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CAA से भारत की नागरिकता मिली, पाकिस्तान से आए लोगों के लिए क्या बदला?

पाकिस्तान से लगभग एक दशक पहले आकर दिल्ली के मजनूं का टीला में बसे सैकड़ों लोगों को भारत की नागरिकता मिल चुकी है लेकिन हालात अभी भी वैसे ही हैं।

Majnu ka tila refugee camp

मजनूं का टीला कैंप की हालत बताते सार्वजनिक शौचालय, Image Credit: Khabargaon

27 अक्टूबर 2024 की दोपहर में इस मोहल्ले की गलियां खाली हैं। मोहल्ले के ठीक बाहर से गुजरती दिल्ली की रिंग रोड पर तेज चलते ट्रैफिक का शोर गली के अंदर आते-आते बंद हो जाता है। रिंग रोड से इस बस्ती में घुसते ही बाईं तरफ सामुदायिक शौचालय बना है जिसका शायद कभी इस्तेमाल नहीं किया गया। इसके बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि वे प्रशासन से अपील कर चुके हैं कि इसे हटा दिया जाए लेकिन यह यहीं मौजूद है। इसे हटाने की मांग करने वाले लोगों को इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि उन्होंने अपने-अपने घरों में शौचालय बना लिए हैं। यह दृश्य दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके का है, जहां पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी बसे हुए हैं। कई सालों से यहां रह रहे लोगों के जीवन में इन 10-12 सालों में ज्यादा कुछ नहीं बदला है। हां, कुछ लोग अब पाकिस्तानी के बजाय हिंदुस्तानी जरूर हो गए हैं।

 

देश में चल रहे लोकसभा चुनाव के बीच 15 मई को जब दिल्ली में रह रहे 14 शरणार्थियों का दर्जा बदल गया तो मजनूं के टीले की इस बस्ती में खुशी की लहर दौड़ गई थी। तमाम चेहरे इस उम्मीद में खिल उठे थे कि अब शायद उनके 'अच्छे दिन' आ जाएंगे। पाकिस्तान से आकर ऐसी बस्तियों में रहने लगे हिंदुओं में से 14 लोगों को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता दी गई थी। केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने इन लोगों को अपने हाथ से नागरिकता वाले सर्टिफिकेट सौंपे थे। तब जगी उम्मीदें अब काफी हद तक स्थिर हो चुकी हैं। उम्मीदें मरी तो नहीं हैं लेकिन 15 मई को उन्हें जो पंख लगे थे, अब उनमें शांति आ गई है। इस बस्ती में रहने वाले लोग एक बार फिर लंबे इंतजार में डूब गए हैं। 

Google Map
यमुना नदी के किनारे पर बसा है मजनूं का टीला कैंप, Source: Google Maps

 

नागरिकता मिलते ही मंडराया घर गंवाने का डर

 

एक तरफ नागरिकता मिलने की खुशी है दूसरी तरफ घर के नाम पर जिन टूटे-फूटी इमारतों में ये लोग रह रहे हैं उनके छिनने का डर है। जुलाई 2024 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने थोड़ी ही दूर पर स्थित खैबर पास इलाके में कुछ घरों पर बुलडोजर चलाए थे। इसी के बाद डीडीए ने मजनूं का टीला इलाके में एक नोटिस लगाया था। इस नोटिस में लिखा गया था, 'आदेश के अनुपालन में गुरुद्वारा मजनू का टीला के दक्षिण में यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में अतिक्रमण के खिलाफ एक विध्वंस अभियान शनिवार और रविवार को चलाया जाना है। प्रभावित परिवार दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) के शेल्टर में अस्थायी रूप से शरण ले सकते हैं।'

 

रिपोर्ट के मुताबिक, डीडीए ने 3 अप्रैल 2024 के एनजीटी के आदेश और दिल्ली हाईकोर्ट के 12 मार्च के आदेश के आधार पर यह कार्रवाई प्रस्तावित की थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि तब से अब तक यह मामला अदालत में चल रहा है और यह कार्रवाई फिलहाल रोक दी गई है। इस नोटिस और खैबर पास के बुलडोजर एक्शन को याद करते हुए इसी कैंप में रहने वाले चांद राम बताते हैं, 'पहले तो सिर्फ इतना ही था कि हमारे पास नागरिकता नहीं थी लेकिन अब लग रहा है कि हमारा घर भी छिन जाएगा।' हालांकि, इस बस्ती में रहने वाले लोग बीते एक दशक में जो देख चुके हैं उसके आगे डीडीए का बुलडोजर एक्शन छोटी ही चीज है।

Majnu ka Tila Camp
यहां सड़क के नाम पर जमीन पर पड़ा मलबा ही है, Source: Khabargaon

 

 

खबरगांव से बातचीत में लगभग हर शख्स ने कहा कि यहां तकलीफें जरूर हैं लेकिन जान का खतरा नहीं है। लोगों का कहना है कि डीडीए के उस नोटिस को छोड़ दें तो इस कैंप के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। पाकिस्तान को याद करते हुए स्थानीय लोग बताते हैं कि गरीबी वहां थी, यहां भी है लेकिन यहां बेवजह का अत्याचार नहीं है। लोग टूटी सड़कों वाली बस्ती में टिन शेड और गाटर-पटिया वाले घरों में रह रहे हैं लेकिन खुश हैं। 

कागज बनवाने में हो रही समस्या

 

इसी कैंप में एक छोटी सी दुकान चलाने वाले चांद राम कहते हैं कि ज्यादातर लोगों ने शुरुआत में ही आधार कार्ड बनवा लिए थे। इसी के आधार पर बच्चों को बगल के स्कूल में एडमिशन मिल जाता है। कुछ बच्चे पढ़ने भी जाते हैं। पाकिस्तान से 30-40 साल की उम्र में भारत आए लोगों का कहना है कि उनकी जिंदगी तो बर्बाद हो गई लेकिन अब उम्मीद है कि उनके बच्चों की जिंदगी संवर जाएगी। बच्चे इस उम्मीद के लिए मेहनत करते भी दिखे। हमने देखा कि एक छोटे से कमरे में एक एनजीओ की ओर से आई दो टीचर कुछ बच्चों को पढ़ा रही थीं। ये बच्चे स्कूल तो जाते ही हैं, एनजीओ की ओर से आने वाली इन टीचर से ट्यूशन भी पढ़ लेते हैं।

 

चांद राम ने बताया कि बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनके आधार कार्ड में किसी न किसी तरह की समस्या है, ऐसे में उनके वोटर कार्ड नहीं बन पा रहे हैं। चांद राम समेत कुछ लोगों ने यह भी बताया कि वोटर कार्ड तो बनाए ही नहीं जा रहे हैं। इस बारे में हमने मुख्य चुनाव अधिकारी के दफ्तर में डिप्टी चीफ इलेक्टोरल ऑफिसर ललित मित्तल से बात की। उन्होंने बताया, 'अगर उनके पास गृह मंत्रालय की ओर से मिला सर्टिफिकेट है और कोई वैध एड्रेस प्रूफ है तो वोटर कार्ड बन जाएगा।' वहीं, असिस्टेंट कमिश्नर और चांदनी चौक विधानसभा के इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) मनोज कुमार ने इसी को और विस्तार से समझाते हुए कहा, 'हमें इनके आवेदन गृह मंत्रालय से वेरिफाई कराने होते हैं, ऐसे में दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले जिनको अपने नाम वोटर लिस्ट में डलवाने हों, वे जल्द से जल्द आवेदन कर दें।'

 

चांद राम आगे बताते हैं, 'हम तो पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन जो थोड़ा बहुत पढ़कर पाकिस्तान से आए हैं, उनके लिए समस्या और गंभीर है। हमें नौकरी नहीं मिल सकती तो हम मजदूरी ही करते हैं।'वोटर कार्ड और दस्तावेजों से जुड़ी समस्याओं के बारे में कैंप के मुखिया के तौर पर काम करने वाले सुखनंद प्रधान ने बताया, 'हम लोग नेताओं से बात कर रहे हैं, उन लोगों ने भरोसा दिलाया है कि वोटर कार्ड बनवा देंगे।' कुछ लोगों ने यह भी बताया कि दलालों के जरिए कुछ लोगों ने वोटर कार्ड और आधार कार्ड बनवा भी लिए हैं। रोचक बात यह है कि सुखनंद प्रधान ने खुद अपने वॉट्सऐप पर अपनी जो तस्वीर लगा रखी है, उसमें वह वोट देने के बाद अपनी उंगली में लगी स्याही दिखा रहे हैं।

Majnu ka Tila Condition
सड़क के किनारे इन्हीं दुकानों में काम करते हैं लोग, Source: Khabargaon

कैंप में कैसे रहते हैं लोग?

 

साल 2011 में पाकिस्तान के हैदराबाद से भारत आए चांद राम अब यहां छोटी सी दुकान चलाते हैं। कैंप में मिलने वाली सुविधाओं के बारे में वह बताते हैं, 'सरकार की तरफ से सिर्फ पानी फ्री मिल रहा है। जल बोर्ड की पाइपलाइन लगी है और पानी बराबर आता है। बिजली के लिए टाटा पावर की लाइन है लेकिन प्रीपेड मीटर लगे हैं।' बिजली और पानी के अलावा यहां तीसरी कोई सुविधा नहीं है। बस्ती नदी के ठीक किनारे पर है तो पूरे इलाके का मल-मूत्र और गंदा पानी इसी नदी में चला जाता है। सड़क के नाम पर ईंट-सीमेंट का मलबा पड़ा है जो अब कच्ची सड़क जैसा बन चुका है। 

 

चांद राम बताते हैं, 'इतने सालों में यहां रहते हुए हमने दिहाड़ी-मजदूरी करके ये छोटे-छोटे घर बनाए हैं। हमें सरकार की ओर से सिर्फ यही मिला कि जब हम आए थे तब के डीएम ने ही हमें कहा था कि आप लोग यहां रहिए। अब प्रशासन के लोग ही हमारी बस्ती को अवैध बताकर बुलडोजर चलाना चाहते हैं। अगर ऐसा हुआ तो हम कहां जाएंगे?'

Chand Ram
अपनी दुकान में बैठे चांद राम, Image Source: Khabargaon

 

 

सरकारी आवास के सवाल पर चांद राम मायूस हो जाते हैं। ऐसे में हमें उत्तर-पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी का एक बयान आता है। उस वक्त इसी कैंप के लोगों से मिलने आए मनोज तिवारी ने कहा था कि केंद्र की सरकार अब इस बस्ती के लोगों आवास भी दिलाएगी। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकारी आवास के लिए अभी तक कोई पूछने भी नहीं आया है। आवास के बारे सुखनंद प्रधान ने खबरगांव से कहा, 'वादे तो सब करते हैं लेकिन पूरे कौन ही कर रहा है। आवास के लिए बात तो हुई थी लेकिन अभी तक उस दिशा में कोई काम नहीं हुआ है।'

 

दिल्ली की आम आदमी पार्टी से कोई मदद मिलने से जुड़े सवाल के बारे में सुखनंद प्रधान ने कहा, 'हम हिंदू पार्टी को समर्थन करते हैं, झाड़ू वाले से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। कुछ नहीं देगा, तब भी बीजेपी का ही साथ देंगे। हम लोग वोट तो नहीं दे पाते हैं लेकिन हम सब बीजेपी के ही साथ हैं।'

वादे सुनकर पाकिस्तान से चले आ रहे हिंदू

 

सुखनंद प्रधान कहते हैं कि पहले तो लोगों से यही वादा किया गया था कि कहीं पर भी बस जाओ, सरकार घर दिलाएगी। ऐसे ही वादों की गूंज पाकिस्तान तक पहुंच रही है और अभी भी वहां के हिंदू परिवार भारत आने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी ही कोशिश में सफल हुए श्रीराम अब इसी कैंप में एक दुकान चलाते हैं। कपड़ों पर कढ़ाई काम करने वाले श्रीराम बताते हैं कि वह 3 महीने पहले ही अपने परिवार के साथ आ गए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अब नए शरणार्थियों को इस कैंप से अलग यमुना नदी पर बने सिग्नेचर ब्रिज के पास बसाया जा रहा है। श्रीराम भी उसी कैंप में रहते हैं लेकिन दुकान यहां चलाते हैं।

Things from pakistan
अपने साथ पाकिस्तान से चीजें ले आते हैं लोग, Image Source: Khabargaon

 

 

पाकिस्तान से लाया सुरमा दिखाते हुए श्रीराम कहते हैं, 'अब आसानी से आधार कार्ड नहीं बन रहा है। आप बता सकते हैं कि क्या कब बन जाएगा?' हमने जब श्रीराम से पूछा कि 2014 के बाद आने वालों को नागरिकता नहीं मिलेगी तो उनका कहना था, 'पहले वालों को भी तो नहीं मिलनी थी, मिल रही है। हम वहां रहते तो शायद मारे जाते, यहां बिना नागरिकता के भी जिंदा रह लेंगे। हमें अब यहां सुरक्षित महसूस होता है। अभी भी बहुत परिवार ऐसे हैं जो पाकिस्तान से निकलने की फिराक में हैं और लगातार ही रहे हैं।' 

 

श्रीराम बताते हैं, 'जिन हिंदू लोगों के पास पैसा है, वे दूसरे इलाकों में रहते हैं और उन्हें वहां के मुसलमान उस तरह से परेशान नहीं करते जिस तरह हम लोगों को जमींदार और अन्य लोग परेशान करते थे। हमारे घर में चोरी भी हो जाए तो पाकिस्तानी पुलिस हमारी नहीं सुनती थी। उन्हें पता भी हो कि फलां शख्स ने चोरी की है, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। जबरन धर्म बदलवाने की कोशिश होती है, हम लोग बच्चियों को स्कूल तक नहीं भेज सकते थे वरना रेप का डर होता था। हमने सोचा कि मजदूरी करके ही खाना है तो चलकर ऐसी जगह रहें जहां सुरक्षित रहें। जैसे हिंदू भारत आ रहे हैं, वैसे ही दूसरे अल्पसंख्यक अन्य देशों में जा रहे हैं।'

 

क्या करते हैं यहां के लोग?

 

आप मजनूं का टीला गुरुद्वारा की ओर से कश्मीरी गेट की ओर जैसे ही बढ़ेंगे, बाईं तरफ कई सारी छोटी-छोटी दुकानें दिखेंगी। कुछ लोग ठेले पर मोबाइल फोन के कवर और अन्य चीजें बेच रहे होते हैं। यही इनके रोजगार का मुख्य जरिया है। महिलाएं कुटीर उद्योग से जुड़ी चीजें बनाती हैं और उससे भी कुछ पैसा कमाती हैं। बाकी के पुरुष मजदूरी करने चांदनी चौक, आजादपुर और भजनपुरा जैसे इलाकों में चले जाते हैं, ऐसे में दिन में यह बस्ती खाली ही दिखती है। हालांकि, बस्ती यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र में आती है तो यह तय नहीं है कि यह बहुत दिनों तक यहां बची रहेगी। सवाल यह है कि अगर इन लोगों की यह बस्ती तोड़ी जाती है तो ये कहां जाएंगे? क्या वादे करके इन्हें यहां बसाने वाले अधिकारी और नेता इन्हें जगह दिला पाएंगे या फिर इन लोगों को भी अपना इंतजाम खुद ही देखना होगा?


CAA से कैसे मिल रही है नागरिकता?

 

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 के पहले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाइयों को नागरिकता देने के लिए भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को साल 2019 में पास किया था। इसी को  11 मार्च 2024 को अधिसूचित किया गया। अधिसूचित करने के बाद वेबसाइट जारी की गई और केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नियम भी जारी कर दिए। नियमों के मुताबिक, प्रक्रिया यह है कि पहले आवेदन होगा, फिर जिला स्तरीय कमेटी जांच करेगी, फिर राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति जांच करेगी, फिर नागरिकता मिलेगी। इसी तरह के 14 लोगों को अजय कुमार भल्ला (होम सेक्रेटरी) ने 15 मई 2024 को नागरिकता के सर्टिफिकेट बांटे थे।

 

मजनूं का टीला कैंप में रहने वाले 29 साल के झूला राम, यशोदा और यशोदा की मां मीरा जैसे लोग पहले सेट में नागरिकता पाने वाले लोगों में शामिल थे। मजनूं का टीला मोहल्ले के मुखिया के तौर पर काम करने वाले सुखनंद प्रधान ने खबरगांव से बातचीत में कहा, 'लगभग 200 लोगों को नागरिकता मिल गई और सैकड़ों लोगों के आवेदन अभी पेंडिंग में हैं।' बता दें कि मजनूं का टीला के अलावा रोहिणी, शाहबाद डेयरी और आदर्श नगर में भी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के एक-एक कैंप मौजूद हैं। इन कैंपों में भी सैकड़ों शरणार्थी कमोबेश ऐसे ही हाल में रह रहे हैं।

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