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मदद के बदले खनिज! यूक्रेन के बाद अब अमेरिका की नजर कांगो पर

पूर्वी कांगो लंबे समय से अशांत है। यहां 30 सालों से संघर्ष चल रहा है, जिसकी वजह से हजारों जानें गई हैं और लाखों लोगों का विस्थापन हुआ है। इस संघर्ष को खत्म करने के लिए अमेरिका बीच में आ गया है।

Democratic Republic of Congo

प्रतीकात्मक तस्वीर। Photo Credit- AI

सेंट्रल अफ्रीका में एक देश हैनाम है डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC)कांगो में मूलभूत सुविधाओं का भयानक आकाल हैदेश की एक बड़ी आबादी गबीरी, भूखमरी, कुपोषण में अपनी जिंदगी जीती हैकांगो सरकार के पास भी देश के विकास के लिए सीमित संसाधन हैंकांगो की जीडीपी 80 बिलियन डॉलर के आसपास है, वहीं देश की जनसंख्या लगभग 11 कड़ोड हैऐसे में देश की जनता के पास भी सीमित संसाधन हैं, जिसकी वजह से उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में संघर्ष करना पड़ता हैहालांकि, कांगो खनिज संपदा से भरपूर देश है, लेकिन इन खनिजों को बाहर निकालने के लिए भी पैसों की जरूरत होती हैयहां की सरकार के पास इतने संसाधन नहीं है कि वह अपने खनिजों को बाहर निकालकर अन्य देशों को बेच सके

 

कांगो की इन्हीं दुष्वारियों का फायदा इस्लामिक स्टेट समर्थित विद्रोही उठा रहे हैंसाथ ही कई देशों की नजरें भी कांगो की धरती में दबे इन खनिजों पर हैरविवार (27 जुलाई) को इस्लामिक स्टेट समर्थित विद्रोहियों ने कांगो में एक चर्च पर जानलेवा हमला कर दिया, जिसमें 38 लोग मारे गएयह हमला पूर्वी कांगो के कोमांडा में एक कैथोलिक चर्च परिसर में किया गयाहमले में कई मकानों और दुकानों को भी जला दिया गया हैइससे कुध दिन पहले इन्हीं आतंकवादियों ने इस महीने की शुरुआत में ही पूर्वी कांगो में दर्जनों लोगों की हत्या कर दी थी

 

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पूर्वी कांगो लंबे समय से अशांत

दरअसल, पूर्वी कांगो लंबे समय से अशांत हैयहां 30 सालों से संघर्ष चल रहा है, जिसकी वजह से हजारों जानें गई हैं और लाखों लोगों का विस्थापन हुआ हैइस संघर्ष को खत्म करने के लिए अमेरिका बीच मेंगया हैअमेरिकी सरकार कांगो में चल रहे इन संघर्षों को खत्म करने के लिए एक महत्वाकांक्षी शांति पहल का नेतृत्व कर रहा हैइसमें कांगो का पड़ोसी देश रवांडा भी शामिल है

अमेरिका की नजर

अमेरिका आतंकियों और कांगो सरकार के बीच शांति के लिए मध्यस्थता की कोशिशें तो कर ही रहा हैइस बीच अमेरिका कांगो के खनिजों का इस्तेमाल वहां आईटी और AI हब बनाने के लिए करेगाबता दें कि चीन पहले से ही कांगो के खनिजों के धरती से बाहर निकालने के लिए काम कर रहा हैहालांकि, एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि अमेरिका कांगो में ठीक वैसे ही चाल चलेगा जैसे उसने यूक्रेन में किया

 

 

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आने वाले हफ्तों में कांगो के राष्ट्रपति फेलिक्स त्सेसीकेदी और रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे से मुलाकात करेंगेसंभावना है कि इस मुलाकात में ट्रंप दोनों देशों के नेताओं से एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर कवाएंउम्मीद जताई जा रही है कि इस समझौते से कांगो में अमेरिकी निवेश को बढ़ावा मिल सकता हैदरअसल, अमेरिका अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके कांगो में शांति कायम करने के लिए जरूर कदम उठा रहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के इन कदमों के पीछे व्यावसायिक सौदेबाजी है

 

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यूक्रेन जैसी स्थिती कांगो में?

डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन में भी ऐसा ही किया हैअमेरिका ने यूक्रेन-रूस युद्ध में यूक्रेन का हर तरीके से साथ दिया है, जिससे कीव लंबे समय से मॉस्को के साथ जंग लड़ने में कामयाब हो गयालेकिन इसके बदले में अमेरिका ने यूक्रेन के साथ एक डील करके वहां के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार जमा लियाऐसे ही अमेरिका, कांगो में अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करके वहां के खनिजों को अपना बनाना चाहता हैहालांकि, कांगो में चीन पहले ही कई खनिजों पर कब्जा कर चुका है, इसलिए अमेरिका अब चीन से आगे निकलने की कोशिशें कर रहा है

 

 

अब तक अमेरिकी कंपनियां कांगो में सुरक्षा चिंताओं की वजह से कांगो में निवेश करने को लेकर सतर्कता बरतती रही हैं, लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा यहां शांति को लागू करने के साथ ही यह स्थितियां बदल सकती है

कई चीजों को बदल सकता है अमेरिका

इसके साथ ही कुछ ऐसी ही स्थितियां सूडान और उस जैसे अन्य संघर्षग्रस्त देशों में भी हो सकती हैंसूडान में ट्रंप प्रशासन- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र जैसे अरब देशों के साथ शांति की पहल कर चुके हैंहालांकि, यह शांति पहलें अभी तक विफल रही हैंऐसे में अगर डोनाल्ड ट्रंप कांगो में हिंसा, हत्या, अपहरण और विस्थापन को बातचीत के जरिए रोक देते हैं तो अमेरिका वहां कई चीजों को बदल सकता है

अफ्रीकी देशों की मजबूरी का फायदा

साथ ही अगर अमेरिका इस अशांत देश में शांति स्थापित करना देता है तो इसके बदले में कांगो को अपने खनिजों से समझौता करना पड़ा सकता है और कांगो को सुरक्षा की अस्पष्ट गारंटी के बदले में सालों तक समझौतों में फंसाना पड़ सकता हैइसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि चीन और रूस कई अफ्रीकी देशों में इसी तरीके से दाखिल हुए और वहां अपने हित के लिए काम कर रहे हैंजैसे चीन ने अंगोला में तेल के बदले वहां बुनियादी ढांचा खड़ा कियायहां तक कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमतें बढ़ीं, तब भी चीन ने अंगोला को ज्यादा फायदा नहीं दिया

 

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