मछुआरों की धारावी कैसे बनी एशिया की सबसे बड़ी स्लम?
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• MUMBAI 25 Oct 2024, (अपडेटेड 29 Oct 2024, 2:57 PM IST)
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई। एक तरफ गगनचुंबी इमारते हैं, उद्योग है, समंदर है, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और मुकेश अंबानी के घर हैं, दूसरी तरफ है धारावी।

धारावी में लाखों लोग रहते हैं और बुनियादी जरूरतों की किल्लत से जूझ रहे हैं। (फोटो क्रेडिट-www.adani.com)
मुंबई का धारावी इलाका। छोटी-छोटी झुग्गी-झोपड़ियां, तंग गलियां, बजबजाती नालियां, भीषण गंदगी और सैकड़ों लोग। धारावी का नाम आते ही ये ख्याल आता है। आए दिन ये खबरें सुर्खियों में आती हैं कि इस इलाके के एक सार्वजनिक शौचालय में दिनभर में सैकड़ों लोग उसे इस्तेमाल करते हैं। घर ऐसे हैं, जिनमें तनकर आदमी पूरा न सो पाए। बिजली, पानी, ट्रासंपोर्ट हर चीज की किल्लत है लेकिन यहां रहने वाले लोग यहां खुश हैं। करीब 2।39 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है। यहां की आबादी कितनी है, इसके बारे में लोग सिर्फ अनुमान ही लगाते हैं। आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं। दावा किया जाता है कि यहां 1000000 से ज्यादा लोग रहते हैं।
यह दुनिया के सबसे बड़े स्लम में से एक है। माहिम और सायन के बीच उत्तरी हिस्से में बसे मुंबई की एक पहचान धारावी भी है, जिसे दुनियाभर की फिल्मों में दिखाया जाता है। भारत की तमाम सच्चाइयों में से एक ये सच्चाई भी है कि इस इलाके के लोग, साफ हवा और पानी जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं। रहने के लिए यहां सस्ते में घर मिल जाता है तो लोग यहां रह लेते हैं। ऐसा नहीं है कि किराया आम आदमी आसानी से अफोर्ड कर ले। कम से कम किराया यहां 10000 रुपये तक है। कभी सोचा है कि यहां लोग कैसे बसे हैं, क्या है इस इलाके का पूरा इतिहास?
कोली समुदाय है धारावी का मूल निवासी
धारावी में इतनी आबादी हमेशा से नहीं थी। पहले कम लोग यहां रहते थे। यहां कोली समुदाय रहता है। यह समुदाय, शताब्दियों से माहिम की खाड़ी में जाकर मछलियां पकड़ता था और बेचता था। धारावी को लोग कोलीवाड़ा भी कहते थे। सबसे पहले पुर्तगाली मुंबई आए थे। 16वीं शताब्दी में उन्होंने मुंबई के 17 अलग-अलग द्वीपों पर अपना कब्जा जमाया था। उन्होंने एक छोटा सा किला बना लिया था और बांद्रा में एक का निर्माण किया। कोली समुदाय के लोग इस दौरान भी खाड़ी में मछलियां पकड़ने जाते थे।
16वीं शताब्दी से आबाद हैं धारावी के कुछ इलाके
धारावी के पास में ही रीवा का किला है, इसे लोग काला किला के तौर पर भी लोग जानते हैं। मीठी नदी के किनारे साल 1737 में इस किले को बॉम्बे के तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर गेराल्ड ऑन्गियर ने बनवाया था। अब यहां लोग फुर्सत में बैठते हैं। ये जगह अब संकरी हो गई है, ईंटे टूटकर गिरी हैं और लोगों ने कबाड़ पाट दिया है।
ऐसे धारावी की दलदली जमीन बनी ठोस
धारावी में लोग कचरा फेंकते थे। यह पूरी तरह से ठोस जमीन में तब्दील 18वीं शताब्दी के आसपास हुई है। 19वीं शताब्दी तक भी धारावी के कुछ हिस्से दलदल थे, जिन्हें पार करने के लिए लकड़ी के पुल बनाए गए थे। पूरे मुंबई का कचरा इस इलाके में ही डाला जाने लगा। नतीजा ये हुआ कि एक बड़े हिस्से से दलदल सूख गया और धीरे-धीरे लोग यहां आकर बसने लगे। 1900 के बाद से अचानक बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचने लगे। तब भी यहां के कुछ हिस्सों में दलदली जमीन थी।
ऐसे शुरू हुई धारावी के बसने की कहानी
1800 के अंत तक, यहां सौराष्ट्र के लोग विस्थापित होकर पहुंच गए थे। उन्होंने कुंभारवाड़ा नाम से एक कॉलोनी बसा ली थी। यहां के एक हिस्से में कुछ मुसलमान भी बसे थे। वे चमड़े के व्यापारी थे और तमिलनाडु से आए थे। बांद्रा में ही बड़े-बड़े कई बूचड़खाने बनने लगे थे। यूपी और बिहार के कुछ कलाकार भी यहां बसने लगे थे। वे कारीगरी करते, कपड़े बुनते और उन्हें बेचते थे। तमिलनाडु से ही मिठाइयों के कारीगर भी यहां बस गए थे। वे मिठाई बनाकर शहर में बेचते थे।
क्यों इतनी बेतरतीब है धारावी?
जैसे-जैसे मुंबई देश की आर्थिक राजधानी बनती गई, रोजगार के मौके यहां बढ़ते गए। धारावी में हर प्रदेश से लोग आकर बसने लगे। यहां की विविधता ही यहां की खासियत थी। नुकसान ये हुआ कि लोग बिना किसी प्लान के अनियमित तरीके से यहां बसते गए। मजदूरों ने छोटे-छोटे घर बनाने शुरू कर दिए। धारावी की जमीनें, सरकारी संपत्ति हैं। सरकारी संपत्ति जानकर लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया। यहां लोग स्थाई घर बनाने लगे।

पूरे भारत की झलक है धारावी
धारावी में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई, हर जाति-धर्म के लोग साथ रहते हैं। यहां लोगों ने छोटे-छोटे उद्योग बना लिए हैं। बड़ी संख्या में लोगों को इन बस्तियों में ही रोजगार मिला है। यहां अब हजारों उद्यमी और व्यापारी रहते हैं। दशकों पहले, मुंबई की नजर में यह बस्ती खटकती नहीं थी। जब उत्तरी मुंबई में तेजी से विकास शुरू हुआ तो धारावी सबको खटकने लगी। इस इलाके में बड़े उद्योग हैं और धारावी का बड़ा इलाका है, जिस पर सबकी नजरें टिकी हैं। एक जमाने में धारावी मछुआरों का गांव हुआ करता था, आज लाखों झुग्गियों की बस्ती है।

किसकी जमीनों पर बसी हैं धारावी की बस्तियां?
धारावी की ज्यादातर जमीनें, आधिकारिक तौर पर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ऑफ ग्रेटर मुंबई (MCGM) की जमीनें हैं। जिन लोगों ने धारावी की जमीनों पर अवैध कब्जा जमाया है, उन्होंने बेतरतीब तरीके से यहां घर बनाने शुरू कर दिए। न नालियों की सही व्यवस्था बन पाई, न ही यहां तक पर्याप्त रोशनी आती है। हवा का जिक्र भी करना यहां गुनाह है। महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 में पास हुआ। यहां की बस्तियों को नियमित करने के प्रावधान तय किए गए। साल 1976 में यहां झोपड़ियों की गिनती हुई, जिससे लोगों तक शौचालय और बिजली जैसी बुनियादी चीजें पहुंचाई जा सकें।
धारावी पर चल रहा है कौन सा प्रोजेक्ट?
तब से लेकर अब तक सरकार यहां के लोगों को बेहतर सुविधाएं देने की कोशिश में लगी है। यहां की बस्तियों को हटाकर लोगों को फ्लैट देने के लिए कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं की कवायद भी हुई। धारावी रीडेवलेपमेंट प्रोजेक्ट (DRP) में गौतम अडानी ग्रुप ने 2000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इस प्रोजेक्ट में महाराष्ट्र सरकार और अडानी समूह साथ हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत धारावी में रहने वाले लोगों को आवासीय परिसर और औद्योगिक इकाइयां बनाकर दी जाएंगी। इस प्रोजेक्ट के तहत 15000 से 20000 घर बनाए जाएंगे।

तारीखों में जानिए धारावी को सुधारने की रूपरेखा
जो लोग 1 जनवरी 2000 को या उससे पहले यहां रहते थे, उन्हें धारावी में 350 वर्गफीट का एक फ्री अपार्टमेंट मिलेगा। 1 जनवरी 2011 के बीच में रहने वाले लोगों को 2.5 लाख रुपये देने पर पीएम आवास योजना के तहत घर मिल जाएगा। पहली बार इस प्रस्ताव को साल 1999 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सरकार ने पेश किया था। 2003-2004 में राज्य सरकार ने इंटीग्रेटेड प्लान तैयार किया था। साल 2011 में सरकार ने सभी टेंडर रद्द करके एक नया प्लान तैयार किया था। अक्तूबर 2022 में शिंदे सरकार ने इसके टेंडर जारी किए थे, जिस पर अब सियासी हंगामा बरपा है। विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी सरकार का कहना है कि यह देश का सबसे बड़ा घोटाला है।
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