दिल्ली की 12 आरक्षित सीटों में से एक सीट बवाना है। 1993 से अभी तक तीनों प्रमुख पार्टियों को जीत मिलती रही है। बवाना गांव, बवाना जेल और ग्रामीण क्षेत्र के साथ-साथ उद्योगों के लिए मशहूर यह इलाका बाहरी दिल्ली में आता है। इस विधानसभा क्षेत्र की सीमाएं भी हरियाणा से लगती हैं। अक्सर गैंगवार की खबरें भी इसी क्षेत्र से आती रही हैं। मशहूर गैंगस्टर नीरज बवाना भी इसी बवाना गांव का निवासी रहा है। आज भी बवाना गैंग बेहद कुख्यात है और दिल्ली के आसपास के कई इलाकों में वह गाहे-बगाहे आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता रहता है। गंदगी, कनेक्टिविटी, टूटी सड़कें और अनधिकृत कॉलोनियां इस इलाके की भी समस्या हैं।
मौजूदा समय में यह सीट आम आदमी पार्टी (AAP) का कब्जा है। लगातार 2015 से चुनाव जीतती आ रही AAP ने अब तक के दो चुनाव और एक उपचुनाव में हर बार उम्मीदवार बदले हैं। इस बार मौजूदा विधायक जय भगवान को फिर से टिकट दिया है। इस सीट पर 2020 में तीनों पार्टियों के जो उम्मीदवार थे, वही तीनों फिर से अपनी-अपनी पार्टियों के उम्मीदवार हैं। इस विधानसभा में बवाना के अलावा सुल्तानपुर डबास गांव, पूठ खुर्द गांव, चांदपुर डबास गांव, सुलाहपुर माजरा, बरवाला गांव, प्रह्लादपुर बांगर, शाहबाद डेयरी, खेरागढ़ी, बेगमपुर, दरियापुर कलां, औचंदी गांव, नांगल ठकरान, मुंगेशपुर गांव, कटेवड़ा गांव, पंजाब खोर और जटखोर गांव जैसे इलाके आते हैं। MCD के कुल 6 वार्ड में से बीजेपी और AAP के पास 3-3 वार्ड हैं, ऐसे में इस बार काफी रोचक लड़ाई की उम्मीद है।
बवाना की समस्याएं क्या हैं?
दिल्ली के शहरी इलाके से बाहर होने, बहुत सारी इंडस्ट्री होने और टूटी सड़कों के चलते लोग हर दिन परेशान होते हैं। इसके अलावा देहात का इलाका होने की वजह से दिल्ली देहात की मांगें इस विधानसभा में भी हावी हैं। साथ ही, कई रास्तों पर स्ट्रीट लाइटें न होने और अन्य आपराधिक घटनाओं के चलते भी आम लोगों में डर का माहौल रहता है। बाहरी दिल्ली से दिल्ली के मुख्य इलाकों तक आने-जाने के लिए बस ही मुख्य सहारा है लेकिन टूटी सड़कों के चलते वह भी एक तरह से जी का जंजाल ही रहता है।
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2020 में क्या हुआ?
2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने रविंद्र कुमार को टिकट दिया था। वहीं, पार्षद रहे जय भगवान उपकार AAP में शामिल हो गए थे। AAP ने अपने मौजूदा विधायक राम चंदर का टिकट काटकर जय भगवान को उतारा। जय भगवान को 95 हजार से ज्यादा वोट मिले और वह चुनाव जीत गए। वहीं, रविंद्र कुमार 84 हजार वोट पाकर नंबर दो पर रहे और सुरेंद्र कुमार सिर्फ 12 हजार वोट पार नंबर तीन पर रहे।
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विधानसभा का इतिहास
1993 में बीजेपी इस सीट पर भी जीतने में कामयाब रही थी। हालांकि, 1998, 2003 और 2008 में कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार ने लगातार जीत हासिल की। 2013 में बीजेपी के गुगन सिंह ने AAP और कांग्रेस को हराकर जीत हासिल की थी लेकिन यही गुगन सिंह आगे चलकर AAP में चले गए। 2019 में वह AAP के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़े लेकिन हार के बाद फिर बीजेपी में लौट आए। 2015 में AAP ने वेद प्रकाश को चुनाव में उतारा। वेद प्रकाश ने तब बीजेपी में रहे गुगन सिंह को बड़े अंतर से हराया। हालांकि, 2017 में वेद प्रकाश खुद बीजेपी में चले गए और उपचुनाव हुए। इस उपचुनाव में AAP के राम चंदर ने बीजेपी में गए वेद प्रकाश को हरा दिया। 2020 का चुनाव आया तो AAP ने राम चंदर की जगह पर जय भगवान उपकार को टिकट दिया। बीजेपी ने रविंद्र कुमार और कांग्रेस ने अपने पुराने नेता सुरेंद्र कुमार पर एक बार फिर भरोसा जताया। नतीजा फिर से वही। जय भगवान जीते, रविंद्र कुमार नंबर 2 पर रहे और सुरेंद्र कुमार सिर्फ 12 हजार वोट पाकर नंबर तीन पर रहे। इस बार भी तीनों उम्मीदवार वहीं हैं।
जातिगत समीकरण
इस सीट पर सबसे ज्यादा 22 से 25 पर्सेंट लोग अनुसूचित जाति के हैं। उसके बाद लगभग 20 पर्सेंट जाट, 12 पर्सेंट मुस्लिम, लगभग 15 पर्सेंट पूर्वांचली और कुछ हद तक ब्राह्मण मतदाता भी रहे हैं। जातियों का यह संयोजन पिछले तीन चुनाव से AAP का फायदा करवाता रहा है। इस बार भी AAP को उम्मीद है कि दलित, मुस्लिम और पूर्वांचली मतदाताओं का संयोजन उसका काम आसान कर देगा।