वादा- भोजपुरी को मान्यता
हम भोजपुरी भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे।
दिल्ली की लगभग एक तिहाई सीटों पर पूर्वांचली मतदाता अच्छी-खासी संख्या में हैं। दिल्ली की लगभग 20 से 25 प्रतिशत जनसंख्या पूर्वांचली लोगों की ही है। कई सीटों पर तो पूर्वांचली मतदाताओं की संख्या 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है। ऐसे में लंबे समय से भोजपुरी भाषा का मुद्दा भी चुनाव में उठता रहा है। भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची का मुद्दा दिल्ली के अलावा बिहार और उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी उठता रहा है। 2020 में AAP ने पूर्वांचली मतदाताओं को लुभाने के लिए वादा किया कि वह भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएगी।
यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का काम पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार में आता है। दिल्ली या किसी भी दूसरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की सरकार इस पर कुछ नहीं कर सकती है। जुलाई 2024 में गोरखपुर से बीजेपी के सांसद रवि किशन ने भोजपुरी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए संसद में प्राइवेट मेंबर बिल पेश करके मांग उठाई।
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AAP ने 5 साल में क्या किया?
भले ही AAP ने अपने मैनिफेस्टो में इस पर वादा किया हो लेकिन न तो भोजपुरी भाषा को लेकर दिल्ली विधानसभा में चर्चा हुई और न ही AAP की दिल्ली सरकार या उसके किसी सांसद ने भोजपुरी भाषा का मुद्दा संसद में उठाया। बुराड़ी विधानसभा सीट से विधायक संजीव झा ने 2024 में मैथिली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने का आग्रह करते हुए अमित शाह को चिट्ठी जरूरी लिखी थी। इस चिट्ठी को उनकी ओर से संस्कृति मंत्रालय को भेज दिया गया। दिल्ली के पास अपनी मैथिली-भोजपुरी अकादमी जरूर है लेकिन उसका गठन 2008 में ही हो चुका था।
8वीं अनुसूची में शामिल करने से होगा क्या?
अगर किसी भी भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो भाषाई अस्मिता की पहचान पुख्ता होती है। साथ ही, साहित्य अकादमी जैसे संस्थान भी उस भाषा को मान्यता देते हैं, भाषा के विकास के लिए सरकारी अनुदान मिल सकता है। साथ ही, UPSC जैसी परीक्षाओं में भी वह भाषा शामिल होती है और उस भाषा को बोलने और लिखने वाले लोगों को फायदा होता है।
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पंजाबी-उर्दू को मिली अहमियत
भोजपुरी भाषा से इतर दिल्ली सरकार ने दिसंबर 2024 में फैसला किया कि अब दिल्ली में लगने वाले साइन बोर्ड, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा उर्दू और पंजाबी (गुरुमुखी) में भी लिखे जाएंगे। बता दें कि दिल्ली आधिकारिक भाषा अधिनियम, 2000 के तहत हिंदी को पहली आधिकारिक भाषा और उर्दू, पंजाबी को दूसरी आधिकारिक भाषा के तौर पर मान्यता मिली हुई है। इस आधेश के मुताबिक, अब दिल्ली के मेट्रो स्टेशन, अस्पताल, सरकारी उद्यान और अन्य सरकारी इमारतों पर चारों भाषाओं में नाम लिखे जाएंगे।