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स्वराज बिल और मोहल्ला सभा का वादा कितना पूरा हुआ?

दिल्ली चुनाव 2020 से पहले आम आदमी पार्टी ने वादा किया था कि दिल्ली स्वराज बिल लागू किया जाएगा और मोहल्ला सभा बनाकर बजट खर्च किया जाएगा।

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वादों का सच, Photo Credit: Khabargaon

वादा- दिल्ली स्वराज बिल

 

दिल्ली सरकार ने जून 2016 में शहर भर में 70 विधानसभा क्षेत्रों में 2972 मोहल्ला सभाओं के गठन को मंजूरी दी थी। जिन समस्याओं से लोगों का जीवन प्रभावित होता है, उससे लड़ने के लिए लोगों को शक्ति प्रदान करने में यह पहला कदम है और दिन-प्रतिदिन के मुद्दों को हल करने में उन्हें प्रत्यक्ष भागीदार भी बनाता है। हम केंद्र के साथ मिलकर एक मजबूत दिल्ली स्वराज विधेयक लाने के लिए प्रयास करेंगे जो मोहल्ला सभाओं की भूमिकाओं को जिम्मेदारियों को औपचारिक रूप देगा और लोगों के हाथों में पर्याप्त बजट और कार्य करने की शक्ति सुनिश्चित करेगा।

 

दिल्ली में 5 साल सरकार चला चुकी आम आदमी पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में दूसरा वादा 'दिल्ली स्वराज बिल' का किया था। मकसद यह बताया गया कि स्थानीय तौर पर किए जाने वाले काम के लिए 'बॉटम अप अप्रोच' को अपनाया जाएगा। यानी आम लोगों से राय लेकर काम तय होंगे, वही बताएंगे कि कहां क्या काम होना है और इस पर कितना बजट खर्च होना। कहा गया कि इसके लिए जो पैसे खर्च होने हैं उनका फैसला भी मोहल्ला सभाएं ही करेंगी। कहा गया कि हर मोहल्ला सभा में दो कोऑर्डिनेटर नियुक्त किए जाएंगे जिसमें एक महिला और एक पुरुष होंगे। ये कोऑर्डिनेटर ही हर महीने मीटिंग आयोजित करवाएंगे।

 

2020 में फिर से स्वराज बिल का वादा कर रही AAP को तस्वीर साफ थी कि यह योजना अटक चुकी है। इसके बावजूद यह वादा फिर से किया गया। 2017 में सत्येंद्र जैन ने विधानसभा में जवाब दिया कि योजना के लिए जारी 350 करोड़ रुपये वैसे के पैसे पड़े हैं और उपराज्यपाल ने इस योजना को मंजूरी ही नहीं दी है। यह योजना मौजूदा समय में अधर में ही लटकी हुई है। शुरुआत में कुछ जगहों पर इक्का-दुक्का काम भी हुए लेकिन आगे चलकर न तो कभी मोहल्ला सभाएं हुईं और न ही उनके जरिए कोई काम हुआ। यह सब भी 2020 के पहले का ही था। यानी 2020 के बाद कोई काम होने का सवाल ही नहीं उठता।

 

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शुरू से शुरू करते हैं:-

 

नई नवेली आम आदमी पार्टी ने जब 2013 में ही सरकार बना ली थी तो कैबिनेट ने स्वराज बिल पास किया था। 49 दिन में ही अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया और मामला अटक गया। सितंबर 2015 में दिल्ली कैबिनेट ने मोहल्ला सभा की परिभाषा और गठन को मंजूरी दी। यह भी कहा गया कि 2015-16 का बजट भी जनता की राय के आधार पर तैयार किया गया है। 2015 में ही कहा गया कि 4 से 5 हजार मतदाताओं को मिलाकर एक मोहल्ला सभा होगी और इस तरह की लगभग 3 हजार विधानसभाओं में इसके जरिए काम होगा। पहले 11 विधानसभाओं में काम होगा फिर इसे 70 विधानसभाओं में पहुंचाया जाएगा।

 

2015 के बजट में 253 करोड़ रुपये रखे गए। हर विधानसभा को 20-20 करोड़। यानी 11X20=220 करोड़। बाकी बची 59 विधानसभाओं को 50 लाख रुपये। मोहल्ला सभा को 55 लाख रुपये दिए भी गए। 16 जून 2016, को दिल्ली सरकार ने 2972 मोहल्ला सभाओं का गठन किया गया। लक्ष्य यह था कि जनता के लिए किए जाने वाले कामों में आम लोगों की भागीदारी हो। इसी भागीदारी से तय हो कि क्या काम होना है। इसके लिए मोहल्ला सभाएं बनें, सभा में शामिल लोग ही बजट तय करें और काम भी करवाएं। 

हकीकत क्या है?

 

अगस्त 2017 में शराब की दुकानें खोले जाने को लेकर प्रशांत भूषण ने सवाल उठाए कि आखिर मोहल्ला सभाओं से क्यों नहीं राय ली गई। इस पर सत्येंद्र जैन ने जवाब दिया कि अभी 3500 मोहल्ला सभाओं को लॉन्च करने के लिए नियम-कानून बनाए जा रहे हैं। कहा गया कि सिटिजन लोकल एरिया डेवलपमेंट (C-LAD) के तहत इन सभाओं के जरिए 350 करोड़ रुपये की लागत से काम करवाए जाएंगे।

 

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अगस्त 2017 में यह मामला विधानसभा में भी उठा। विधायकों ने उपराज्यपाल से अपील की कि वह मोहल्ला सभा योजना को जल्द से जल्द लागू करवाएं। नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने सदन में सवाल पूछा कि आखिर मोहल्ल सभा को लेकर सरकार का वित्तीय ढांचा क्या होगा और इसकी लिए प्लानिंग कैसी होगी। हालांकि, ये बातें 2017 की हैं और 2020 के चुनाव से पहले अपने मैनिफेस्टो में आम आदमी पार्टी ने यह वादा फिर से किया था।

क्या हुआ, क्या नहीं?

 

दिल्ली सरकार की वेबसाइट पर मोहल्ला क्लीनिक का कॉलम सर्च करें तो गिनती की 7 विधानसभाओं के नाम आते हैं। इनमें से एक विधानसभा (बुराड़ी) के सामने एक पीडीएफ फाइल मिलता है जिसमें यह दर्शाया गया है कि कुछ कामों के प्रस्ताव पास किया गया है। हालांकि, इसमें भी यह स्पष्ट नहीं है कि इसका किसी मोहल्ला सभा से लेना-देना है या नहीं क्योंकि ये विधायक निधि के तहत किए जाने वाले काम हैं। 2015 से लेकर 2018 के बीच कई कामों का जिक्र आधिकारिक वेबसाइट पर है, उनकी एंट्री मोहल्ला सभा के लिए अंतर्गत की गई है लेकिन मौजूदा हकीकत है कि मोहल्ला सभा को उपराज्यपाल की मंजूरी ही नहीं मिली है।

ऐसे ही कुछ और कामों का ब्योरा मोहल्ला सभा कॉलम के तहत मिलता है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इसे किस मोहल्ला सभा ने प्रस्तावित किया और इसकी मॉनीटरिंग का जरिया क्या है। ये सारे काम डिस्ट्रिक्ट अर्बन डेवलपमेंट एजेंसी के जरिए करवाए गए।

मंत्रियों ने बताया- कुछ नहीं हुआ

 

2016 में जब मनीष सिसोदिया ने दिल्ली का बजट पेश किया था तो 350 करोड़  रुपये मोहल्ला सभाओं के लिए रखे गए थे। इसे सिटिजन लोकल एरिया डेवलपमेंट स्कीम (CLADS) के तहत रखा गया था। 2017 आते-आते ही इस योजना ने दम तोड़ दिया था। फरवरी 2017 में मनीष सिसोदिया ने उम्मीद जताई थी कि तत्कालीन उपराज्यपाल अनिल बैजल इस योजना को अपनी मंजूरी दे देंगे। मई 2017 में छपी इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह उनकी जानकारी में नहीं है और वह इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते। अगस्त 2017 में सत्येंद्र जैन ने विधानसभा में बताया कि इस योजना के लिए रखे गए 350 करोड़ रुपये वैसे के वैसे पड़े हैं क्योंकि योजना को उपराज्यपाल ने मंजूरी नहीं दी है।

 

दरअसल, मोहल्ला सभाओं का गठन ही प्रशासनिक गलियारों में फंस गया। सवाल यह खड़ा हो गया कि क्या उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना यह योजना लागू हो भी सकती है या नहीं। इस योजना से जु़ड़ी सैकड़ों फाइलें लौटा दी गईं। 

 

टाइम लाइन

  • 2014- 49 दिनों की सरकार में दिल्ली कैबिनेट ने स्वराज बिल पास किया
  • 2015- नोटिफिकेशन के जरिए इसे लागू करवाने की कोशिश की गई
  • 16 जून 2016-  2972 मोहल्ला सभाओं के गठन को कैबिनेट की मंजूरी
  • जुलाई 2016- 'मिशन स्वराज' नाम की नोडल एजेंसी बनाई गई जो कि मोहल्ला सभाओं के प्रोजेक्ट देखती
  • अगस्त 2017- सत्येंद्र जैन ने विधानसभा में बताया कि 350 करोड़ रुपये का पूरा बजट रखा हुआ क्योंकि LG ने योजना को मंजूरी नहीं दी

 

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