दुनिया के सबसे अमीर शख्स और डोनाल्ड ट्रंप सरकार में अहम जिम्मेदारी संभाल रहे एलन मस्क ने नाटो से अमेरिका के बाहर निकलने की वकालत की है। साथ ही उन्होंने अमेरिका के संयुक्त राष्ट्र (United Nations) से भी बाहर निकलने पर जोर दिया है। मस्क ने यह बयान अमेरिका की तरफ से यूक्रेन और यूरोप के दी जा रही मदद को लेकर दिया है।
उन्होंने कहा, 'अमेरिका द्वारा यूरोप की सुरक्षा के लिए पैसे देने का कोई मतलब नहीं है।' DOGE के अध्यक्ष एलन मस्क ने सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में अमेरिका को नाटो से फौरन बाहर निकलने का आह्वान किया। मस्क ने जोर देकर यह बात कही कि अमेरिका को वास्तव में ऐसा करना चाहिए।
नाटो का भविष्य अधर में लटका
दरअसल, 2 मार्च को एलन मस्क ने एक्स पर एक पोस्ट का जवाब दिया था। उस पोस्ट में उन्होंने कहा था कि नाटो और संयुक्त राष्ट्र को छोड़ने का समय आ गया है। नाटो अगले महीने अप्रैल में अपनी 76वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। मस्क का बयान ऐसे समय में आया है जब 32 सदस्यीय नाटो का भविष्य अधर में लटका हुआ है।
1949 में बना नाटो
1949 में गठित नाटो यूरोप का रक्षा रणनीति का केंद्र रहा है, जो सदस्य देशों को सामूहिक सुरक्षा प्रदान करता है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई थी और यह वैश्विक मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय संवाद और सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है। इन संगठनों से अमेरिका के बाहर निकलने के बड़े मतलब शामिल हैं। इन दोनों संगठनों से अमेरिका के बाहर निकलने पर आर्थिक मोर्चे पर भारी नुकसान होगा।
यह भी पढ़ें: शादी के बाद महिलाओं की क्यों घटती है सैलरी? स्टडी में हुआ खुलासा
बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 6 मार्च को अपने प्रशासन के खास सहयोगियों के साथ नाटो के साथ अमेरिकी जुड़ाव को लेकर चर्चा की थी। साथ ही ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका नाटो में शामिल उन सदस्य देश के पक्ष में रहेगा जो अपने जीडीपी का एक निश्चित प्रतिशत धन रक्षा पर खर्च करते हैं।
पैसे नहीं तो समर्थन नहीं- ट्रंप
राष्ट्रपति ट्रंप ने सहयोगियों से चर्चा करते हुए कहा कि अगर नाटो के सदस्य धन नहीं देते हैं तो, मैं उनका समर्थन नहीं करूंगा। ट्रंप ने कहा कि उन्होंने नाटो सहयोगियों से कहा कि अगर वे अपने धन का भुगतान नहीं किया तो यह ठीक नहीं है।
बता दें कि नाटो के अंतर्गत यूरोप के कई देश आते हैं। शीत युद्ध के बाद बड़े पैमाने पर यूरोपीय देश निरस्त्र हो गए थे। ऐसे समय में अमेरिका ने उन्हें संचार, खुफिया और रसद के साथ-साथ रणनीतिक सैन्य नेतृत्व और गोलाबारी के लिए उपकरण मुहैया कराए थे। ये देश अमेरिका पर निर्भर हैं।