संजय सिंह, पटना। बिहार की राजनीति में महागठबंधन और एनडीए का दबदबा रहा है। जातीय और अन्य मुद्दे इन्हीं दो गठबंधनों के इर्द-गिर्द घूमते हैं, लेकिन इस विधानसभा के चुनाव में मायावती की बसपा और अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी और प्रदेश की भूमि पर उपजी पार्टी जन सुराज अपने अपने उम्मीदवारों को भाग्य आजमाने उतारेगी। इससे एनडीए और महागठबंधन के सियासी समीकरणों को झटका लग सकता है। मायावती और केजरीवाल की पार्टी पहले भी विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमा चुकी है।
मायावती लंबे समय तक उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रही। उन्होंने बिहार की राजनीति में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन उनकी उपस्थिति सीमित रही। उन्होंने 2005 और 2010 चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उनका वोट शेयर दो प्रतिशत से आगे नहीं बढ़ सका। इस बार के जातीय गणना से यह स्पष्ट हुआ कि प्रदेश में अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 16 प्रतिशत है। इस समीकरण को देखते हुए भाजपा ने भी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में कूदने का मन बना लिया है। अगर बसपा पांच से सात फीसद वोट भी काट लेती है तो प्रदेश के राजनीतिक समीकरण में बड़ा उलट फेर संभव है।
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शहरी क्षेत्रों पर आम आदमी पार्टी का फोकस
आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल की नजर भी बिहार विधानसभा चुनाव पर है। संगठन के मामले में भले ही आम आदमी पार्टी प्रदेश में मजबूत स्थिति में न हो पर उनके कुछ समर्थक चुनाव मैदान में उतर कर दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। केजरीवाल को दिल्ली और पंजाब में सरकार चलाने का अनुभव भी है। आम आदमी का फोकस ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा शहरी क्षेत्रों में है। इस पार्टी के समर्थक पहले भी बिहार के चुनाव में भाग्य आजमा चुके हैं। चुनाव में राजनीतिक लाभ मिले या न मिले पार्टी विस्तार का मौका अवश्य मिल जाता है। आम लोगों की जुबान पर फिर आम आदमी पार्टी की चर्चा होने लगेगी।
प्रशांत किशोर ने झोंकी अपनी ताकत
जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार का काम छोड़कर वर्ष 2022 से ही पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं। उन्होंने अपने संगठन को मजबूत करने के लिए पूरे प्रदेश की यात्रा भी की। उनका फोकस ग्रामीण क्षेत्र, महिलाओं और बेरोजगार युवा पर है। पलायन और शिक्षा में सुधार उनका प्रमुख एजेंडा है। उनके निशाने पर महागठबंधन और एनडीए दोनो रहते हैं। वे वोटरों को समझाते हैं कि इन दोनों गठबंधनों को बिहार की जनता ने पूरा मौका दिया, लेकिन पलायन और बेरोजगारी का मुद्दा आजतक हल नहीं हो पाया।
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वे कहते हैं कि एक भी औद्योगिक इकाई बिहार में स्थापित नहीं हो पाई है। चुनाव के पहले ही जन सुराज की गाड़ियां हर गली मोहल्ले में घूम रही हैं। जन सुराज सरजमीं पर जितना सक्रिय है, वह वोट के रुप में तब्दील होगा या नहीं यह वक्त बताएगा। बिहार की मतदाताओं को तीसरा राजनीतिक विकल्प भी मिल गया है। अगर चुनाव में जन सुराज का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो महागठबंधन और एनडीए का समीकरण बिगड़ सकता है।