बिहार में विधानसभा सीटों की गिनती जब शुरू होती है तो वह पश्चिमी चंपारण जिले की वाल्मीकि नगर सीट से ही होती है। उत्तर प्रदेश के महाराजगंज और कुशीनगर से सटा यह इलाका नेपाल और भारत की सीमा पर बसा हुआ है। कुछ जगहों पर गंडक नदी इस विधानसभा क्षेत्र की सीमा भी तय करती है। गंडक नदी की बाढ़, सुविधाओं की कमी और उच्च शिक्षा के लिए मूलभूत ढांचे की मांग इस विधानसभा के लिए काफी पुरानी है। इस जगह को महर्षि वाल्मीकि से भी जोड़ा जाता है और उन्हीं के नाम पर यहां वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान भी है। राजनीतिक तौर पर भी ज्यादातर दल अपने अभियान की शुरुआत यहीं से करते रहे हैं।
2008 में नई विधानसभा सीट बनने से पहले यह सीट धनहां विधानसभा क्षेत्र में आती थी। जब परिसीमन हुआ तो गंडक पार के कुछ इलाकों को लेकर नई विधानसभा वाल्मीकि नगर बनी। इस विधानसभा सीट पर अनुसूचित जनजाति के वोटर अच्छी-खासी संख्या में हैं और थारू जनजाति के लोग निर्णायक साबित होते रहे हैं। हालांकि, यह सीट सामान्य श्रेणी में है। विधानसभा की अधिकतर आबादी ग्रामीण है और पिछले चुनाव में तो सभी बूथ भी ग्रामीण ही थे। 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस विधानसभा की लगभग एक तिहाई जनसंख्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की है। वहीं, लगभग 10 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता भी हैं।
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मौजूदा समीकरण?
फिलहाल, यह सीट जनता दल (यूनाइटेड) के कब्जे में है और धीरेंद्र सिंह विधायक हैं। लगातार दो बार कांग्रेस पार्टी यहां से चुनाव हार चुकी है। अब जेडीयू और बीजेपी साथ में ही हैं तो उम्मीद है कि यह सीट जेडीयू के ही खाते में ही रहेगी। वहीं, कांग्रेस भी इस सीट को अपने ही खाते में रखेगी। धीरेंद्र सिंह की जीत और उनकी पकड़ को देखते हुए इस बात की भी उम्मीद है कि वही यहां से एक बार फिर चुनाव लड़ें। ऐसे में कांग्रेस या राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को एक ऐसा उम्मीदवार उतारने के बारे में सोचना होगा जो धीरेंद्र सिंह को चुनौती दे सके।
2020 में क्या हुआ था?
2015 में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन के चलते यह सीट कांग्रेस के खाते में थी और इरशाद हुसैन चुनाव लड़े थे। तब धीरेंद्र प्रताप सिंह ने निर्दलीय लड़कर चुनाव जीत लिया था। 2020 में जेडीयू ने धीरेंद्र प्रताप सिंह को अपने टिकट पर चुनाव लड़वाया। कांग्रेस ने एक और दांव खेला और अपने टिकट पर इसी सीट के पूर्व विधायक राजेश सिंह को मैदान में उतारा। राजेश सिंह भी पहले JDU में ही थे।
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इस सीट पर पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) और मायावती ने बहुजन समाज पार्टी ने भी अच्छे-खासे वोट बटोरे। नतीजे आए तो कांग्रेस के राजेश सिंह 53,321 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे। इस बार धीरेंद्र प्रताप सिंह के वोटों में इजाफा हुआ और वह 74,906 वोट पाकर चुनाव जीत गए।
विधायक का परिचय
मौजूदा विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह इस सीट से लगातार तीन चुनाव लड़ चुके हैं। 45 साल के धीरेंद्र प्रताप सिंह दो बार चुनाव जीते हैं तो एक चुनाव हारे भी हैं। 2010 में वह बहुजन समाज पार्टी (BSP) के टिकट पर चुनाव लड़े थे। भले ही वह अपना पहला चुनाव हारे हों लेकिन धीरेंद्र प्रताप सिंह ने कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल किए थे और तीसरे नंबर पर रहे थे। यही वजह रही कि अगले चुनाव में वह निर्दलीय लड़ने के बावजूद चुनाव जीतने में सफल रहे।
धीरेंद्र प्रताप सिंह ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सत्यवती कॉलेज से बीए और दिल्ली यूनिवर्सिटी की लॉ फैकल्टी से LLB की डिग्री हासिल की है। उनके चुनावी हलफनामों के मुताबिक, उनकी आय का स्रोत विधायक के रूप में उनका वेतन, खेती से जुड़ा व्यवसाय, कमर्शियल गाड़ियां और पेट्रोल पंप है। बिहार विधानसभा की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, धीरेंद्र प्रताप सिंह दो प्राक्कलन समितियों के सदस्य भी रहे हैं।
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विधानसभा का इतिहास
2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई यह सीट भले ही नई मानी जाती हो लेकिन इसका इतिहास पुराना है। इस पर अभी तक कुल 3 ही चुनाव हुए हैं।
- 2010- राजेश सिंह (JDU)
- 2015- धीरेंद्र प्रताप सिंह (निर्दलीय)
- 2020- धीरेंद्र प्रताप सिहं (JDU)