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बिहार में 'गुजरात मॉडल' की खबर से टेंशन में BJP विधायक, समझिए पूरा खेल

चर्चा है कि बीजेपी बिहार में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए गुजरात मॉडल अपना सकती है और कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं।

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अमित शाह के साथ बिहार BJP के नेता, Photo Credit: BJP

1995 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने गुजरात में पहली बार सत्ता हासिल की थी। इसके बाद सूबे में पार्टी ने 1998, 2002, 2007, 2012 और 2017 में लगातार चुनाव जीते। सरकार बनी रही। 5 साल बाद 2022 में फिर विधानसभा चुनाव आया। 27 साल से राज कर रही पार्टी के खिलाफ एंटी-इंकबेंसी फैक्टर की चर्चा शुरू हो गई थी। दो ताज़ा जख़्म थे। जो लोगो के ज़ेहन में घर किए हुए थे। कोरोना महामारी के दौरान लचर व्यवस्था और मोरबी ब्रिज हादसा, जिसमें लगभग 141 लोगों की मौत हो गई थी लेकिन जैसे कोई भी पॉलिटिकल पार्टी हमेशा जीतना ही चाहती है, वैसे ही बीजेपी भी गुजरात में जीतना ही चाह रही थी। तमाम मुश्किलों के बावजूद पार्टी ने जीत की रणनीति पर काम शुरू किया। कई फैसले लिए लेकिन चुनाव बाद पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स ने दो फैसलों को अलग से अंडरलाइन किया।

 

चुनाव से लगभग एक साल पहले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को पद से हटा दिया। भूपेंद्र पटेल नए सीएम बनाए गए। साथ ही पूरी कैबिनेट भी बदल दी गई। यानी सरकार के चेहरे से लेकर देह तक को बदला गया। 2017 के चुनाव में पार्टी ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2022 चुनाव में पार्टी ने इनमें से 45 विधायकों के टिकट काट दिए। इन दो फैसलों के जरिए पार्टी ने यह मैसेज डिलीवर करना चाहा कि पब्लिक को 2017 की चुनी हुई सरकार से नाराज़गी है तो लीजिए उस सरकार रंग-रूप बदल दिया गया लेकिन क्या यह रणनीति काम कर गई? जवाब आंकड़ों में है। गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने 156 सीटें जीत लीं। एक रिकॉर्ड तोड़ विजय।

 

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अब बिहार में भी बीजेपी गुजरात जैसा ही कुछ करने की कोशिश कर रही है। बिहार की इस रणनीति ने बीजेपी के मौजूदा विधायकों की चिंता बढ़ा दी है। उन 2 सर्वे की भी बात करेंगे जिसकी रिपोर्ट दिल्ली में आलाकमान के सामने पेश की गई है। साथ ही बात होगी कि बीजेपी अपने किन मंत्रियों को चुनाव लड़ाने जा रही है? क्या सम्राट चौधरी की सीट फिक्स हो गई है? साथ ही CM फेस को लेकर BJP क्या गोटियां सेट करने में लगी हुई है।

दबाव में क्यों है बीजेपी?

 

सबसे पहले यह जान लीजिए कि बिहार विधानसभा में 243 विधायकों की कुर्सियां लगती हैं। फिलहाल BJP के 80 विधायक, RJD के 77, JDU के 45 और कांग्रेस के 19 विधायक हैं। कम्युनिस्ट पार्टियों के 19, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के 4, AIMIM के 1 और 2 निर्दलीय विधायक हैं।

 

अब आ जाइए बीजेपी की कहानी पर। पार्टी के सामने क्या चुनौतियां हैं यह समझते हैं। फिर उनसे निपटने के लिए जो रणनीति बन रही है, उस पर बात करेंगे। सबसे बड़ी चुनौती है एंटी-इंकंबेंसी। यानी सरकार और विधायकों के खिलाफ़ नाराज़गी। ख़बरों से अगर आपका वास्ता हो तो आप जानते होंगे कि जहां-तहां सत्तारूढ़ विधायकों के खिलाफ़ लोग भड़के हुए हैं। उनके क्षेत्र में ही विरोध हो रहा है। बीते 22 सितंबर को पूर्णिया सदर में बीजेपी विधायक विजय खेमका का विरोध हुआ। मिया बाजार पोखर टोला गांव के लोग सड़क ना बनने को लेकर नाराज़ हैं। 25 अगस्त को राजधानी पटना में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री और बीजेपी नेता मंगल पांडेय के काफिले पर पथराव कर दिया था क्योंकि 2 बच्चों की मौत के मामले में प्रशासन पर उचित कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगे थे। बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही JDU के मंत्री श्रवण कुमार और विधायक कृष्ण मुरारी को भी लोग दौड़ा चुके हैं। ये कुछ ऐसी ख़बरें हैं जिनमें प्रत्यक्ष तौर विधायकों के खिलाफ गुस्सा दिख रहा है।

 

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दूसरी लहर या कहें कि इस तरह की बहस है नैरेटिव के लेवल पर। जनसुराज नेता प्रशांत किशोर ने एक के बाद एक कई प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बीजेपी-जेडीयू के नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए लेकिन उनके निशाने पर ज्यादातर बीजेपी के ही नेता रहे हैं। जैसे बीजेपी के MLC और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, सांसद संजय जायसवाल। डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सम्राट चौधरी को तो प्रशांत किशोर ने हत्या के मामले में अभियुक्त तक बता दिया। शिल्पी-गौतम केस तक में नाम घसीटा।

 

तीसरी चुनौती जो बीजेपी के लिए है वह सरकार की मुखिया की वजह से। नीतीश कुमार की बात हो रही है। बिहार के मुख्यमंत्री। नीतीश कुमार को लेकर ये पर्सेप्शन क्रिएट हुआ है कि वह मानसिक रूप से सेहतमंद नहीं हैं। ज़ाहिर है यह पर्सेप्शन विपक्षी दलों और नेताओं के आरोप की ही ज़मीन पर खड़ा है। आरोप लगते हैं कि नीतीश कुमार सिर्फ कुर्सी पर बैठे हैं। सरकार तो ब्यूरोक्रेट्स और ईर्द-गिर्द के नेता चला रहे हैं। ये आरोप तो नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के माथे हैं लेकिन साथी होने के नाते बीजेपी को भी इस सवाल से डील करना पड़ता है।

बिहार में गुजरात दोहराएगी BJP?

 

तो चुनावी परीक्षा में बीजेपी इन सवालों के क्या जवाब देगी? क्या परीक्षा में आने वाले इन सवालों की तैयारी चल रही है? ABP से जुड़े पत्रकार और बिहार पॉलिटिक्स पर पैनी नज़र रखने वाले मनोज मुकुल ख़बरगांव से बातचीत में बताते हैं, 'अगर आप गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनावों का पैटर्न देखें, तो पता चलेगा कि बीजेपी क्या कर रही है। बीजेपी हेवीवेट्स को चुनाव लड़ा रही है। बीजेपी अपने कैंडिडेट्स को मास लेवल पर चेंज कर दे रही है।  बीजेपी पहले भी ऐसा करती रही है। वह एंटी-इंकंबेंसी का काट खोजने के लिए यह करती है। यह प्रयोग बिहार में भी हो सकता है।'

 

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इंडियन एक्सप्रेस में छपी 3 अक्टूबर की अपनी रिपोर्ट में लिज मैथ्यू ने सोर्सेज़ के हवाले से लिखा है, 'पिछले सप्ताह उम्मीदवारों के चयन को अंतिम रूप देने के लिए बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में एक विकल्प व्यापक बदलाव का था। जैसा पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले गुजरात में किया था। हालांकि गुजरात के पैमाने पर बदलाव अभी संभव नहीं है लेकिन इस बात से कोई असहमत नहीं है कि बीजेपी को उम्मीदवारों के रूप में नए और साफ-सुथरे चेहरे उतारने की जरूरत है।' लिज मैथ्यू अपनी रिपोर्ट में लिखती हैं, 'बिहार कोई गुजरात नहीं है। न तो बिहार में बीजेपी का डॉमिनेंस है। न ही राज्य में पार्टी के लिए शक्तिशाली दावेदारों की कमी है। इसका मतलब है कि नाखुश नेता भारी पड़ सकते हैं। बीजेपी के सामने कर्नाटक का सबक है, जहां जिन लोगों को टिकट नहीं दिया गया था, उनमें से कई बागी हो गए और विरोधी खेमों में शामिल होकर पार्टी को नुकसान पहुंचाया।'

 

मनोज मुकुल एक और समस्या की ओर ध्यान दिलाते हैं, 'बिहार जैसे राज्य में ऐसा प्रयोग करना इसलिए संभव नहीं है क्योंकि यहां आप गठबंधन में 3-4 पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं। आपको कास्ट कंबिनेशन देखना पड़ता है। जैसे मान लीजिए कि बीजेपी को इस बार लड़ने के लिए 101 सीटें मिल जाएं तो पार्टी को देखने होगा कि किस कास्ट को कितनी टिकट दी जा रही हैं। कितना अपर कास्ट, कितना ओबीसी, और कितना EBC।'

36 सीटों पर बदलेंगे उम्मीदवार?

 

बिहार में 36 ऐसी सीटें हैं जहां 2020 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। इन सीटों पर प्रत्याशियों का बदलना तय माना जा रहा है। साथ ही सरकार में शामिल मंत्रियों को भी चुनाव लड़ाने की पूरी तैयारी है। पार्टी आलाकमान ने सम्राट चौधरी और उन जैसे कुछ और नेताओं को अपने लिए सीट तलाशने का निर्देश दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि ऐसे ही निर्देश अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण मंत्री, जनक राम, पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री हरि सहनी और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को भी मिले हैं। सम्राट चौधरी, जनक राम, हरि सहनी और मंगल पांडेय- चारों ही MLC हैं। MLA नहीं लेकिन इस बार पार्टी इन्हें MLA का चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। 

 

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सूत्र बताते हैं कि बड़े नेताओं को बताया गया कि पार्टी तो सीट खोज ही रही है, आप भी अपनी सहूलियत के हिसाब से सीट बताएं। कवायद है कि अलग-अलग जातियों के नेताओं को अलग-अलग क्षेत्रों में चुनाव लड़ाया जा सकता है ताकि उस कास्ट के बीच यह मैसेज दिया जा सके कि आपकी जाति का नेता चुनाव जीतता है तो मंत्री भी बन सकता है। हेवीवेट्स यानी बड़े नेताओं के जरिए मैसेज देने की कोशिश है कि उन्हें डिप्टी सीएम भी बनाया जा सकता है। इन बड़े चेहरों में पूर्व सांसदों और सिटिंग सांसदों के नाम शुमार हैं।

 

चुनाव की तारीख़ों का एलान होने को है। ऐसे में बीजेपी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को बिहार का प्रभारी नियुक्त किया गया है। केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को उप नियुक्त बनाया गया है। धर्मेंद्र प्रधान ने जेडीयू के साथ बैठक शुरू कर दी है। सीट शेयरिंग पर बातचीत चल रही है। कैंडिडेट्स को लेकर भी चर्चा जारी है। सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने अगस्त और सितंबर में दो सर्वे कराई हैं। बिहार की सभी सीटों को लेकर सर्वे कराया गया है। पार्टी के जीते हुए विधायकों को लेकर भी सर्वे कराया गया है। सर्वे रिपोर्ट दिल्ली में पार्टी की केंद्रीय समिति के सामने भी पेश किया जा चुका है। जिसके बाद टिकट काटने की चर्चाएं शुरू हुई हैं। चर्चाएं कितनी असलियत में तब्दील होती हैं, देखने वाली बात होगी लेकिन अब मैराथन स्तर पर रणनीतियां बनाई जा रही हैं। बीते महीने ही बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का बिहार दौरा था। पटना में जेपी नड्डा ने राज्य के पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी दौरे पर थे। अमित शाह ने क्षेत्रीय स्तर पर संगठन के नेताओं के साथ बैठक की। कार्यकर्ताओं के सामने पार्टी को जिताने का टारगेट रखा। इन सबके समानांतर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी ज़मीन तैयार कर रहा है। मीडिया में ख़बरें आई थीं कि संघ के कार्यकर्ता दिल्ली की तर्ज पर बिहार में घर-घर जाकर मतदाताओं से मुलाकात कर रहे हैं। 

 

इन तैयारियों का नतीजा नवंबर के अंत तक पता चल जाएगा। नतीजे पक्ष में हों इसी के लिए बीजेपी गुजरात मॉडल को बिहार में आजमाने की तैयारी में है। लेकिन मसला ये है कि गुजरात में पार्टी सीएम बदल सकती है लेकिन बिहार में नहीं क्योंकि साहब बिहार में शायद चुनाव ही इसलिए होता है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन सकें। आपको क्या लगता है, बीजेपी की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होगी।

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