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42 साल तक विदेश में फंसे रहे, समझिए पासपोर्ट खो जाना कितना खतरनाक है

बहरीन से ठीक 42 साल बाद केरल का एक व्यक्ति भारत लौटा है। गोपालन चंद्रन अब 74 साल के है और वह 22 वर्ष की उम्र में बहरीन गए थे। क्या है पूरी कहानी यहां पढ़ें।

Indian man stuck in Bahrain

गोपालन चंद्रन, Photo Credit: X/@pravasilegalcel

यह कहानी है गोपालन चंद्रन की जो 42 साल तक गल्फ देश बहरीन में फंसे रहे और हाल ही में 23 अप्रैल को अपने परिवार के पास केरल लौटे। अब 74 वर्ष के गोपालन केरल के तिरुवनंतपुरम के पास पौडिकोनम गांव के निवासी हैं। 1983 में 22 साल की उम्र में वह बेहतर नौकरी और परिवार के लिए आर्थिक मदद की उम्मीद लेकर बहरीन गए। वह एक राजमिस्त्री के रूप में काम करने के लिए 16 अगस्त, 1983 को बहरीन पहुंचे। इसके बाद गोपालन की मुसीबत शुरू हुई।

 

बहरीन पहुंचने के कुछ समय बाद, उनके एम्प्लायर (जो नौकरी लगवाता है) की अचानक मौत हो गई। इस दौरान उनका पासपोर्ट भी खो गया, जिससे वह बिना डॉक्यूमेंट्स के रह गए। इसके बाद, वह बहरीन के इमीग्रेशन सिस्टम में 42 साल तक फंसे रहे। बिना वैलिड डॉक्यूमेंट्स के, गोपालन को कानूनी और सामाजिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वह छिपकर, बिना स्थायी नौकरी या सुरक्षा के 42 साल तक बहरीन में जिंदा रहे। इस दौरान, उनके पिता गोपालन की 1985 में मौत हो गई लेकिन अपनी मां से मिलने की उम्मीद को बनाए रखा। 

 

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कैसे हुई घर वापसी?

गोपालन चंद्रन की घर वापसी एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) प्रवासी लीगल सेल और कई अन्य संगठनों व व्यक्तियों के सहयोग से संभव हो पाई। गोपालन की जानकारी 2020 में सबसे पहले सामने आई, जब बहरीन पुलिस ने उन्हें एक अन्य केरल प्रवासी के साथ विवाद के बाद हिरासत में लिया था। इस घटना को मलयालम चैनल कैराली टीवी के शो प्रवासलोकम ने कवर किया, जिससे उनकी मां के जिंदा होने की जानकारी गोपालन तक पहुंची।

 

इसके बाद, प्रवासी लीगल सेल ने उनकी मदद के लिए कदम उठाया। PLC एनजीओ में वकील, जज और पत्रकार भी शामिल होते हैं जिसने गोपालन के मामले को उठाया। संगठन के अध्यक्ष सुधीर थिरुनिलथ, डॉ. रिथिन राज, और अनिल थंकप्पन नायर ने गोपालन की कहानी को उजागर करने और कानूनी प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, गोपालन के पास कोई भी वैलिड डॉक्यूमेंट्स नहीं था, PLC ने तिरुवनंतपुरम में उनके परिवार को खोजा और आवश्यक दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाणपत्र और पारिवारिक रिकॉर्ड जुटाए। इन दस्तावेजों ने उनकी पहचान सत्यापित करने में मदद की।

 

भारतीय दूतावास और बहरीन सरकार का सहयोग

PLC ने भारतीय दूतावास के साथ समन्वय किया, जिसने गोपालन की नागरिकता और वापसी के लिए आवश्यक कागजी कार्रवाई को पूरा किया। दूतावास ने उनकी हवाई यात्रा की व्यवस्था भी की। PLC और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गोपालन को खाना, रहने का ठिकाना जैसी व्यवस्था प्रदान की। गोपालन की 95 साल की मां ने कभी अपनी बेटे की वापसी की उम्मीद नहीं छोड़ी थी। 23 अप्रैल को गोपालन बहरीन के केरल के लिए रावाना हुए। यादें और मां से मिलने की उम्मीद के अलावा उनके पास कोई सामान नहीं था। वह 24 अप्रैल को तिरुवनंतपुरम पहुंचे। गोपालन का अपनी मां और परिवार के साथ मिलना बेहद भावुक भरा था। 

 

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बहरीन में पासपोर्ट खोना कितना खतरनाक?

गल्फ देशों जैसे बहरीन में पासपोर्ट खो जाना एक गंभीर स्थिति हो सकती है क्योंकि यह देश इमीग्रेशन और पहचान संबंधी नियमों को बहुत सख्ती से लागू करते हैं। बहरीन में पासपोर्ट आपकी पहचान और वैध प्रवास का डॉक्युमेंट है। इसे खोने पर आप 'अनडॉक्यूमेंटेड' व्यक्ति बन जाते हैं, जिससे इमीग्रेशन कानूनों के उल्लंघन का जोखिम बढ़ जाता है। बिना वैलिड डॉक्युमेंट के रहना अवैध माना जाता है और गिरफ्तारी, हिरासत, या निर्वासन का कारण बन सकता है। गोपालन चंद्रन की तरह, बिना दस्तावेज के व्यक्ति को छुप कर रहना पड़ सकता है। 

 

अगर आपका बहरीन में आपका पासपोर्ट खो जाता है तो स्थानीय पुलिस को सूचित करें। तुरंत नज़दीकी पुलिस स्टेशन में जाकर पासपोर्ट खोने की शिकायत दर्ज करें। पुलिस आपको एक FIR या 'लॉस्ट पासपोर्ट सर्टिफिकेट' देगी, जो नए पासपोर्ट के लिए आवेदन में आवश्यक होगा। साथ ही भारतीय दूतावास से संपर्क करें। अगर आप तुरंत पुलिस और दूतावास से संपर्क करते हैं, तो कुछ हफ्तों में नया पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज आपको मिल सकता है। इसके बाद आप बहरीन में रहना जारी रख सकते हैं या भारत लौट सकते हैं। 

सख्ती से पेश आती है बहरीन पुलिस

अगर पासपोर्ट खोने के बाद आप दस्तावेजीकरण नहीं कराते और लंबे समय तक अनडॉक्यूमेंटेड रहते हैं, तो बहरीन पुलिस आपको अवैध प्रवासी मानकर हिरासत में ले सकती है। गोपालन को 2020 में एक विवाद के बाद हिरासत में लिया गया था। बहरीन सरकार अनडॉक्यूमेंटेड प्रवासियों को निर्वासित कर सकती है लेकिन बिना पहचान के यह प्रक्रिया जटिल हो जाती है। बिना वैध दस्तावेज के नौकरी मिलना मुश्किल होता है। आप सामाजिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य सुविधाएं और कानूनी सुरक्षा से वंचित हो सकते हैं। गोपालन के मामले में, उनकी पहचान सत्यापित करने और वापसी के लिए 2020 से 2025 तक का समय लगा, क्योंकि उनके पास कोई दस्तावेज नहीं था और परिवार से संपर्क टूट गया था। 

 

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गोपालन चंद्रन के मामले से क्या सीखना जरूरी?

गोपालन का पासपोर्ट खोने के बाद कोई पहचान पत्र नहीं था, जिसके कारण वह बहरीन में फंस गए। उनकी स्थिति 2020 में एक पुलिस हिरासत के बाद ही सामने आई। प्रवासी लीगल सेल (PLC), भारतीय दूतावास, और बहरीन सरकार के सहयोग से उनकी पहचान सत्यापित हुई और वापसी संभव हुई। यह दर्शाता है कि बिना बाहरी मदद के ऐसी स्थिति से उबरना मुश्किल है।

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