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'परमाणु डील करो वरना बमबारी होगी', ईरान को अमेरिका ने क्यों धमकाया?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को धमकी दी है। ट्रंप ने धमकाते हुए कहा है कि अगर ईरान परमाणु समझौता नहीं करता है तो बमबारी होगी। ऐसे में समझते हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से अमेरिका को दिक्कत क्या है?

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डोनाल्ड ट्रंप और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई। (Photo Credit: PTI/X)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने परमाणु समझौते को लेकर ईरान को धमकी दी है। ट्रंप ने कहा है कि अगर ईरान समझौता नहीं करता है तो उस पर बमबारी की जाएगी और सेकंडरी टैरिफ लगाया जाएगा।


NBC न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में ईरान को लेकर कहा, 'अगर वे समझौता नहीं करते हैं तो बमबारी होगी। यह ऐसी बमबारी होगी जैसी पहले कभी किसी ने देखी नहीं होगी।' ट्रंप ने यह भी कहा कि समझौते को लेकर अमेरिका और ईरान के अधिकारी बातचीत कर रहे हैं।


हालांकि, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने साफ कर दिया है कि समझौते को लेकर वे अमेरिका से सीधी बातचीत नहीं करेंगे। 


इससे पहले ट्रंप ने परमाणु समझौते को लेकर ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई को चिट्ठी लिखी थी। ईरान की न्यूज एजेंसी IRNA ने बताया कि ओमान के जरिए ट्रंप की चिट्ठी का जवाब भेज दिया गया है। ईरान ने समझौते को लेकर अमेरिका के साथ अप्रत्यक्ष बातचीत की संभावनाओं को खुला रखा है।

 

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समझौते को लेकर ट्रंप की पहल

ट्रंप के पहले कार्यकाल में ही 2018 में अमेरिका ने ईरान के साथ हुआ परमाणु समझौता तोड़ दिया था। मगर अब दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ईरान से समझौता करना चाहते हैं।


मार्च की शुरुआत में एक इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा था, 'मैं ईरान के साथ बातचीत करके समझौता करना पसंद करूंगा। उनके पास परमाणु हथियार नहीं हो सकते।' 


ट्रंप ने कहा था, 'मैंने उन्हें चिट्ठी भी लिखी है कि क्या वे समझौता करेंगे, क्योंकि अगर हमें सैन्य ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा तो यह भयानक होगा।' ट्रंप ने यह भी कहा था कि अगर ईरान समझौता कर लेता है तो इजरायल उन पर बमबारी नहीं करेगा।


हालांकि, ईरान साफ कर चुका है कि अमेरिका से कोई सीधी बातचीत नहीं होगी। 7 फरवरी को ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई ने कहा था कि अमेरिका के साथ बातचीत करना 'समझदारी भरा और सम्मानजनक नहीं' है।


ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने कहा था, 'अमेरिका के साथ तब तक कोई बातचीत नहीं हो सकती, जब तक वह दबाव की नीति जारी रखेगा।'

 

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2015 में समझौता, 2018 में टूटा

साल 2002 में तब हलचल बढ़ गई, जब ईरान के परमाणु ठिकानों का खुलासा हुआ। तब पता चला था कि ईरान दो जगहों- नटांज और अराक में परमाणु हथियार बना रहा है। 2007 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने ईरान से अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करने को कहा। ईरान ने इससे मना कर दिया, जिसके बाद अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने उस पर कई प्रतिबंध लगा दिए। प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई।


अगस्त 2013 में ईरान में जब हसन रूहानी राष्ट्रपति बने तो अमेरिका के साथ बातचीत शुरू हुई। तब अमेरिका में बराक ओबामा राष्ट्रपति थे। 


करीब दो साल चली बातचीत के बाद ईरान के साथ 14 जुलाई 2015 को एक परमाणु समझौता हुआ। यह समझौता ईरान और अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और जर्मनी के बीच हुआ था। इसे जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) कहा जाता है। इसका मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना था, ताकि वह परमाणु हथियार न बना सके। बदले में ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना था।


समझौते के तहत, ईरान को यूरेनियम को सिर्फ 3.67% तक संवर्धन करने की इजाजत थी जबकि परमाणु हथियार बनाने के लिए 90% तक संवर्धन करने की जरूरत होती है। यह ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें किसी परमाणु की शुद्धता बढ़ाई जाती है। इसके अलावा, ईरान पर यह भी पाबंदी लगाई गई कि वह अपने पास संवर्धित यूरेनियम का 300 किलो से ज्यादा भंडार नहीं रख सकता। ईरान पर 15 साल तक यूरेनियम संवर्धन करने पर पाबंदी लगाई गई थी।


इस समझौते के तहत, ईरान को अपनी सेंट्रीफ्यूज मशीनों को भी 20 हजार से घटाकर 5 हजार करनी थी। इन्हीं मशीनों से यूरेनियन का संवर्धन किया किया जाता है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को ईरान के परमाणु ठिकानों की निगरानी करने का अधिकार भी मिला। साथ ही यह भी तय हुआ कि ईरान के सैन्य ठिकानों की भी जांच की जा सकती है। हालांकि, ईरान इसे चुनौती दे सकता है। 


बदले में ईरान पर संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका समेत पश्चिमी मुल्कों ने जो प्रतिबंध लगाए थे, उन्हें हटाया गया। ईरान को तेल निर्यात करने की छूट भी मिल गई। 


हालांकि, 2018 में ट्रंप ने इस समझौते से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया। ट्रंप इस समझौते को 'सबसे खराब' मानते थे। ट्रंप का मानना था कि यह समझौता ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को नहीं रोकता है। ट्रंप का यह भी कहना था कि समझौते की समयसीमा खत्म होने के बाद ईरान फिर से परमाणु कार्यक्रम शुरू कर सकता है।

 

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ईरान के परमाणु कार्यक्रम से US को दिक्कत क्या?

  • सुरक्षा को खतराः अगर ईरान परमाणु हथियार बना लेता है तो इससे मध्य पूर्व में सुरक्षा का खतरा बढ़ सकता है। मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान जानी दुश्मन माने जाते हैं। डर है कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार बना लिए तो इजरायल पर हमला कर सकता है। इसके अलावा, मध्य पूर्व में अमेरिका के करीबी माने जाने वाले इजरायल और सऊदी अरब जैसे देशों पर भी खतरा बढ़ सकता है।
  • आतंकवादियों के हाथ में जाने का डरः ईरान वह मुल्क है, जिसपर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगता रहा है। मध्य पूर्व में कई ऐसे आतंकी संगठन हैं, जिनका ईरान समर्थन करता है। गाजा में हमास, लेबनान में हिज्बुल्लाह, यमन में हूती विद्रोही, इराक में पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेस, सीरिया में फातेमियों ब्रिगेड और बहरीन में अल-अश्तार ब्रिगेड जैसे आतंकी संगठनों को ईरान मदद देता है। अगर ईरान परमाणु हथियार बना लेता है तो इनके आतंकी संगठनों के हाथ में जाने का डर भी है।
  • क्षेत्रीय दबदबाः अभी मध्य पूर्व में ईरान का उतना दबदबा नहीं है, जितना सऊदी अरब और इजरायल है। अगर ईरान परमाणु हथियार बना लेता है तो उसका दबदबा बढ़ सकता है। अमेरिका का मानना है कि इससे क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ जाएगा और क्षेत्री अस्थिरता बढ़ जाएगी। 
  • हथियारों की होड़ः अभी मध्य पूर्व में इजरायल इकलौता मुल्क है, जिसके पास परमाणु हथियार हैं। परमाणु हथियारों पर नजर रखने वाली संस्था ICAN के मुताबिक, इजरायल के परमाणु हथियारों की संख्या 90 है। ऐसे में अगर ईरान के पास भी परमाणु हथियार आ जाते हैं तो मध्य पूर्व में बाकी देश भी इस रेस में शामिल हो सकते हैं, जिससे मध्य पूर्व में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है।

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परमाणु हथियार बना सकता है ईरान?

ईरान सालों से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है। IAEA के डायरेक्टर राफेल ग्रॉसी ने पिछले साल दिसंबर में BBC को दिए इंटरव्यू में बताया था कि ईरान परमाणु हथियार बनाने से बस कुछ कदम ही दूर है।


उन्होंने कहा था, 'ईरान अब 60% शुद्धता वाले संवर्धित यूरेनियम का भंडारण कर रहा है। यह परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी शुद्धता से कुछ ही कम है।' 


ग्रॉसी ने दावा किया था, 'ईरान के फॉरदो न्यूक्लियर प्लांट में 60% शुद्धता वाले संवर्धित यूरेनियम का हर महीने 34 किलो उत्पादन हो रहा है, जबकि पहले यह क्षमता 5 किलो से भी कम थी।'

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