हिंदी सिनेमा के मशहूर लेखक जावेद अख्तर एक बार फिर चर्चा में है। पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी ने कुछ मुस्लिम समूहों के विरोध के बाद प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर के मुशायरे को स्थगित कर दिया है। मुस्लिम संगठनों ने दावा किया कि अख्तर की कुछ टिप्पणियों से समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। अकादमी ने चार दिन का कार्यक्रम आयोजित किया था जो 1 सितंबर से कोलकाता में शुरू होने वाला था।
अकादमी ने कार्यक्रम को रद्द करने का कोई ठोस कारण नहीं बताया है। अकादमी की सचिव नुजहत जैनब ने मंगलवार को भाषा को बताया, ‘किसी अनिवार्य कारण से, चार दिवसीय ‘मुशायरे’ को स्थगित करना पड़ा। हम नई तारीखों की घोषणा बाद में करेंगे।’ हालांकि जब कार्यक्रम को दोबारा रख जाएगा उसमें जावेद अख्तर शामिल होंगे या नहीं। इस बात को स्पष्ट नहीं किया गया।
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जावेद अख्तर से बयानों ने मुसलमानों को पहुंचाई ठेस
जमीयत-ए-उलेमा की राज्य इकाई के महासचिव मुफ्ती अब्दुस सलाम कासमी ने कहा, ‘जावेद अख्तर की कुछ हालिया टिप्पणियों ने मुसलमानों के एक वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। हमारा मानना है कि एक अल्पसंख्यक संस्थान होने के नाते पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी किसी ऐसे व्यक्ति को आमंत्रित कर सकती है जिसने आम धर्मनिष्ठ मुसलमानों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाई हो।’
जावेद अख्तर कोलकाता में नियमित रूप से साहित्यिक आयोजनों में शामिल होते रहते हैं। वह सभी धर्मों में कट्टरवाद के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं। वामपंथी छात्र संगठनों (एसएफआई, एआईएसएफ, आइसा, एआईडीएसओ, एआईएसबी, पीएसयू) के प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम के स्थगित होने की निंदा की है। साथ ही जावेद अख्तर को दिल्ली में हिंदी सिनेमा में उर्दू की भूमिका पर बोलने का निमंत्रण दिया है।
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संगठन ने कहा, 'जमीयत उलेमा ए हिंदी जैसे संगठन का विरोध करने की बजाय तृणमूल कांग्रेस सरकार ने इस कार्यक्रम को शर्मनाक तरीक से रद्द कर दिया। ऐसी धमकियों का विरोध करने के बजाय, सरकार ने आत्मसमर्पण का रास्ता चुना। यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्षता, कला, संस्कृति, बौद्धिक स्वतंत्रता और वैज्ञानिक सोच पर है। वामपंथी प्रगतिशील छात्रों के रूप में, हम किसी भी धर्म की कट्टरपंथी ताकतों के साथ किसी भी समझौते को स्वीकार करने से इनकार करते हैं।’