JMM को दवा नहीं, दर्द दे रही कांग्रेस, कैसे? समझिए खेल
चुनाव
• RANCHI 16 Nov 2024, (अपडेटेड 16 Nov 2024, 1:41 PM IST)
झारखंड का चुनाव इंडिया ब्लॉक, हेमंत सोरेन के चेहरे पर लड़ रहा है। इस गठबंधन में कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बीच सामंजस्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

झारखंड के एक चुनावी कैंपेन में संविधान की प्रति दिखाते राहुल गांधी। (तस्वीर-PTI)
झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) जितनी आक्रामक कैंपेनिंग कर रही है, उतनी ही धीमी रफ्तार से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चुनावी राज्य में प्रचार कर रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता खुद भी कांग्रेस की इस रफ्तार से थोड़े असहज नजर आ रहे हैं। झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में प्रमुख 43 सीटों पर मतदान पहले ही हो चुका है और कांग्रेस की गाड़ियां जमीन पर कम नजर आ रही हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेता, केवल उन्हीं सीटों पर चुनाव प्रचार करने उतरे हैं, जहां कांग्रेस उम्मीदवार हैं। गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए वे पूरी बाजी, हेमंत सोरेन के हवाले कर चुके हैं। स्थानीय लोगों का भी कहना है कि कांग्रेस की प्रचार गाड़ियां, उन इलाकों में भी कम नजर आ रही हैं, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।
झारखंड की राजनीति पर नजर रखने वाले सीनियर पत्रकार आनंद दत्त बताते हैं, 'कांग्रेस को बीजेपी से सीखना चाहिए। हिमंता बिस्वा सरमा, असम के मुख्यमंत्री हैं, जमीन पर टिके हुए हैं। एक के बाद एक चुनावी कैंपेन कर रहे हैं। आदिवासी उत्पीड़न, घुसपैठ, हिंदुत्व जैसे राग छेड़ रहे हैं। घंटों काम करते हैं, जमीन पर लड़ते हैं, जामताड़ा से लेकर पलामू तक शायद ही कोई ऐसी विधानसभा हो, जहां वे गए न हों। वे काम करते हैं, कंफर्ट नहीं देखते हैं। कांग्रेस में यही मिसिंग है।'
हेमंत कल्पना भरोसे कांग्रेस का चुनाव
आनंद दत्त बताते हैं, 'कांग्रेस की रैलियों में भी भीड़ कम नजर आ रही हैं। कांग्रेस प्रत्याशी तो अपने चुनाव प्रचार में जी-जान झोंक रहे हैं लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की प्राथमिकता में वायनाड शामिल रहा। महाराष्ट्र में भी उनका चुनाव प्रचार बेहद कम रहा, झारखंड में भी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी उतने ही कम नजर आए हैं, जितने कि राहुल गांधी। राहुल-प्रियंका का फोकस वायनाड रहा है, आई लव वायनाड वाले पोस्टर उनके खूब दिखे लेकिन आई लव झारखंड की जरूरत थी, जो वे नहीं दिखा सके।'

कितने सीटों पर चुनाव लड़ रही है कांग्रेस
झारखंड में इंडिया ब्लॉक के सीट बंटवारे में कांग्रेस को कुल 30 सीटें मिलीं। 17 सीटों पर पहले चरण के तहत मतदान हो चुका है। सीएम हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा 42 सीटों पर, राष्ट्रीय जनता दल 6 सीटों पर और CPI (माले) (L) तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
'राहुल-प्रियंका केमियो, लीड एक्टर हैं हेमंत सोरेन'
आनंद दत्त बताते हैं 'झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्टार प्रचारक हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन हैं। कल्पा सोरेन अब तक 150 से ज्यादा बैठक और जनसभाओं में शामिल रही हैं, वहीं हेमंत सोरेन 75 से ज्यादा। उनकी मजबूरी ये है कि गठबंधन धर्म में हैं, जिनमें 30 सीटें कांग्रेस के पास हैं। इन 30 में से 17 पर वोटिंग हो चुकी है, बाकी की सीटों की चुनावी कैंपेन भी इन्हीं दोनों के भरोसे है। अगर कांग्रेस की सीटें नहीं आईं तो उनका सियासी भविष्य डगमगा सकता है। यह हेमंत सोरेन के लिए नाक की लड़ाई बन गई है। वे दिन भर कैंपेनिंग कर रहे हैं, वे न सिर्फ अपनी पार्टी के लिए कैंपेनिंग कर रहे हैं, बल्कि कांग्रेस भी उन्हीं के भरोसे है।'

'बीजेपी ने उतारी पलटन, कांग्रेस हेमंत भरोसे'
केशव महतो भी अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाते नहीं दिखे हैं। कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक बदलाव का आलम ये है कि पुराने पदाधिकारी ही कैंपेन संभाल रहे हैं। कल्पना और हेमंत सोरेन ने मिलकर राज्य में करीब 60 रैलियां की हैं, वहीं कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने महज 7 रैलियां की हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 4 रैलियां की हैं। ये रैलियों के आंकड़े हैं। अब सोचकर देखिए, कांग्रेस की ओर से ही हेमंत निश्चिंत नहीं हो पा रहे हैं। इसके उलट बीजेपी ने हिमंता बिस्वा सरमा, योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान, राजनाथ सिंह, अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को उतार दिया है।

किन नेताओं का बेहतर इस्तेमाल कर सकती है कांग्रेस?
सुधांशु बिरंची बताते हैं, 'झारखंड में कांग्रेस के टॉप प्रचारकों में इमरान प्रतापगढ़ी और गुलाम अहमद मीर शामिल हैं। कांग्रेस के पास सचिन पायलट और शशि थरूर, अशोक गहलोत,भूपेंद्र हुड्डा, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे नेता हैं जिन्हें पार्टी जमीन पर उतार ही नहीं रही है। जमीन पर लोग दोनों को कम जानते हैं। लोग राहुल गांधी को सुनना चाहते हैं, वे कैंपेनिंग से कोसों दूर हैं। स्थानीय पत्रकार सुधांशु बिरंचि बताते हैं कि इमरान प्रतापगढ़ी मुस्लिम बाहुल इलाकों में भीड़ जुटा सकते हैं लेकिन उन्हें भी प्रचार के लिए उतना स्पेस नहीं मिल पा रहा है, जितने के वे हकदार हैं। सुधांशु बिरंची बताते हैं कि कांग्रेस की तुलना में दूसरे दलों का चुनाव प्रचार ठीक है। राष्ट्रीय जनता दल और लेफ्ट की पार्टी भी कांग्रेस की तुलना में बेहतर प्रचार कर रही है।'
घोषणापत्र को लेकर भी घिरी कांग्रेस
मतदान से ठीक एक दिन पहले, कांग्रेस ने अपना चुनावी घोषणापत्र लॉन्च किया, जिस पर बीजेपी ने जमकर तंज कसा। बीजेपी इसके लिए चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज करा चुकी है। बीजेपी का कहना है कि 24 घंटे के कूलिंग पीरियड के भीतर कांग्रेस कैसे अपना घोषणापत्र लॉन्च कर सकती है।
जामताड़ा के कांग्रेस विधायक ने जिस तरीके से एक आदिवासी नेता का अपमान किया, जनता इंडियावालों को माफ नहीं करेगी। जामताड़ा से एक जनसभा को संबोधित कर रहा हूँ। https://t.co/FbQ24gdyYs
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) November 16, 2024
कहां हुई है कांग्रेस से चूक?
आनंद दत्त बताते हैं कि कांग्रेस ने चुनाव के लिए संगठनात्मक बदलाव किया था, वह भी अनुकूल नहीं रहा। अगस्त में चुनाव का जैसे ऐलान हुआ, कुछ देर बाद ही कांग्रेस ने अपने राज्य प्रमुख को बदल दिया। साल 2021 में राजेश कुमार को जगह मिली थी, उनकी जगह विधायक केशव महतो को राज्य का चीफ बनाया गया। वे जन-नेता नहीं हैं, जिनकी व्यापक स्वीकृति हो। झारखंड में कांग्रेस के पास कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है, जिसे बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन के बरक्स खड़ा किया जा सके। बीजेपी के पास नेताओं की भरमार है। कांग्रेस, अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को ही झारखंड का स्टार प्रचारक बनाए रखती तो हालात समंल जाते। चंपाई सोरेन के जाने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा में एक बड़ा चेहरा नहीं बचा, सोरेन परिवार के अलावा। उन्होंने तय किया कि कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन ही चुनाव प्रचार में कार्यकर्ताओं की तरह मेहनत करेंगे।

कहीं कश्मीर जैसा न हो जाए हाल
सुधांशु बिरंची बताते हैं लोग चर्चा कर रहे हैं कि कांग्रेस के साथ कहीं हरियाणा और जम्मू-कश्मीर जैसा हाल न हो जाए। कांग्रेस अपने गठबंधन में सीटें तो खूब मांगती है लेकिन जब चुनाव प्रचार की बारी आती है तो न राहुल गांधी नजर आते हैं, न प्रियंका गांधी। मल्लिकार्जुन खड़गे का भी कुछ यही हाल रहता है। जम्मू और कश्मीर का हाल लोग भूले नहीं है कि 29 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 6 सीटें जीत सकी। अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस की लहर न होती तो इंडिया गठबंधन की नैया भी कश्मीर में डूब गई थी होती। यहां 20 फरवरी को अंतिम दौर का मतदान है, अब देखने वाली बात ये है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, आखिरी दौर के चुनाव में रैलियों की संख्या बढ़ा पाते हैं या नहीं।
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