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क्या है दिल्ली में महिलाओं को नौकरी और व्यवसाय दिलाकर सशक्तीकरण का सच?

आम आदमी पार्टी ने 2020 में दिल्ली के लोगों से वादा किया था कि गृहिणियों को अपने घरों से या आस-पास नौकरी और व्यवसाय के अवसरों से जोड़ने की पहल करेंगे ताकि वे अपनी घरेलू आय के साथ-साथ दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी की अर्थव्यवस्था में योगदान कर सकें। पांच साल बाद अरविंद केजरीवाल की पार्टी का यह वादा कितना जमीन पर उतरा है आइए जानते हैं।

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क्या था वादा

गृहिणियों को अपने घरों से या आस-पास नौकरी और व्यवसाय के अवसरों से जोड़ने की पहल करेंगे ताकि वे अपनी घरेलू आय के साथ-साथ दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी की अर्थव्यवस्था में योगदान कर सकें। महिलाओं को सस्ती पूंजी और अपेक्षित कौशल के अवसर दिए जाएंगे।

क्या कदम उठाए

नवंबर 2022 में परेशानी में पड़ी महिलाओं के लिए पेंशन स्कीम के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था जिसके मुताबिक 18-60 साल की परेशानी में पड़ी महिलाओं को सहायता प्रदान करना था। इसके तहत दो तरह की स्कीमें चलाई गईं। एक थी विधवा, तलाशुदा, पति से अलग हुई, पति द्वारा छोडी गई जरूरतमंद और गरीब महिलाओं के लिए पेंशन की व्यवस्था और दूसरी थी विधवा महिलाओं की बेटियों की शादी के लिए सहायता।

 

इस स्कीम के तहत महिलाओं के अकाउंट में हर महीने बैंक में 2500 रुपये ट्रांसफर किया जाता है। इस योजना के तहत करीब साढ़े तीन लाख रजिस्टर्ड हैं। वहीं ऐसी गरीब और असहाय महिलाओं की बेटियों की शादी के लिए 30 हजार रुपये दिए जाने की व्यवस्था इस योजना के तहत की गई।

बसों में किराया फ्री

इसके अलावा दिल्ली में महिलाओं के लिए किराया फ्री है जो कि आम आदमी पार्टी के उस वादे को पूरा करती हुई दिखती जिसके तहत कहा गया था कि गृहिणियों को अपने घरों से या आस-पास नौकरी और व्यवसाय के अवसरों से जोड़ने की पहल करेंगे।

 

इसके जरिए तमाम लोवर मिडिल क्लास और गरीब वर्ग की महिलाओं को दूर दराज भी काम करने के लिए जाने में आसानी हुई है जिससे न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है बल्कि उनका आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक सशक्तीकरण भी हुआ है। इसके अलावा केजरीवाल ने महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह देने का भी वादा किया था। हालांकि, वह योजना धरातल पर नहीं उतर पाई।

 

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कितनी है महिलाओं की भागीदारी?

वहीं दिल्ली में महिलाओं के लिए लेबरफोर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी कि एलएफपीआर की बात करें तो यह 9.4 प्रतिशत है जबकि ऑल इंडिया लेबल पर इसका प्रतिशत 24.8 है जो कि दिल्ली की तुलना में काफी ज्यादा है। एलएफपीआर का मतलब होता है कुल जनसंख्या में जितने लोग काम करते हैं या काम की तलाश में हैं।

 

वहीं वर्कर पॉपुलेशन रेशियो की बात करें तो यह दिल्ली के लिए 2021-22 में 8.8 प्रतिशत था जबकि ऑल-इंडिया औसत 24 था। डब्ल्यूपीआर का मतलब है देश की वह जनसंख्या जो कि काम में लगी हुई है।

 

वहीं महिलाओं की तुलना में 54 प्रतिशत वर्कफोर्स काम का हिस्सा थे।

 

वहीं बेरोजगारी दर की बात करें तो दिल्ली में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय स्तर से ज्यादा है। बेरोजगारी दर का अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जो कि काम तो करना चाहता है लेकिन उसके पास काम नहीं है।

 

हालांकि तुलनात्मक रुप से दिल्ली में साल 2020 से 2023 के बीच दिल्ली में महिलाओं के बेरोजगारी दर में कमी आई है। वहीं 15 से 29 साल की महिलाओं की बात करें तो के भी बेरोजगारी दर में कमी आई है, लेकिन ग्रामीण महिलाओं की बात करें तो रोजगार में उनकी भागीदारी घटी है।

क्या है निष्कर्ष

तो कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार ने पिछले पांच सालों में महिलाओं की भागीदारी वर्कफोर्स में बढ़ाने के लिए कुछ-कुछ कदम उठाए हैं और इसका थोड़ा बहुत फायदा भी दिखा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें कोई आश्चचर्यजनक परिवर्तन आया हो। 


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