भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने दिल्ली में प्रचंड बहुमत से वापसी की है। 27 साल के वनवास के बाद अब बीजेपी का मुख्यमंत्री दिल्ली की कमान संभालेगा। पार्टी विधानसभा चुनाव तो जीत गई है लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री नहीं चुन पाई है। किसी का दावा है कि प्रवेश वर्मा मुख्यमंत्री होंगे, कोई मनोज तिवारी को बता रहा है।
दिल्ली की सियासी कमान किसे सौंपी जाएगी, भारतीय जनता पार्टी इस पर चुनाव जीतने के बाद से ही मंथन कर रही है। बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री समुदाय, जाति और संघ की मुहर के बाद ही तय होगा। अगले एक सप्ताह के भीतर दिल्ली को नया मुख्यमंत्री मिल जाएगा लेकिन उससे पहले बीजेपी कई पहलुओं पर गौर करेगी।
कौन हो सकता है दिल्ली का मुख्यमंत्री?
भारतीय जनता पार्टी अब विपक्षी पार्टियों की तरह सोशल इंजीनियरिंग में जुट गई है। सूत्रों का कहना है कि सिर्फ हिंदुत्व ही नहीं, जातीय समीकरण भी साधने पर बीजेपी जोर दे रही है। अब दिल्ली में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर जाति का रोल बेहद अहम होने वाला है। ऐसा हो सकता है कि आने वाले कुछ दिनों में इस पर मंथन शुरू हो। जाति और समुदाय फैक्टर के अलावा मुख्यमंत्री चुनने में संघ की भूमिका भी अहम होगी। वैसे संघ की ओर से सिर्फ सलाह ही दी जाती है। संघ संगठन को मजबूत करने की दिशा में सलाह देता है। संघ की सलाह, बीजेपी के लिए बाध्यकारी नहीं है लेकिन यह तय है कि संघ को नाराज करके बीजेपी सीएम नहीं चुनेगी।
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दिल्ली में किस समुदायों की होगी शासन में भगीदारी?
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति करती है लेकिन जातीय समीकरण भी साधने की कोशिश करेगी। दिल्ली में मुख्यमंत्री के अलावा एक डिप्टी सीएम, विधानसभा अध्यक्ष और मंत्रिपरिषद में कुछ अहम पद हैं। इन पदों पर जातिगत संतुलन बिठआने की कोशिश की जाएगी। ब्राह्मण, वैश्य और जाट समुदाय से जुडे़ लोगों को अहम पद मिल सकते हैं। पंजाबी समुदाय का भी दिल्ली में बोलबाला है, ऐसे में ऐसा भी हो सकता है कि इस समुदाय के व्यक्तियों की भी कैबिनेट में हिस्सेदारी हो।
क्यों जाति पर रह सकता है BJP का जोर?
एक सीनियर पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बीजेपी हर समुदाय को साथ लेकर चलना चाहती है। बीजेपी का नारा, 'बटेंगे तो कटेंगे' वाला है। ऐसे में हर समुदाय को जोड़ने का संदेश बीजेपी देना चाहती है। राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ब्राह्मण, हरियाणा में ओबीसी, यूपी में क्षत्रिय बीजेपी ने ऐसे राष्ट्रीय स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग की है। दिल्ली में अहम पदों पर जाट नेता नहीं हैं। कोई जाट मुख्यमंत्री नहीं है।
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा और राजस्थान तक जाट वर्ग के वोटर निर्णायक संख्या में हैं। ऐसे में उन्हें साधने के लिए बीजेपी दांव चल सकती है। ऐसा हो सकता है कि किसी जाट चेहरे को मुख्यमंत्री पद दिया जाए। दिल्ली में वैसे भी जाट मतदाता निर्णायक स्थिति में है। वैसे एक तथ्य यह भी है कि बीजेपी कई बार चौंकाने वाला फैसला करती है। जब लोगों को लग रहा था कि हरियाणा में तो जाट ही मुख्यमंत्री होगा, बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर को कमान सौंप दी थी।
सीएम रेस में कौन-कौन चेहरे शामिल हैं?
प्रवेश सिंह वर्मा: इन्होंने आम आदमी पार्टी के चीफ अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट से हराया है। प्रवेश जाट समुदाय से आते हैं।
विजेंद्र गुप्ता: विजेंद्र गुप्ता वैश्य समाज से आते हैं। इन्होंने रोहिणी विधानसभा सीट से AAP के प्रदीप मित्तल को हराया है। ये भी सीएम पद के शीर्ष दावेदार हैं।
पवन शर्मा: पवन शर्मा ब्राह्मण चेहरे हैं। वह उत्तम नगर से चुने गए हैं। उन्होंने AAP के पोश बाल्यान को हराया है।
अरविंदर सिंह लवली: लवली कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे हैं। प्रदेश समिति के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनकी विधानसभा सीट गांधीनगर है। वह सिख चेहरा हैं। इन्होंने AAP के नवीन चौधरी को हराया है।
राज कुमा चौहान: राज कुमार चौहान मंगोलपुरी से आते हैं। राजकुमार एससी वर्ग से आते हैं, उन्होंने राकेश जाटव धर्मरक्षक को हराया है।
इन चेहरों के अलावा शिखा राय (ठाकुर), हरीश खुराना (पंजाबी), अजय महावर (बनिया) और सतीश उपाध्याय (ब्राह्मण) के नाम की भी चर्चा है। अब देखने वाली बात यह है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व इन चेहरों में से किसे चुनता है। बीजेपी पूर्वांचली समुदाय के वोटरों को साधने की भी कोशिश करेगी। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जेपी नड्डा के नेतृत्व में संसदीय बोर्ड की बैठक करेगा। दिल्ली का सीएम कौन होगा इसके लिए दो पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। पर्यवेक्षक नवनिर्वाचित विधायकों से बातचीत के बाद ही तय करेंगे कि किसे दिल्ली की कमान सौंपी जाएगी।