दास्तान-ए-बॉलीवुड: हीरो बनने आए कलाकारों के संघर्ष का किस्सा क्या है?
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• MUMBAI 16 Jan 2025, (अपडेटेड 01 Jun 2025, 9:03 AM IST)
जिन सितारों की एक झलक के लिए लोग तरस जाते हैं, कभी उनके बनने की कहानी सुनी है? वही तो हम सुनाने आए हैं। ये कहानी ऐसे 'अभिमन्यु' की है, जो 'मायानगरी' का चक्रव्यूह तोड़ रहा है।

अभिमन्यु सरकार। (Photo Credit: Khabargaon)
मुंबई को 'मायानगरी' बनाने वाले दादा साहेब फाल्के ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा, जैसी दुनिया वह रचने जा रहे हैं, उसका इतना क्रेज होगा कि लाखों लोग वहां 'पैदा' हुए किसी एक सितारे की झलक पाने के लिए बेताब हो जाएंगे। किसी हीरो के घर के बाहर सैकड़ों लोग जमा रहेंगे, भले ही उन पर लाठियां क्यों न चल जाएं। किसी की दीवानगी में इतने खो जाएंगे कि चाहे वही 'महबूब' थप्पड़ जड़ दे तो उन्हें फर्क न पड़े।
दादा साहेब फाल्के ने तो यह भी नहीं सोचा होगा कि यहां काम करने वाले कलाकारों का स्टारडम इतना हो जाएगा कि उन्हें बचाने के लिए सरकार को 'Z प्लस' सिक्योरिटी देनी पड़ेगी। दिलीप कुमार से शुरू हुए 'सुपरस्टार' टर्म को धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, सनी देओल, शाहरुख खान, सलमान, अक्षय कुमार, अजय देवगन और आमिर जैसे सितारों ने नई ऊंचाइयां दीं। इनकी एक झलक के लिए लोग बेताब हो जाते हैं।
इनकी फिल्में करोड़ों कमाती हैं, बॉक्स ऑफिस पर पैसे बरसते हैं, हजारों-करोड़ की ये इंडस्ट्री है। फैशन, मॉडलिंग, रियल स्टेट, कहां-कहां सितारों को नहीं भुनाने की कोशिश की जाती है। क्या यहां हर कोई सितारा बन पाता है? जवाब सबको पता है। चकाचौंध वाली इस दुनिया में कई सितारे आते हैं, जिनके नसीब में गुमनामी ही लिखी होती है। वे जिंदगीभर इस इंडस्ट्री को देते हैं लेकिन उन्हें मिलता कुछ नहीं है।
मायानगरी के इन्हीं गलियों ने कुछ सितारों को आगे बढ़ते हुए देखा है। अभिमन्यु सरकार भी उनमें से एक हैं। उन्होंने कई फिल्मों में काम किया। कुछ फिल्मों में उनके रोल पर कैंची चली, कुछ फिल्मों में 'बिग स्टार' के टैग वाले हीरोज ने उनके रोल पर कैंची चलवा दी।
सितारों के बनने की राह कितनी आसान?
अभिमन्यु बताते हैं, 'कहानी मुश्किल है दोस्त। साल 2009 में जब मैं मुंबई में आया था घर से ये सोचकर आया था कि अच्छी एक्टिंग करनी है। हॉलीवुड एक्टर शॉन बीन, ह्युजैक मैन से लेकर नसीरुद्दीन शाह और मनोज बाजपेयी तक के अभिनय की बारीकियां सीख रहा था। मुझे इनकी तरह एक्टिंग नहीं करनी थी। अभिनय में मेरा अपना तरीका है, जिसके क्राफ्ट पर मैं 10 साल से काम कर रहा हूं। जब मैं यहां आया था तो मेरे पास कुछ नहीं था, आज मेरे पास 15 साल का अनुभव है, जो मुझे हर दिन बेहतर बना रहा है।'
अभिमन्यु सरकार बताते हैं, 'मुंबई आते ही मुझे काम नहीं मिल गया। काम के सिलसिले में महीनों तक भटका हूं। खुद्दार हूं, पिता प्रोफेसर हैं, जमींदार परिवार से रहा हूं, गोरखपुर में सियासी रसूख भी है लेकिन मुझे किसी से कोई मतलब नहीं था। मुझे अपनी पहचान बनानी थी। मैंने ठान लिया था कि मुझे सबकुछ अपने दम पर हासिल करना है। वर्सोवा में आकर मैंने दोस्त तलाशे। एक छोटे से फ्लैट में महीनों रहा, काम ढूंढता रहा। हर दिन तैयार होता, फोटोशूट कराता, ऑडिशन पर निकलता। सफलता 2012 तक नहीं मिली। कुछ छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स मिले तो मैंने एक छोटी सी कार खरीद ली। इस कार ने मेरी जिंदगी बदल दी।'

अभिमन्यु बताते हैं, 'हर दिन में घिसट रहा था। कई बार ऐसा लगता कि कहां आ गए हैं, जहां मेरी जिंदगी का कोई मकसद ही नहीं है। एक दिन मुझे बता चला कि जिस घर में रह रहा हूं, वहां का कॉन्ट्रैक्ट ही खत्म हो गया है। मकान मालिक ने कहा कि निकल जाओ। अचानक मैं 1.50 लाख की व्यवस्था कहां करूं। 50 हजार किराया, 50 हजार ए़जवांस, ब्रोक्रेज चार्ज। घर से पैसे मंगा नहीं सकता था। खुद्दार था। अपना सारा समान कार में डाल दिया। किसी दिन पार्किंग में कार लगाकर सो जाता, किसी दिन किसी दोस्त के यहां चला जाता, किसी दिन रिश्तेदार के यहां। ऐसे करके मैंने 6 महीने निकाल दिए।'
अभिमन्यु बताते हैं कि यहां काम मिलने में कुछ लोग सबसे बड़ी बाधा हैं। कास्टिंग के नाम पर सबसे बड़ा स्कैम बॉलीवुड में चलता है। जिन लोगों को कास्टिंग करने की जिम्मेदारी प्रोडक्शन हाउस सौंपता है, वे खुद को ही कास्ट करने लगते हैं। कई 'बड़े नाम' नाम इसमें शामिल हैं। ये लोग कास्टिंग के लिए अखबार में विज्ञापन देते हैं, सोशल मीडिया पर सीवी मंगाते हैं लेकिन ऑडिशन ही नहीं लेते। अपनों को काम दे देते हैं। कलाकार यहीं टूट जाता है। कई कलाकारों ने 'कनफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट' का आरोप कुछ चर्चित अभिनेताओं पर लगाया था।
अभिमन्यु बताते हैं कि बॉलीवुड में कास्टिंग के नाम पर 'गिरोह' सक्रिय हैं। उन्होंने प्रोडक्शन हाउस की बेइमानी पर भी बात की। अभिमन्यु बताते हैं, 'कॉन्ट्रैक्ट करेंगे कि आपको 9 से 10 लाख रुपये देंगे। जब आप फिल्में शूट कर लेते हैं, कई दिन अपना जाया कर लेते हैं तो आधी पेमेंट दी जाती है। बार-बार बाकी के लिए टाला जाता है। कुछ तो बिलकुल भी नहीं देते हैं। ऐसा कई नामी प्रोडक्शन हाउस भी करते हैं। वह बताते हैं कि उन्हें कई प्रोडक्शन हाउस ने सिर्फ इसलिए बैन कर दिया कि उन्होंने पैसा मांगा था। सिंटा भी इस मामले में मूक दर्शक बना रहता है।
अभिमन्यु बताते हैं कि चुनौती सिर्फ इतनी ही नहीं है। अगर आप किसी के फेवरिट नहीं है, नेपो किड नहीं हैं तो आपके सामने हजार दिक्कतें आएंगी। आपके पास पैसे नहीं होते, आपकी घरवाले भी मदद नहीं कर पाते हैं। कुछ फिल्मों में, टीवी सीरियल्स में आप अगर नजर आ चुके हैं तो बिलो द बेल्ट काम भी नहीं कर सकते हैं। ऐसे में कई ऐक्टर होते हैं जो बॉलीवुड छोड़कर दूसरा काम करने लगते हैं।
अभिमन्यु बताते हैं कि उनके 9 दोस्तों ने उनके साथ एक्टिंग की शुरुआत की थी। बाकी लोग छोड़कर चले गए। कुछ लोग यहां सर्वाइव करने के लिए 'जिगोलो' तक बन गए। कुछ लोग डिलीवरी एजेंड बने, कुछ आज भी हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो शेफ बन गए हैं। सबका मकसद है कि कब एक मौका मिल जाए और किस्मत चमक जाए।

अभिमन्यु ने कहा, 'मेरा एक राइटर दोस्त है। कई शोज में वह काम कर चुका है। उसकी मां आज भी बर्तन धुलती है। वह खुद भी एक कंपनी में नौकरी करता है। उसे जब भी कोई मौका मिलता है तो स्क्रिप्ट पर काम करने लगता है। वह काम सिर्फ इसलिए कर रहा है कि सर्वाइव कर सके। मंजिल तो बॉलीवुड ही है। धाक जमाकर ही लौटना है।'
अभिमन्यु बताते हैं कि यहां लगना पड़ेगा। यहां कोई आपके लिए अपने पैसे डुबाने को तैयार नहीं होगा। आपको खुद साबित करना होगा कि आप बेहतर हैं। नवाजुद्दीन से लेकर पंकज त्रिपाठी और दुर्गेश पाठक तक, किसी की कहानी आसान नहीं है। सबने एड़ियां रगड़ी हैं, फिर चमके हैं। यहां धोखा है, साजिश है, लूट है लेकिन सच बात यह भी है कि अगर आपने बॉलीवुड को कुछ दिया है तो बॉलीवुड आपको रिटर्न जरूर करता है। साजिशें दबती हैं, अभिनेता संघर्षों में तपकर चमकता है। अब बड़े पर्दे से भी इतर कई विकल्प हैं, जहां कलाकारों के लिए अनगिनत अवसर हैं। अगर आपके पास पैसे हैं तो आपका सिक्का जरूर चलेगा।
अभिमन्यु बताते हैं कि कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें फिल्मों में काम नहीं मिला तो कंप्रोमाइज पर उतर गए। कंप्रोमाइज एक तरह का सेक्सुअल फेवर है, जिसका मुद्दा आए दिन बॉलीवुड में उठता है। पुरुष और महिला दोनों कलाकारों के सामने ऐसे प्रस्ताव आते हैं। अब उन्हें चुनना होता है कि अपने सफर को कहां ले जाना है। वह कंप्रोमाइज करके वक्ती लाभ लेते हैं या संघर्ष करके अपने क्राफ्ट को बेहतर करते हैं। बॉलीवुड में कंप्रोमाइज, कास्टिंग काउच एकदम नया ट्रेंड नहीं है। यह दशकों से होता रहा है, आगे भी होता रहेगा।
अभिमन्यु सरकार बताते हैं, 'एक्टिंग की दुनिया आसान नहीं है। यहां की चकाचौंध आपको लुभाती जरूर है लेकिन इसकी कीमत होती है। आपको जुनून की हद तक काम करना पड़ता है। अगर आपमें बार-बार रिजेक्शन झेलने की क्षमता नहीं है तो इस इंडस्ट्री में सर्वाइव नहीं कर सकते हैं। अगर आप रिजेक्शन से घबराते नहीं हैं, अपने क्राफ्ट पर काम करते हैं तो आपका कोई विकल्प भी नहीं बन सकता है।'
B.Tech छोड़ एक्टर बने अभिमन्यु
अभिमन्यु मेरठ के राधा गोविंद इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक कर रहे थे। अच्छे स्टूडेंट थे। एक्टिंग का शौक बचपन से था। वे बताते हैं, 'कॉलेज के आखिरी साल लगा कि नहीं यार, अब पढ़ाई बाद में करेंगे, पहले एक्टिंग करेंगे। फिर क्या था, झोला उठाए और सीधे दिल्ली आए। यहां अलग-अलग थिएटर में काम किया। कहीं रिजेक्शन मिला, कहीं काम मिला लेकिन एक्टिंग की दुनिया से एक नाता बन गया।'
एक्टिंग में कैसे आए?
अभिमन्यु सरकार बताते हैं, 'मेरे पहले एक्टिंग गुरु बापी बोस रहे हैं। बापी दा के बारे में क्या बताऊं। वह एक्टिंग के चलते-फिरते स्कूल हैं। IITA, NSD और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स, सिडनी जैसे संस्थानों को भी पता है कि वह कौन हैं।'
अभिमन्यु बताते हैं कि बापी बोस का आर्ट वर्क की रिवोल्यूशनरी है। उन्हें संगीत नाटक अकादमी से नवाजा जा चुका है। दिल्ली में संघर्ष के दिनों में उन्होंने मुझे खूब सिखाया। जात्रा से लेकर, नटी बिनोदिनी, संन्यासी की तलवार, तुरुप का पत्ता, सुकरात और जूलियस सीजर जैसे नाटकों को उन्होंने निर्देशित किया है। इन नाटकों से मेरी एक्टिंग की समझ बेहतर हुई।
अभिमन्यु बताते हैं कि उनके दूसरे गुरु हैं राहुल बग्गा। राहुल बग्गा फिल्म इंडस्ट्री के चर्चित नाम हैं। उनसे जुड़ने का किस्सा भी दिलचस्प है। 2008 में जब बीटेक छोड़कर अभिमन्यु मेरठ से दिल्ली आए तो उन्होंने तय किया कि अब वे थिएटर करेंगे। एक दिन वह सीधे 'Act One' थिएटर ग्रुप पहुंच गए। वहां राहुल बग्गा से जाकर सीधे कहा, 'सर मुझे काम करना है।'
राहुल बग्गा ने अभिमन्यु को समझाया कि पहले काम करो। 3 से 4 संघर्ष करो फिर थिएटर से जुड़ना। कला की बारीकी सीखो। अभिमन्यु ने वहीं ठान लिया था कि अब जब लौटूंगा तो ठसक से लौटूंगा। साल 2014 में एक बार फिर राहुल बग्गा और अभिमन्यु टकराए। राहुल बग्गा ने उन्हें फिल्मी दुनिया की सच्चाई से रू-ब-रू कराया। एक्टिंग क्राफ्ट पर काम कराया। कुछ बारीकियां सिखाईं। अब राहुल बग्गा, अभिमन्यु सरकार के दोस्त हैं और दोनों कई प्रोजेक्ट्स में साथ काम कर चुके हैं।

अभिमन्यु सरकार बताते हैं, 'मैंने निर्देशन और अभिनय दोनों साथ साधा है। निर्देशन से आपको अभिनय की बेहतर समझ मिलती है। एक्टर पढ़ना छोड़ देता है, निर्देशक पढ़ता है। उसे अभिनय की जो बारिकियां पता होती हैं, अभिनेता चूक जाते हैं। दूसरी बात यह भी है कि अगर आप सिनेमा पसंद करते हैं, अभिनय में तत्काल सफलता नहीं मिल पा रही है तो निर्देशन में कोशिश कर सकते हैं। यहां कई बार ज्यादा मौके होते हैं।'
एक्टिंग सीखी कहां से है?
अभिमन्यु बताते हैं, 'एक्टिंग टुकड़ों में सीखी जाने वाली चीज है। ऑस्ट्रेलिया के एक साइकोलॉजिस्टहैं डॉ. सत्य प्रकाश। उन्हें फिल्मों का शौक है। वह कलाकारों को बॉडी लैंग्वेज सिखाते हैं। NSD के कुछ अलग-अलग थिएटर ग्रुप हैं। उनसे जुड़ा, डिक्शन पर काम किया, वॉइस मॉड्युलेशन सीखी। मैं अभिनेता हूं और जब तक मैं सीख रहा हूं, एक्टिंग की दुनिया में मेरे लिए मौके भी तभी तक हैं।'
किन फिल्मों नजर आ चुके हैं अभिमन्यु?
अभिमन्यु सरकार कई चर्चित फिल्मों में नजर आ चुके हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उत्सव सिंह, प्रियेश श्रीवास्तव और दीपेश सुमित्रा जैसे निर्देशकों के साथ की। अभिमन्यु सरकार ने अपने शुरुआती दिनों में शॉर्ट फिल्में खूब की हैं। अभिमन्यु सरकार को पहला बड़ा ब्रेक रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'द अटैक ऑफ 26/11' से मिला। साल 2013 में आई इस फिल्म में वह आतंकी बने थे। फिल्म की शुरुआत ही उनके डायलॉग से हुई है।
कबीर खान की साल 2015 में आई फिल्म बजरंगी भाई जान में भी वह नजर आ चुके हैं। मधुर भंडारकर की कैलेंडर गर्ल्स और बिजॉय नांबियार की साल 2015 में आई फिल्म वजीर में भी उन्होंने काम किया है। उन्होंने एआर मुरगदास की फिल्म अकीरा में भी काम किया है। वह दक्षिण भारत की कई फिल्मों में दिखे हैं।
अभिमन्यु कुछ हॉलीवुड प्रोजेक्ट्स में सहायक निर्देशक की भूमिका निभा चुके हैं। एंपटी मिरर, फायर हियर आर टू गो। 24 सीजन 1 भी है। कुछ फिल्मों की शूटिंग अभी जारी है।
नए कलाकारों को सलाह क्या है?
कलाकार ऑडिशन देते रहें। उन्हें ऑडिशन देने के हक से निर्देशक रोकें न। फेयर ट्रायल मिले। अपने क्राफ्ट पर काम करें। लगातार ऑडिशन देते रहें, वक्त होगा तो जिंदगी में बड़ा काम भी मिलेगा। जब तक रिजेक्शन हो रहा है, अपना ध्यान क्राफ्ट डेवलेप करने पर रखें।
फिल्म इंडस्ट्री से शिकायत क्या है?
साल 1958 में सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिशन (CINTAA) की स्थापना हुई। यह इंडियन ट्रेड युनियन एक्ट के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है और कलाकारों के हितों की बात करती है। फिल्मी दुनिया में काम कर रहे कलाकार इसके मेंबर होते हैं। इसमें एनरोल होने की फीस 35000 हजार से ज्यादा है। अभिमन्यु बताते हैं कि यह संस्था कलाकारों को उनके हक का पैसा नहीं दिला पाती है, जो प्रोडक्शन हाउस पचा के बैठ जाते हैं। इतनी तगड़ी जॉइनिंग फीस है लेकिन कलाकारों के लिए हेल्थ बीमा तक ये संस्था नहीं देती है।
कई कलाकार ऐसे हैं जो खाने-जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कई बीमार हैं कोई ख्याल तक करने वाला नहीं है। अगर यह नियामक संस्था है तो काम कलाकारों के लिए काम क्यों नहीं करती है। हर सेक्टर में कुछ संस्थाएं होती हैं जो अपने सदस्यों के लिए सरकारों से भिड़ जाती हैं। सिंटा में भी इसी सुधार की जरूरत है।
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