रूठने मनाने के खेल में उलझी बिहार की राजनीति, किसको फायदा किसको नुकसान?
बिहार में अलग अलग पार्टियों के कई नेता रूठे हुए हैं, जिसकी वजह से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है।

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव । Photo Credit: Kabargaon
संजय सिंह, पटनाः इस बार के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दांव-पेच कुछ ज़्यादा ही तीखे हो गए हैं। पार्टियों के बड़े नेता रूठे बागियों को मनाने में जुटे हैं। इस मामले में बीजेपी को काफ़ी हद तक सफलता भी मिली है। जन सुराज और वीआईपी के उम्मीदवारों ने कुछ सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों को खुला समर्थन दिया है।
इधर, पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दो सीटों से नामांकन किया है। वहीं सीमांचल के कटिहार में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदलते नज़र आ रहे हैं। यहां बीजेपी उम्मीदवार और पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के खिलाफ बीजेपी के विधान परिषद सदस्य के बेटे भी मैदान में उतर आए हैं। उधर, तारापुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे बीजेपी प्रत्याशी व डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को वीआईपी ने आधिकारिक समर्थन दे दिया है।
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विधान परिषद सदस्य का बेटा मैदान में
कटिहार की राजनीति इन दिनों पूरी तरह उलझी हुई है। यहां बीजेपी के विधान परिषद सदस्य अशोक अग्रवाल और उनकी पत्नी उषा अग्रवाल, जो नगर निगम की मेयर हैं, दोनों सक्रिय राजनीति में हैं। अशोक अग्रवाल अपनी पत्नी को इस बार बीजेपी से टिकट दिलवाना चाहते थे।
पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद की उम्र अधिक हो जाने के कारण उनका टिकट कटना तय माना जा रहा था, लेकिन पार्टी ने भरोसा जताते हुए उन्हें फिर उम्मीदवार बना दिया। इससे नाराज़ होकर अशोक अग्रवाल के पुत्र सौरभ अग्रवाल ने वीआईपी के टिकट पर नामांकन कर दिया। उनके मैदान में आने से बीजेपी की स्थिति यहां कमजोर होती दिख रही है।
बताया जाता है कि बीजेपी के ही एक वरिष्ठ वैश्य नेता पूर्णिया से टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। नतीजतन यह 'उलट-पुलट' वाली राजनीति उन्हीं के इशारे पर मानी जा रही है। उनका उद्देश्य सीमांचल में खुद को बड़ा वैश्य नेता स्थापित करना बताया जा रहा है।
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सिंघम लड़ेंगे दो जगहों से चुनाव
राज्य के चर्चित पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे इस बार मुंगेर के जमालपुर और अररिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं। इन दोनों जगहों पर उन्होंने बतौर आईपीएस कार्य किया था। मूल रूप से महाराष्ट्र के निवासी लांडे ने सेवा से त्यागपत्र देने के बाद हिंद सेना नाम की पार्टी बनाई थी, लेकिन उसे चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिली।
उनकी इच्छा थी कि उनकी पार्टी प्रदेश की कई सीटों से उम्मीदवार उतारे, पर सफलता न मिलने पर उन्होंने खुद दो स्थानों से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया। उनका चुनावी एजेंडा भ्रष्टाचार और पलायन के मुद्दों पर केंद्रित है। सेवा काल में वे एक ईमानदार और सख़्त पुलिस अधिकारी के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। युवाओं में वे 'सिंघम' नाम से लोकप्रिय हैं।
चौधरी को VIP का समर्थन
तारापुर विधानसभा से वीआईपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सकलदेव बिंद रविवार को बीजेपी में शामिल हो गए। धौरी स्थित हाथीनाथ मैदान में आयोजित जनसभा के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों के साथ डिप्टी सीएम व बीजेपी प्रत्याशी सम्राट चौधरी के समक्ष पार्टी की सदस्यता ली।
सभा स्थल पर हजारों समर्थक मौजूद थे। सकलदेव बिंद ने मंच से ही घोषणा की कि वे अपना नामांकन वापस लेकर बीजेपी प्रत्याशी सम्राट चौधरी का पूरा समर्थन करेंगे। उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास की गंगा बह रही है। अब समय है कि हम तारापुर में विकास की रफ्तार और तेज़ करें।'
सम्राट चौधरी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि बीजेपी 'सबका साथ, सबका विकास' के मंत्र पर काम कर रही है। सकलदेव बिंद जैसे ज़मीनी नेता के शामिल होने से पार्टी को नई मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार ने गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कई योजनाएं लागू की हैं।
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सभा के बाद सम्राट चौधरी और सकलदेव बिंद ने धौरी, मोहनपुर, तिलकारी, मंजूरा, लगमा सहित आसपास के गांवों का दौरा किया और लोगों से समर्थन की अपील की। ग्रामीणों ने गर्मजोशी से दोनों नेताओं का स्वागत किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सकलदेव बिंद के बीजेपी में शामिल होने से न केवल तारापुर विधानसभा, बल्कि मुंगेर और जमालपुर क्षेत्रों में भी एनडीए को फायदा होगा। इन तीनों क्षेत्रों में बिंद, निषाद और सहनी समाज की संख्या लगभग 35 से 40 हजार है। ऐसे में इन समुदायों का समर्थन बीजेपी को निर्णायक बढ़त दिला सकता है।
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