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बिहार की कम मार्जिन वाली ये 7 सात सीटें बिगाड़ सकतीं कांग्रेस का खेल?

बिहार में पिछले चुनाव में कांग्रेस 19 सीटों पर जीती थी। इनमें से सात कम मार्जिन वाले सीटों पर पार्टी दोबारा मैदान में है। दो सीटों पर प्रत्याशियों को बदला है और पांच पर मौजूदा विधायकों पर भरोसा जताया है।

Priyanka Gandhi roadshow.

रोसड़ा में प्रियंका गांधी का रोड शो। (Photo Credit: X/@INCIndia)

बिहार में मतदान की तारीख नजदीक आते ही सियासी माहौल और गर्माने लगा है। सभी दलों ने पहले चरण के मतदान से पहले अपना पूरा जोर लगा दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुल 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। इनमें से 9 सीटों पर उसके प्रत्याशी पांच हजार से भी कम मतों से जीते थे। अबकी बार कांग्रेस ने कम मार्जिन वाली 9 में से सिर्फ 7 सीटों पर ही अपने प्रत्याशी उतारे हैं। उसने दो सीटें छोड़ दी हैं। इनमें से एक सीट से आरजेडी और दूसरे पर इंडियन इनक्लूसिव पार्टी चुनाव लड़ रही है। विधायकों के खिलाफ जनता की नाराजगी से कांग्रेस भी परिचित है।

 

यही कारण है कि उसने कम मार्जिन वाली खगड़िया और किशनगंज सीट पर अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं। मतलब यह है कि कम मार्जिन वाली सिर्फ पांच सीटों पर ही कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायकों पर भरोसा जताया है। इनमें से दो सीट औरंगाबाद और बक्सर पर 2015 व भागलपुर पर 2014 से उसका कब्जा है।  वहीं किशनगंज सीट पर कांग्रेस 2010 से लगातार जीत रही है। आइये जानते हैं इन सीटों का समीकरण।

 

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औरंगाबाद विधानसभा: 2020 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी आनंद शंकर सिंह को जीत मिली थी। कांटे के मुकाबले में बीजेपी उम्मीदवार रामाधार सिंह को महज 2,243 से हार का सामना करना पड़ा था। 18,444 मतों के साथ बीएसपी के अनिल कुमार तीसरे स्थान पर थे। आनंद शंकर को 70,018 और रामाधार सिंह को 67,775 वोट मिले थे। अबकी बार कांग्रेस ने आनंद शंकर पर तीसरी बार भरोसा जताया है। वे 2015 से विधायक हैं। कई बार मौजूदा विधायकों के खिलाफ जनता में नाराजगी होती है। अगर ऐसा हुआ तो औरंगाबाद सीट पर कांग्रेस की मुश्किल बढ़ सकती है।

 

भागलपुर विधानसभा: यहां साल 2014 से कांग्रेस के अजीत शर्मा का कब्जा है। 2015 में अजीत ने 10,658 मतों के अंतर से चुनाव जीता था। मगर 2020 में जीत का अंतर महज 1,113 रह गया। इससे साफ है कि उनकी लोकप्रियता में कमी आई है। आंकड़ों के लिहाज से भागलपुर सीट पर कांग्रेस की अग्निपरीक्षा है। पिछले चुनाव में अजीत शर्मा को कुल 65,502 वोट मिले। उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार रोहित पांडेय के पक्ष में 64,389 लोगों ने वोटिंग की। खास बात यह है कि एलजेपी प्रत्याशी को 20,523 वोट मिले। इस चुनाव में बीजेपी और एलजेपी एक साथ हैं। अबकी अजीत शर्मा का मुकाबला फिर रोहित पांडेय से है।

 

बक्सर विधानसभा: यह सीट भी कांग्रेस की उन सीटों में शामिल हैं, जहां उसके प्रत्याशियों को पांच हजार से कम मतों के अंतर से जीत मिली। 2015 से कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी लगातार दो बार के विधायक हैं। पार्टी ने तीसरी बार उनको टिकट दिया है। 2020 के चुनाव में संजय को सिर्फ 3,892 वोट से जीत मिली थी, जबकि 2015 में उनकी जीत का अंतर 10,181 मतों का रहा है। जीत के अंतर में आई कमी, न केवल संजय कुमार बल्कि कांग्रेस की भी मुश्किल बढ़ा सकती है। 2020 में संजय कुमार को कुल 59,417 वोट मिले थे। बीजेपी प्रत्याशी परशुराम चौबे को 55,525 मत मिले थे। बीजेपी की हार में 30,489 मत पाने वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) का बड़ा योगदान था। अबकी आरएलएसपी बीजेपी के साथ चुनाव मैदान में है।

 

करगहर विधानसभा: पिछले चुनाव में यहां कांग्रेस पहली बार जीती। संतोष कुमार मिश्र ने 4,083 मतों के अंतर से जेडीयू को शिकस्त दी थी। कांग्रेस ने संतोष कुमार को दूसरी बार टिकट दिया है। उनका सामना दूसरी बार जेडीयू के बशिष्ठ सिंह से होगा। 2015 में बशिष्ठ सिंह पहली बार विधायक बने थे। मगर पिछले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। यहां भी एलजेपी ने ही जेडीयू का खेल बिगाड़ा था। एलजेपी प्रत्याशी राकेश कुमार सिंह को कुल 16,988 वोट मिले थे। अबकी चुनाव में एलजेपी साथ है। इसका फायदा जेडीयू को मिल सकता है। बीएसपी ने उदय प्रताप सिंह को दोबारा टिकट दिया है। पिछले चुनाव में वह 47,321 मतों के साथ तीसरे स्थान पर थे।     

 

खगड़िया विधानसभा: कांग्रेस ने अबकी बार मौजूदा विधायक छत्रपति यादव की जगह चंदन कुमार यादव को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में छत्रपति को कुल 46,980 वोट मिले थे। उन्होंने सिर्फ 3,000 के अंतर से चुनाव जीता था। जेडीयू की पूनम यादव 43,980 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। यहां भी एलजेपी की रेनू कुमारी ने 20,719 वोट झटके थे। अबकी चंदन यादव के सामने जेडीयू ने बबलू कुमार को मौका दिया है।

 

किशनगंज विधानसभा: 2020 में कांग्रेस के इजहारुल हुसैन ने 1,381 मतों से चुनाव जीता था। यही वजह है कि अबकी बार कांग्रेस को अपना प्रत्याशी बदलना पड़ा। पार्टी ने मोहम्मद कमरुल होदा को टिकट दिया है। बीजेपी ने अबकी बार भी स्वीटी सिंह को उतारा है। कमरुल होदा ने पिछला चुनाव ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से लड़ा था। तब उन्हें बीजेपी प्रत्याशी से कम, लेकिन 41,904 वोट मिले थे।

 

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राजा पाकर विधानसभा: पिछले चुनाव में यहां हार जीत का फैसला 1,796 मतों से हुआ था। कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिमा कुमारी को 54,299 वोट मिले थे। उनके सामने उतरे जेडीयू के महेंद्र राम को 52,503 मतों से ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस ने मौजूदा विधायक प्रतिमा कुमारी को दोबारा टिकट दिया है। उनके सामने इस बार भी महेंद्र राम होंगे। पिछले चुनाव में एलजेपी को मिले 24,689 वोट ने प्रतिमा की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। मगर अबकी जेडीयू के साथ गठबंधन में एलजेपी के आने का खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है। 

कांग्रेस ने पीछे खींचे कदम

जमालपुर विधानसभा: पिछले चुनाव में कांग्रेस के अजय कुमार सिंह ने जीत हासिल करके जमालपुर में जेडीयू का 15 साल दबदबा तोड़ा। अजय को कुल 57,196 वोट मिले। जेडीयू के शैलेश कुमार को 52,764 मतों से संतोष करना पड़ा था। एलजेपी के दुर्गेश कुमार सिंह ने 14,643 वोट झटके। जेडीयू की हार में एलजेपी की अहम भूमिका थी। अबकी बार यहां से सिर्फ जेडीयू के नचिकेता मैदान में हैं। उनका मुकाबला अबकी महागबंधन के प्रत्याशी नरेंद्र कुमार से होगा। इंडियन इनक्लूसिव पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है।

 

महाराजगंज विधानसभा: 2020 में कांग्रेस की टिकट पर विजय शंकर दुबे ने सिर्फ 1,976 मतों से चुनाव जीता था। जेडीयू के हेम नारायण साह को 46,849 वोट मिले थे। इस बार भी पार्टी ने साह पर भरोसा जताया है, जबकि कांग्रेस ने यह सीट अब आरजेडी के खाते में दे दी है। तेजस्वी यादव ने विशाल कुमार जायसवाल को उतारा है। हेम नारायण साह 2015 में यहां से चुनाव जीत चुके हैं। 

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