कंबोडिया ने थाईलैंड के साथ जारी संघर्ष के बीच बेशर्त युद्ध विराम की मांग की है। संयुक्त राष्ट्र संघ में कंबोडिया के राजदूत ने कहा कि वे इस संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं।हालांकि, थाईलैंड ने कंबोडिया की इस मांग पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं, थाईलैंड की सेना ने शनिवार को कंबोडिया पर कई नई जगहों पर हमले करने के आरोप लगाए।
सेना ने बताया कि कंबोडिया की तरफ से किए गए हमलों को उनकी नेवी ने नाकाम कर दिया। दोनों देशों के संघर्ष में अब तक 32 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें से 19 लोग थाईलैंड जबकि 13 लोग कंबोडिया के हैं।
मौत का ये आकंड़ा दोनों देशों के बीच 2008 से 2011 के बीच हुए संघर्ष को पार कर चुका है। उस दौरान 28 लोगों की मौत हुई थी। लड़ाई की वजह से अब तक 2 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं।
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मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं थाईलैंड
एकतरफ जहां कई देशों ने थाईलैंड और कंबोडिया से तुरंत युद्ध विराम की अपील की है। वहीं, थाईलैंड ने कंबोडिया से विवाद के बीच किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से इनकार कर दिया है। दरअसल कंबोडिया और थाईलैंड दोनों ही आसियान यानी एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स के सदस्य हैं।
ये दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का एक संगठन है, जिसे सभी देशों के बीच सहयोग के लिए बनाया गया था। फिलहाल इसके चेयरमैन मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम हैं। उन्होंने दोनों देशों के बीच सुलह कराने की पहल की थी। थाईलैंड का सहयोगी अमेरिका भी दोनों देशों से शांति की अपील कर चुका है।
भारतीय दूतावास ने जारी किया हेल्पलाइन नंबर
थाईलैंड से तनाव के बीच कंबोडिया में भारतीय दूतावास ने भी इमरजेंसी नंबर जारी किए हैं। एंबेसी ने भारतीय नागरिकों को बॉर्डर वाले इलाकों में भी न जाने की हिदायत दी है। इससे पहले शुक्रवार को थाईलैंड में भारतीय दूतावास ने भी भारतीय नागरिकों से तनाव वाले राज्यों से दूर रहने को कहा था। दूतावास ने 7 राज्यों की एक लिस्ट जारी की थी।
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विवाद में चीन-अमेरिका किसके साथ?
थाईलैंड की अमेरिका के साथ सैन्य और रणनीतिक साझेदारी है। 1954 में अमेरिका का थाईलैंड की सरकारों से ज्यादा वहां की सेना के साथ सहयोग है। इसकी वजह ये है कि थाईलैंड में सेना काफी पावरफुल है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1932 से 20 से ज्यादा बार तख्तापलट हो चुका है। 1954 में अमेरिका ने थाईलैंड के साथ डिफेंस समझौता किया था। वहीं, वियतनाम जंग के दौरान थाईलैंड में अमेरिकी वायुसेना के बेस भी थे। हजारों थाई सैनिकों ने अमेरिका की तरफ से वियतनाम जंग में हिस्सा भी लिया था।
नतीजतन थाईलैंड को अमेरिका से हथियार मिलते रहते हैं। दोनों देशों के बीच-बीच में युद्धाभ्यास में होते हैं। हालांकि, अब थाईलैंड की सेना अमेरिका पर निर्भरता को कम कर रहा है। अपनी सैन्य जरूरतों के लिए थाईलैंड ने इजरायल, इटली और कोरिया की ओर रुख किया है।
चीन भी लगातार थाईलैंड में पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। दोनों देशों में आर्थिक साझेदारी है। वहीं, कंबोडिया की बात करें तो वहां की सेना थाईलैंड के मुकाबले काफी नई है। कंबोडिया की सेना 1993 में बनी। ये अपनी जरूरतों के लिए चीन और वियतनाम पर निर्भर है। चीन ने कंबोडिया में नेवल बेस भी बनाया है। दोनों देश अकसर साथ में युद्धाभ्यास करते हैं।