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भारत, भारतीय छात्र और सिख; कनाडा में मार्क कार्नी की वापसी कितनी अहम

कनाडा के चुनाव में लिबरल पार्टी को बड़ी जीत मिली है। इस बार पार्टी ने 169 सीटें हैं। इससे तय है कि एक बार फिर मार्क कार्नी वहां के प्रधानमंत्री बन जाएंगे। ऐसे में जानते हैं कि मार्क कार्नी का प्रधानमंत्री बनने का कितना असर होगा?

Mark Carney

मार्क कार्नी। (Photo Credit: @MarkJCarney)

कनाडा में एक बार लगातार चौथी बार लिबरल पार्टी की सरकार बनने जा रही है। जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री बने मार्क कार्नी एक बार फिर कनाडा की सत्ता संभालेंगे। उनकी लिबरल पार्टी को 343 में से 169 सीटें मिली हैं। बहुमत से यह आंकड़ा थोड़ा कम जरूर है और अगर दूसरी पार्टियों ने साथ दिया तो सरकार बन जाएगी। पिछले 3 चुनावों से लिबरल पार्टी हमेशा से ही दूसरों के सहारे सरकार बनाती रही है।


कनाडा में होने वाले चुनाव भारत और भारतीयों के लिहाज से भी काफी अहम था। उसकी वजह यह थी कि पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के दौर में भारत और कनाडा के रिश्तों में जबरदस्त तनाव आ गया था। हालांकि, मार्च में प्रधानमंत्री बनने के बाद मार्क कार्नी ने कहा था कि वे भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिश करेंगे। 

 

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कनाडा चुनाव पर भारत की नजर क्यों थी?

नजरें इसलिए थीं, क्योंकि यही चुनाव भारत और कनाडा के रिश्तों का भविष्य तय करते। जस्टिन ट्रूडो की तुलना में मार्क कार्नी भारत से अच्छे रिश्तों की वकालत कर चुके हैं।


भारत के लिए यह चुनाव इसलिए भी अहम थे, क्योंकि ट्रूडो सरकार में कनाडा में खालिस्तान समर्थक बढ़ गए थे। कनाडा में भारत विरोधी भी काफी बढ़ रहे थे। इसके अलावा, ट्रूडो ने खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भी लगाया था। इस कारण भारत और कनाडा के रिश्तों में तनाव आ गया था।


हालांकि, कनाडा में जब-जब लिबरल पार्टी सत्ता में रही है, तब-तब भारत से रिश्ते तल्ख ही रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो से पहले जब उनके पिता पियरे ट्रूडो प्रधानमंत्री थे, तब भी कनाडा में खालिस्तान समर्थक अच्छे से फल-फूल रहे थे। खालिस्तान समर्थकों को लेकर जो नरमी पियरे ट्रूडो ने दिखाई थी, वही नरमी जस्टिन ट्रूडो ने भी दिखाई।


खैर, अब कनाडा में फिर लिबरल पार्टी सत्ता में आ गई है। हालांकि, मार्क कार्नी का भारत से अच्छे रिश्तों पर जोर रहा है। माना जा रहा है कि मार्क कार्नी की सरकार में भारत और कनाडा के रिश्तों में जो बर्फ जम गई थी, वह पिघल सकती है।

 

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भारतीयों के लिए क्यों थे यह चुनाव?

कनाडा में भारतीयों की अच्छी-खासी तादाद है। 2021 की जनगणना के मुताबिक, कनाडा की आबादी में 18.58 लाख भारतीय हैं। कनाडा की आबादी में 5 फीसदी भारतीय हैं। 


हालांकि, मार्क कार्नी के प्रधानमंत्री के बाद कनाडा जाने का सपना देखने वाले भारतीयों को झटका लग सकता है। वह इसलिए क्योंकि कार्नी इमिग्रेशन को लेकर सख्त माने जाते हैं। कनाडा की सरकार ने पहले परमानेंट रेसिडेंट (स्थायी निवासियों) के लिए कैप लगा रखी थी। मगर अक्टूबर 2024 में पहली बार कनाडा ने टेंपररी रेसिडेंट (अस्थायी निवासियों) के लिए भी कैप लगा दी। इसका मतलब हुआ कि सिर्फ स्थायी निवासी ही नहीं, बल्कि अस्थायी निवासियों की संख्या पर भी कैप लगेगी, जिससे कनाडा में पढ़ने वाले विदेशी छात्र और कामगारों की संख्या कम हो सकती है।


मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस बात पर जोर दिया था कि कनाडा में जब तक हाउसिंग की समस्या हल नहीं हो जाती, तब तक इमिग्रेशन पर कैप लागू रहेगी।


लिबरल पार्टी चाहती है कि 2027 के बाद स्थायी निवासियों की संख्या कनाडा की आबादी के 1% से भी कम रखी जाए। 2025 में 3.95 लाख लोगों को स्थायी निवास मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कनाडा में घरों की कमी है और इमिग्रेशन पर कैप लगाकर कनाडाई लोगों को घर और सुविधाएं दी जाएंगी।

 

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भारतीय छात्रों पर भी पड़ेगा असर?

भारतीय छात्रों के लिए कनाडा पसंदीदा जगहों में से एक रहा है। अमरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया के बाद कनाडा चौथा देश है, जहां भारतीय छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा है। कनाडा भारतीय छात्रों का पसंदीदा इसलिए भी रहा है, क्योंकि वहां वर्क परमिट और स्थायी निवास पाना थोड़ा ज्यादा आसान है। ट्रूडो सरकार ने पिछले साल विदेशी छात्रों की संख्या पर दो साल की कैप लगा दी थी। 


ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के मुताबिक, एक साल में अमेरिका, यूके और कनाडा में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 1.64 लाख की गिरावट आई है। सबसे ज्यादा गिरावट कनाडा में आई है। 2023 तक कनाडा में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2.33 लाख थी, जो 2024 में घटकर 1.37 लाख हो गई।


इसकी वजह यह है कि कनाडा सरकार ने वीजा और स्टूडेंट परमिट को कड़ा कर दिया है। नए नियमों के बाद अब अधिकारियों को कुछ शर्तों पर वीजा और वर्क परमिट रद्द करने का अधिकार मिल गया है।

सिखों पर क्या पड़ेगा असर?

कनाडा की आबादी में 7.7 लाख सिख हैं। भारत के बाद कनाडा ही है, जहां सबसे ज्यादा सिख हैं। सिख समुदाय के लोगों को लिबरल पार्टी का वोट बैंक माना जाता है। 


यही कारण है कि कनाडा में रहने वाले हर सिख को ट्रूडो खालिस्तान समर्थक समझ लेते थे और उन्हें खुश करने में लगे रहते थे। ट्रूडो के जाने से खालिस्तान समर्थक कमजोर जरूर पड़े हैं लेकिन जब तक लिबरल पार्टी सत्ता में है, उनके लिए कोई बहुत बड़ी परेशानी खड़ी नहीं होगी। 


हालांकि, मार्क कार्नी के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद कनाडा में रह रहे सिखों पर बहुत ज्यादा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है।

क्या भारत से सुधरेंगे रिश्ते?

मार्क कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और कनाडा के रिश्ते पटरी पर लौटने की उम्मीद है। मार्क कार्नी ने हाल ही में कहा था कि अगर वे सत्ता में लौटते हैं तो भारत के साथ संबंध सुधारने की कोशिश करेंगे। उन्होंने भारत के साथ अच्छे संबंधों को 'बहुत जरूरी' बताया था।


मीडिया से बोलते हुए कार्नी ने कहा था, 'भारत-कनाडा संबंध कई स्तरों पर अविश्वसनीय रूप से काफी अहम हैं।' इससे पहले 1 मार्च को एक रैली में कार्नी ने कहा था, कनाडा को अब 'नए दोस्त और सहयोगियों' की जरूरत है और इसमें भारत भी अहम है।


कनाडा ही नहीं, बल्कि भारत भी रिश्ते सुधारना चाहता है। मार्च में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था, 'उम्मीद है कि हम आपसी विश्वास और संवेदनशीलता के आधार पर अपने संबंधों को फिर से मजबूत कर सकते हैं।'

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