025, 6:07 AM IST)
फरवरी 2022 से पहले तक रूस से भारत सिर्फ 0.2% तेल खरीदता था। हालांकि, अब यह शेयर बढ़कर एक-तिहाई से भी ज्यादा हो गया है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
भारत और अमेरिका के बीच रूस के तेल को लेकर ठन गई है। रूस से तेल खरीदने पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इतने नाराज हो गए कि उन्होंने भारत पर 25% टैरिफ लगा दिया। ट्रंप ने सिर्फ टैरिफ ही नहीं लगाया है, बल्कि 'पेनाल्टी' लगाने का ऐलान भी किया है। टैरिफ और पेनाल्टी को लेकर तनाव था, तभी राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा कर दिया कि उनके सुनने में आया है कि भारत, रूस से तेल खरीदना बंद कर सकता है।
हालांकि, ट्रंप के इस दावे पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'आप जानते हैं कि हमारी ऊर्जा जरूरतों पर हम सारे हालात देखकर फैसला लेते हैं। बाजार में क्या उपलब्ध है और दुनिया में क्या स्थिति है, इसके आधार पर फैसला करते हैं।'
भारत पर 25% टैरिफ लगाने से पहले ट्रंप ने कई बार धमकाया था कि जो भी देश रूस से तेल खरीद रहे हैं, उन पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। अब तो ट्रंप ने यह आरोप भी लगा दिया है कि भारत सस्ते में रूस से तेल खरीदकर उसे बाहर बेच रहा है।
रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा भारत?
ट्रंप ने दावा करते हुए कहा था, 'मैंने ऐसा सुना है कि अब भारत, रूस से तेल नहीं खरीदेगा। मैंने बस सुना है, पक्का नहीं है। यह एक अच्छा कदम है, आगे क्या होता है, देखते हैं।'
हालांकि, ऐसा नहीं है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया है कि अभी कुछ बंद नहीं किया है। सूत्र ने कहा, 'यह लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट होते हैं। रातोरात तेल खरीदना बंद करना आसान बात नहीं है।'
रूस से तेल खरीदने को भारत ने वाजिब बताया है। एक दूसरे सूत्र ने कहा कि रूसी तेल के आयात से तेल की वैश्विक कीतमों में उछाल नहीं आई है। सूत्र का यह भी कहना है कि ईरान और वेनेजुएला के तेल पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन रूस के कच्चे तेल पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। रूस के तेल पर सिर्फ प्राइस कैप लगी हुई है और भारत उसी कीमत के अंदर कच्चा तेल खरीद रहा है। यूरोपियन यूनियन ने रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कैप लगा रखी है।
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रूस से कितना तेल खरीद रहा है भारत?
फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। इसके बाद रूस पर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए गए थे। रूस को आर्थिक चोट पहुंचाने के मकसद से उसके आयात पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे।
यूक्रेन से जंग शुरू होने से पहले तक भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा इराक और सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों से खरीदता था। तब रूस का हिस्सा सिर्फ 0.2% था। मई 2023 तक यह हिस्सा 40% से भी ज्यादा हो गया। भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल आयात करता है।
Kpler के मुताबिक, मई 2023 तक रूस से भारत हर दिन 21.5 लाख बैरल कच्चा तेल खरीद रहा था। जुलाई 2024 में भी रूस ने हर दिन 20 लाख बैरल कच्चा तेल भारत को सप्लाई किया था। तब भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा 41% था, जबकि इराक का 20% और सऊदी अरब का 11% था। वहीं, अमेरिका की हिस्सेदारी सिर्फ 4% थी।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, आज के समय में भारत अपनी जरूरत का एक तिहाई कच्चा तेल रूस से ही खरीद रहा है। रूस से अब भी हर दिन 17.5 लाख बैरल तेल आ रहा है। वहीं, इराक से औसतन 9 लाख और सऊदी अरब से 7 लाख बैरल तेल आ रहा है।
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लेकिन रूसी तेल क्यों है जरूरी?
भारत में हर दिन 52 लाख बैरल तेल की खपत होती है। इसका 85% तेल बाहर से आता है। भारत अब तक अपनी तेल जरूरतों के लिए खाड़ी देशों पर निर्भर था लेकिन अब रूस पर निर्भरता बढ़ रही है।
रूस और भारत, दोनों ही एक-दूसरे के लिए जरूरी हैं। वह इसलिए क्योंकि रूस प्रतिबंधों के बावजूद अपना तेल भारत को बेच रहा है, जबकि भारत को बाकी देशों सस्ता तेल रूस से मिल रहा है। दिसंबर 2022 में रूस के तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की कैप लगा दी थी। यानी, रूस अपना तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा नहीं बेच सकता। ऐसे में रूस ने तेल से कमाई जारी रखने के लिए भारत और चीन जैसे देशों का रुख किया।
प्रतिबंधों के कारण रूस ने अपना कच्चा तेल ब्रेंट क्रूड की कीमत से लगभग 40 डॉलर कम कीमत पर बेचा। रॉयटर्स के मुताबिक, जनवरी से सितंबर 2023 के बीच भारत ने औसतन 525.60 डॉलर प्रति मीट्रिक टन की कीमत पर रूसी तेल खरीदा था। एनालिटिक्स फर्म ICRA के मुताबिक, रूस से तेल खरीदने पर दो साल में भारत को लगभग 13 अरब डॉलर की बचत हुई है।
न्यूज एजेंसी PTI ने Kpler की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि भारत को अभी हर बैरल पर 5 डॉलर की छूट मिल रही है। अगर यह छूट खत्म होती है तो इससे भारत पर अरबों डॉलर का खर्च बढ़ जाएगा। भारत हर दिन औसतन 18 लाख बैरल तेल खरीदता है। अगर 5 डॉलर की छूट खत्म होती है तो इससे सालाना 9 से 11 अरब डॉलर तक खर्च बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं, रूसी तेल की सप्लाई में कमी आने से वैश्विक कीमतें और बढ़ती हैं तो लागत और खर्चा और भी ज्यादा हो सकता है।
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अमेरिका से भी तो तेल खरीद रहा है भारत
भारत सिर्फ रूस या खाड़ी देशों से ही तेल नहीं खरीदता, बल्कि अमेरिका से भी खरीदता है। आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका से होने वाले तेल का आयात काफी बढ़ गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी से जून के बीच भारत ने अमेरिका से हर दिन औसतन 2.71 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदा है। जबकि, पिछले साल इन्हीं 6 महीनों में अमेरिका से औसतन 1.8 लाख बैरल तेल खरीदा था। यानी, अमेरिका से कच्चे तेल का आयात लगभग दोगुना हो गया है।
न्यूज एजेंसी ANI ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि जून की तुलना में जुलाई में भारत ने अमेरिका से 23% ज्यादा तेल खरीदा है। इसने भारत के कच्चे तेल के आयात में अमेरिका की हिस्सेदारी को 3% से बढ़ाकर 8% कर दिया है।
खैर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को इस बात से दिक्कत है कि भारत, रूस से सस्ते में तेल खरीद रहा है और उस पैसे को रूसी राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन के खिलाफ जंग में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा, ट्रंप को इस बात से भी परेशानी है कि भारत, रूस से ज्यादा हथियार खरीदता है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटव (GTRI) के मुताबिक, 2024-25 में भारत ने 143 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया था। इसमें से 50.3 अरब डॉलर का तेल रूस से खरीदा था।
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