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09 Nov 2025, (अपडेटेड 09 Nov 2025, 9:29 AM IST)
केंद्र सरकार ने जब वक्फ संशोधन अधिनियम संसद में पेश किया था, जेडीयू सांसदों ने इस कानून के समर्थन में कसीदे पढ़े थे। वक्फ पर साथ देना, कैसे NDA की मुश्किलें बढ़ा रहा है, आइए जानते हैं।
अररिया से जेडीयू उम्मीदवार शगुफ्ता अजीम। (Photo Credit: ShaguftaAzeem/X)
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में एनडीए के मुस्लिम उम्मीदवारों को वक्फ संशोधन कानून की वजह से अपने ही वर्ग के वोटरों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। संसद के बजट सत्र में जब वक्फ संशोधन अधिनियम को मंजूरी मिली, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यूनाइटेड) के कई नेताओं ने विरोध में इस्तीफे दिए। नीतीश कुमार की छवि सेक्युलर नेता के तौर पर रही है, वक्फ संशोधन विधेयक के बाद इस छवि को गहरा धक्का लगा। नीतीश कुमार से कई मुस्लिम साथी नाराज हो गए।
नीतीश कुमार से नाराज जेडीयू अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मोहम्मद शाहनवाज मलिक, पश्चिम चंपारण के जिला उपाध्यक्ष नदीम अख्तर, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव मोहम्मद तबरेज सिद्दीकी अलीग और भोजपुर से पार्टी सदस्य मोहम्मद दिलशान राईन ने इस्तीफा दिया था। सबके इस्तीफे में यह कहा गया था कि संसद से विधेयक के पारित होने के बाद मुसलमान जेडीयू से दूरी बरतेंगे, इसका चुनावी असर दिखेगा।
एनडीए के मुस्लिम प्रत्याशियों को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अप्रैल में संसद से पास हुए इस विधेयक को जेडीयू और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने समर्थन दिया था। दोनों दलों के इस फैसले से मुस्लिम बाहुल सीटों पर अब लोग नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।
कहां मुस्लिम उम्मीदवारों की बढ़ सकती हैं मुश्किलें?
जेडीयू ने इस बार अररिया, जोकिहाट, अमौर और चैनपुर में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। साल 2020 में यह आंकड़ा 11 था। अररिया से जेडीयू ने शगुफ्ता अजीम को उतारा है, उनके खिलाफ कांग्रेस ने अबीदुर रहमान को उतारा है। जोकीहाट से जेडीयू ने मंजर आलम को टिकट दिया है। उनके खिलाफ महागठबंधन प्रत्याशी शाहनवाज आलम हैं। अमौर में जेडीयू ने सबा जफर को उतारा तो कांग्रेस ने जलील मस्तान को टिकट दिया।
चैनपुर भी मुस्लिम बाहुल सीट है। यहां जेडीयू ने जमा खान को उतारा है, आरजेडी ने ब्रज किशोर बिंद हैं। दिलचस्प बात यह है कि यहां RJD की सहयोगी VIP ने बाल गोविंद सिंह को उतारा है। सिर्फ यही सीट ऐसी है, जहां एनडीए की स्थिति मजबूत है। दूसरी जगहों पर मुस्लिम-यादव समीकरण और वक्फ पर केंद्र का साथ देने से एनडीए की मुश्किलें बढ़ी हैं।
JDU के नेता दावा करते हैं कि बिहार में 20 फीसदी मुसलमान, नीतीश कुमार के कोर वोटर हैं। अब समीकरण बदल सकते हैं। जेडीयू के कोर वोटर मुस्लिम और यादव कहे जाते हैं। कांग्रेस भी अल्पसंख्यकों की राजनीति करती है। असदुद्दीन ओवैसी भी सीमांचल की सीटों पर दमखम के साथ लड़ रहे हैं। ऐसे में अल्पसंख्यक वोटरों के पास विकल्प की कमी नहीं है। वक्फ में लाए गए बदलावों को लेकर अल्पसंख्यक समाज के लोग सोशल मीडिया पर भी मुखर होकर लिख रहे हैं।
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घुसपैठिए पर बीजेपी नेताओं के तीखे बयानों की आलोचना क्यों नहीं?
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जमा खान सिर पर भगवा पगड़ी पहनकर प्रचार कर रहे हैं।
कैसे वक्फ पर खुद को बचा रहे NDA के मुस्लिम उम्मीदवार?
शगुफ्ता अजीम हों, मंजर आलम, सबा जफर या जमा खान, जब जमीन पर जा रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं तो सबसे अल्पसंख्यक समुदाय, इसे लेकर सवाल कर रहा है। इस सवाल से बचने के लिए वे विकास का तर्क दे रहे हैं। उनका कहना है कि नीतीश कुमार ने जंगलराज वाले दौर से बिहार को बाहर निकाला है। वक्फ में हुए संशोधन से वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन पारदर्शी हुआ है और केंद्र में एनडीए की बहुमत सरकार होने से यह कानून, बिना जेडीयू के समर्थन के भी पास हो जाता। वे विकास कार्यों का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं। अररिया से जेडीयू की उम्मीदवार शगुफ्ता अजीम कहती हैं कि लोग असहज सवाल पूछते हैं, लेकिन वे बताती हैं कि धार्मिक भावनाएं आहत नहीं हुईं और सभी समुदायों को योजनाओं का लाभ मिल रहा है।
चैनपुर में मंत्री मोहम्मद जमा खान भगवा पगड़ी पहनकर रैली कर रहे हैं। बीजेपी सांसद मनोज तिवारी अल्पसंख्यक बाहुल विधानसभाओं में हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते नजर आ रहे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के इकलौते मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद कलिमुद्दीन भी चुनावी मैदान में ऐसे सवालों का सामना करते हैं। उन्होंने बहादुरगंज की एक जनसभा में कहा कि वक्फ बोर्ड वाले ही लोगों को गुमराह कर रहे हैं। चिराग पासवान महागठबंधन पर मुस्लिमों को वोटबैंक बनाने का आरोप लगाते हैं। सभी अल्पसंख्यक बाहुल पांच सीटों पर 11 नवंबर को मतदान होगा। उससे पहले एनडीए सांसदों को जनता के तीखे सवालों का सामना करना पड़ रहा है।