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आपका दुश्मन, हमारा दोस्त; चीन-PAK की 'बेस्ट फ्रेंडशिप' की कहानी

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान में 4 दिन तक चले सैन्य टकराव में चीन ने बैकडोर से एंट्री मारी थी। भारत के खिलाफ लड़ने में चीन ने पाकिस्तान की मदद की थी। ऐसे में जानते हैं कि पाकिस्तान और चीन में इतनी गहरी दोस्ती कैसे हुई? और भारत के लिए यह कितना बड़ा टेंशन है?

china pakistan relation

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

पाकिस्तान पहला मुस्लिम मुल्क था, जिसने 4 जनवरी 1950 को चीन को मान्यता दी थी। चीन में माओ त्से तुंग की अगुवाई में हुई कम्युनिस्ट क्रांति के बाद 'पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना' बना था। यह वह दौर था जब भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रीमियर झाऊ एन लाई के बीच अच्छी दोस्ती थी। उसी वक्त 'हिंदी-चीन भाई-भाई' का नारा दिया गया था। वहीं, 1947 में भारत से बंटकर नए-नए बने पाकिस्तान की दोस्ती उस समय अमेरिका से थी। हालांकि, 1959 के बाद से चीजें बदलनी शुरू हुईं और चीन की करीबियां पाकिस्तान से बढ़ने लगीं। आज पाकिस्तान और चीन 'सबसे अच्छे दोस्त' माने जाते हैं। इतने पक्के कि एक-दूसरे पर कोई आंच नहीं आने देते।

 

चीन और पाकिस्तान की यही दोस्ती भारत के लिए खतरा बन रही है। मई में 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद जब भारत और पाकिस्तान में जंग जैसे हालात बने तो इसमें चीन भी कूदा। भारत के खिलाफ लड़ाई में चीन ने पाकिस्तान का खूब साथ दिया। पाकिस्तान की सेना ने चीन के हथियारों से भारत पर हमला करने की कोशिश भी की थी।

पाकिस्तान = चीन!

हाल ही में भारतीय सेना के वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने कहा, 'ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत दो मोर्चे पर जंग लड़ रहा था। एक तरफ पाकिस्तान से सीधी लड़ाई थी तो दूसरी तरफ से चीन उसकी मदद कर रहा था।'

 

उन्होंने कहा कि 'इस जंग से हमें कई सबक मिले हैं और वह यह कि दुश्मन एक नहीं, कई हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि चीन के पास दुश्मनों से लड़ने के लिए '36 पैंतरे' हैं और उसने पाकिस्तान की हर मुमकीन मदद की। उन्होंने यह भी बताया कि चीन के अलावा तुर्की ने भी पाकिस्तान की मदद की थी।

 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब भारत और पाकिस्तान के बीच 4 दिन तक सैन्य टकराव चला था तो उसने चीन से मिले हथियारों का इस्तेमाल किया था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना की तरफ से दागी गई चीन की PL-15E मिसाइल का मलबा भी दिखाया था।

 

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चीन और पाकिस्तान ने क्या कहा?

लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने चीन और पाकिस्तान की मिलीभगत पर जो कहा, उसे दोनों ही देशों ने खारिज कर दिया। चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि चीन और पाकिस्तान के बीच रक्षा सहयोग किसी तीसरे पक्ष को निशाने बनाने के लिए नहीं है।

 

चीन की प्रवक्ता ने कहा, 'भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और वे चीन के भी अहम पड़ोसी हैं। हमने हमेशा बातचीत और क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा दिया है।'

 

वहीं, हाल ही में फील्ड मार्शल बनाए गए पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल असीम मुनीर ने भी इसे खारिज कर दिया। असीम मुनीर ने कहा कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने किसी तीसरे देश की मदद नहीं ली। मुनीर ने कहा, 'भारत का यह कहना है कि पाकिस्तान को किसी बाहरी मुल्क से मदद मिली थी, गलत है।'

 

जनरल असीम मुनीर ने दावा करते हुए कहा, 'पाकिस्तान के ऑपरेशन में बाहरी समर्थन का आरोप लगाना गैर-जिम्मेदाराना और तथ्यात्मक रूप से गलत है।'

 

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चीन और पाकिस्तान की दोस्ती कितनी गहरी?

एक वक्त था जब चीन और पाकिस्तान बस पड़ोसी हुआ करते थे, 'अच्छे दोस्त' नहीं। तब भारत और चीन में अच्छी दोस्ती थी। भारत ही था जो संयुक्त राष्ट्र में चीन की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता था। चूंकि, तब दुनियाभर में ताइवान की सरकार को ही 'असली चीन' माना जाता था, इसलिए UNSC का स्थायी सदस्य ताइवान था।

 

भारत के उलट पाकिस्तान ने हमेशा चीन का विरोध किया। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि 1953 से 1961 के बीच संयुक्त राष्ट्र में चीन के समर्थन में जितने भी प्रस्ताव आए, पाकिस्तान ने उनका विरोध किया था।

 

हालांकि, चीजें थोड़ी तब बदलनी शुरू हुईं जब चीन के तत्कालीन प्रीमियर झाऊ एन लाई ने 20 दिसंबर 1956 को पाकिस्तान का दौरा किया। हालांकि, इससे दोनों के रिश्तों में थोड़ी गर्मी जरूर आई लेकिन बर्फ बहुत ज्यादा पिघली नहीं।

 

दोनों के रिश्ते तब बने जब 1962 ने चीन ने भारत पर हमला कर दिया और जंग छेड़ दी। इसके बाद 'दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त' वाली नीति ने चीन और पाकिस्तान को करीब ला दिया। 

 

इसके बाद से ही चीन और पाकिस्तान दोनों 'बेस्ट फ्रेंड' हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, दोनों एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। भारत समेत दुनिया के कई देश जब भी संयुक्त राष्ट्र में किसी भी पाकिस्तानी आतंकी के खिलाफ कोई प्रस्ताव लाते हैं तो चीन इस पर वीटो लगा देता है। भारत ने जब आतंकी हमलों का मुद्दा उठाया तो चीन ने हर बार पाकिस्तान को ही आतंकवाद का 'पीड़ित' बता दिया।

 

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी की निंदा जरूर की थी लेकिन साथ ही साथ ही पाकिस्तान के साथ दोस्ती को 'लोहे जैसी मजबूत' भी बताया था।

 

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'हम साथ-साथ हैं'

भारत से साझा दुश्मनी ने चीन और पाकिस्तान को करीब ला दिया। इतना करीब कि 2 मार्च 1963 को एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने PoK का 5,180 वर्ग किलोमीटर इलाका चीन को सौंप दिया। इसके बाद दोनों अपनी दोस्ती को 'ऑल वेदर डिप्लोमैटिक रिलेशंस' बताते हैं। यानी, हर हाल में 'हम साथ-साथ' हैं।

 

2015 में जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान दौरे पर आए थे तब उनका जोरदार स्वागत हुआ था। उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई। तब जिनपिंग ने कहा था, 

 

जब मैं छोटा था, तब मैंने पाकिस्तान और दोनों देशों की दोस्ती की कई दिल छू लेने वाली कहानियां सुनी थीं। उनमें से कुछ का जिक्र मैं करना चाहूंगा कि पाकिस्तान को सुंदर बनाने के लिए यहां के लोगों ने कितनी मेहनत की और दुनिया तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान ने कैसे चीन के लिए अपना एयर कॉरिडोर बनाया और संयुक्त राष्ट्र में परमामेंट सीट के लिए चीन ने पाकिस्तान का कैसे समर्थन किया था। इन कहानियों ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी।

 

2022 में विंटर ओलंपिक के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की मौजूदगी में चीन ने खुलकर कहा था कि वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता है।

 

इसके बाद अप्रैल 2022 में जब कराची यूनिवर्सिटी में बम धमाके में चीन के 3 नागरिकों की मौत हो गई थी तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो और इमरान खान ने खुद चीनी एंबेसी जाकर दुख जताया था।

 

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पाकिस्तान में कितना घुस गया है चीन?

एक दौर था जब हथियारों के लिए पाकिस्तान, अमेरिका पर निर्भर था। अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान में सोवियत संघ (अब रूस) के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीती। तब पाकिस्तान को अमेरिका का 'पिछलग्गू' भी कहा जाने लगा था।

 

दोनों के रिश्तों में तनाव तब आने लगा जब अमेरिका को लगा कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद रोक दी। पाकिस्तान ने तब खुद को ठगा हुआ महसूस किया, क्योंकि उसका मानना था कि भारत परमाणु हथियार बना रहा है लेकिन अमेरिका को इससे कोई दिक्कत नहीं है।

 

आखिरकार, उसने चीन से मदद मांगी और 1986 में न्यूक्लियर कोऑपरेशन को लेकर एक समझौता किया। ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि चीन ने ही पाकिस्तान को परमाणु बम बनाने की तकनीक दी थी। चीन को यह भी पता था कि पाकिस्तान इस परमाणु तकनीक को ईरान, नॉर्थ कोरिया और लीबिया को भी दे सकता है। चीन पर यह भी आरोप लगते हैं कि उसने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले अब्दुल कादिर खान के 'न्यूक्लियर ब्लैक मार्केट नेटवर्क' को भी सपोर्ट किया था।

 

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पाकिस्तान के पास चीनी हथियार!

9/11 के बाद तो चीजें बहुत बदल गईं और चीन और पाकिस्तान की दोस्ती और मजबूत हो गई। आज के समय में पाकिस्तान सबसे ज्यादा हथियार चीन से ही खरीदता है।

 

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीटूयट (SIPRI) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2024 के बीच पाकिस्तान ने अपने 81% हथियार चीन से ही खरीदे हैं। SIPRI ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि चीनी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार पाकिस्तान है। 2020 से 2024 के बीच 5 साल में चीन ने पाकिस्तान को 5.28 अरब डॉलर के हथियार बेचे हैं। इस दौरान चीन ने जितने हथियार बेचे, उसमें से 63% पाकिस्तान को ही बेचे थे।

 

चीन की मदद से पाकिस्तान ने कई सैन्य हथियार और लड़ाकू विमान भी बनाए हैं। चीन की मदद से ही पाकिस्तान ने JF-17 थंडर फाइटर एयरक्राफ्ट बनाया है। इसके अलावा कई टैंक, मिसाइलें और पनडुब्बियां बनाने में भी चीन ने मदद की है।

 

पहलगाम अटैक के बाद जब तनाव बढ़ गया था तो चीन ही था, जिसने पाकिस्तान को एयर डिफेंस और सैटेलाइट सपोर्ट सिस्टम दिया था। भारत के एक थिंक टैंक जॉइंट वॉरफेयर स्टडीज ने दावा किया था कि 22 अप्रैल से लेकर अगले 15 दिन तक चीन ने पाकिस्तान को सैटेलाइट सपोर्ट सिस्टम दिया था, ताकि उसे पता चल सके कि भारत क्या करने जा रहा है।

 

भारतीय सेना के वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने कहा था, 'पाकिस्तान, चीन के लिए लाइव लैब बन गया है, जहां वह अपने हथियारों को टेस्ट करता है।'

 

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चीन के कर्ज तले दब रहा पाकिस्तान!

चीन और पाकिस्तान के आर्थिक रिश्ते भी काफी मजबूत हैं। चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। पाकिस्तान, चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल है। इसके तहत चीन, पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) बना रहा है।

 

तीन हजार किलोमीटर लंबा यह कॉरिडोर चीन के काशगर से शुरू होता है और पाकिस्तान के ग्वादर पर खत्म होता है। चीन ने CPEC के लिए 62 अरब डॉलर लगाए हैं। इस प्रोजेक्ट को 2015 में शुरू किया गया था। इस कॉरिडोर में हाईवे, रेलवे लाइन, पाइपलाइन और ऑप्टिकल केबल का नेटवर्क तैयार किया जा रहा है।

 

ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2024 तक CPEC के फेज 1 के तहत 25.2 अरब डॉलर के 38 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके थे। वहीं, 26.8 अरब डॉलर के 26 प्रोजेक्ट पाइपलाइन में थे, जिन्हें फेज-2 में कवर किया जाएगा।

 

इन्फ्रास्ट्रक्चर और विकास के नाम पर चीन निवेश करता है और फिर उस देश को कर्ज के जाल में फंसा लेता है। चीन इस चाल को अक्सर 'Debt Trap' कहा जाता है।

 

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट बताती है कि 2024 तक पाकिस्तान पर चीन का कुल 29 अरब डॉलर का कर्ज बकाया था। चीन का सबसे बड़ा कर्जदार पाकिस्तान ही है। चीन के बाद पाकिस्तान पर वर्ल्ड बैंक का 23.45 अरब डॉलर और एशियन डेवलपमेंट बैंक का 19.63 अरब डॉलर का बकाया है। पाकिस्तान की आर्थिक हालत वैसे ही पतली है और चीन के कारण उस पर कर्ज और बढ़ता जा रहा है। ऐसा अनुमान है कि अगर कर्ज ऐसा ही बढ़ता रहा तो एक दिन पाकिस्तान भी दिवालिया हो जाएगा।

 

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दोनों की दोस्ती भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

चीन और पाकिस्तान का साथ आना निश्चित तौर पर भारत के लिए अच्छा नहीं है। क्योंकि इन दोनों के साथ भारत के सीमा विवाद हैं और इनके साथ जंग भी हो चुकी है। 

 

रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भविष्य में भारत की किसी के साथ भी जंग होती है तो दूसरा देश साथ आएगा ही आएगा। यही कारण है कि भारतीय सेना 'टू-फ्रंट वॉर' की रणनीति पर सालों से काम कर रही है। पाकिस्तान के साथ जब 1965, 1971 और 1999 में जंग हुई थी, तब भी चीन बड़ा खतरा था लेकिन उस वक्त वह इतना ताकतवर नहीं था, जितना आज है। तब की स्थिति और आज की स्थिति में बहुत फर्क है। तब चीन और पाकिस्तान अगर 'दोस्त' हुआ करते थे तो आज दोनों 'पक्के दोस्त' हैं।

 

चीन और पाकिस्तान को पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने भी खतरा बताया था। जून 2017 में जनरल बिपिन रावत ने कहा था, 'हमारी सेना ढाई मोर्चों पर जंग लड़ने के लिए तैयार है।' उनके इस बयान का मतलब था कि अगर चीन से लड़ाई होती है तो पाकिस्तान इसका फायदा उठा सकता है और आतंकवाद का सहारा भी ले सकता है।

 

जनवरी 2021 तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने भी कहा था, 'पाकिस्तान और चीन में सैन्य और गैर-सैन्य सहयोग बढ़ा है। हमें दो मोर्चों पर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।'

 

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी पाकिस्तान ने जिस तरह से चीन की मदद ली, उससे पता चलता है कि दोनों भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं। भले ही चीन और पाकिस्तान दोनों इस बात को खारिज करें लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं है कि जब भारत से लड़ाई की बात आएगी तो दोनों साथ जरूर आएंगे।

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