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ईरान और इजरायल का युद्ध कैसे रुका और इससे हासिल क्या हुआ? सब समझिए

ईरान और इजरायल के बीच लगभग दो हफ्ते का संघर्ष फिलहाल रुक गया है। दोनों देश संघर्ष विराम पर सहमत हैं। आइए समझते हैं कि यह सब कैसे हुआ और इससे दोनों को हासिल क्या हुआ?

trump and netanyahu

ख़ामेनई, डोनाल्ड ट्रंप और बेंजामिन नेतन्याहू, Photo Credit: Khabargaon

डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बाद ईरान और इजरायल के बीच भी लड़ाई के खात्मे का ऐलान कर दिया है। इस बार उन्होंने यह तो नहीं कहा कि उन्होंने ट्रेड का इस्तेमाल किया लेकिन 23-24 जून की दरम्यानी रात से जो कुछ वह ट्रूथ सोशल पर लिख रहे हैं, उसमें काफी कॉन्टेंट है। उन्होंने इरान का शुक्रिया अदा किया, गॉड ब्लेस ईरान कहा। यह वही ट्रंप हैं जो कुछ देर पहले ईरान के खून के प्यासे दिखाई दे रहे थे। इतने दिनों के बाद ट्रंप ने इजरायल को भी चेताया है। कहा है कि ईरान पर हमले बंद करो, अपने पायलट्स को बोलो कि घर लौटें। 

 

एक हफ्ते से जो असमंजस और अनहोनी की आशंका थी, उस पर कुछ विराम तो लगा ही है क्योंकि पिछले कुछ घंटों में ईरान, इजरायल और अमेरिका के त्रिकोण में इतना कुछ बदला है कि समझते-समझते हफ्तों-महीने लग जाएंगे। फिर कोई किताब लिख देगा, तब मालूम चलेगा कि क्या हुआ था लेकिन हम किताब का इंतज़ार नहीं करेंगे। अपने अध्ययन के आधार पर आपके सामने जो हुआ, उसकी साफ से साफ तस्वीर पेश करेंगे, ताकि आप समझ सकें कि बम मारकर शांति स्थापित करने का प्लान कैसे बना, इसे कैसे एग्ज़ीक्यूट किया गया। और अब आगे क्या होने वाला है? राजदूत के इस एपिसोड में पढ़िए ईरान और इजरायल के सीजफायर के पीछे की कहानी। 

अमेरिकी बेस पर ईरान का हमला

 

22 जून को हमने आपको बताया था कि अमेरिका ने ईरान की नतांज़ न्यूक्लियर साइट पर हमला किया। इतिहास में पहली बार ईरान पर अमेरिकी बम गिरे। इजरायल की दशकों से चली आ रही मेहनत सफल रही। अब बस यह देखना था कि ईरान क्या करता है। बयान खूब आए लेकिन पहली रात ईरान ने कुछ नहीं किया। तभी से लगने लगा था कि जिस ऑफ रैंप की बात हो रही थी, शायद ईरान भी उसे लेकर कुछ गंभीर है।

 

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23 जून की रात ईरान ने मिडिल ईस्ट में मौजूद अमेरिका के सबसे बड़े मिलिट्री बेस की तरफ 14 मिसाइल दागीं। कतर में मौजूद अल उदैद बेस की ओर दागी गईं 13 मिसाइल इंटरसेप्ट कर ली गईं और 1 मिसाइल बस ज़मीन पर गिरी। ईरान के इस हमले से कितना नुकसान हुआ इसकी कोई जानकारी नहीं है लेकिन हमले में किसी की जान नहीं गई है इस बात की पुष्टि हो चुकी है। दावा किया जा रहा है कि ईरान ने भी जानबूझकर ऐसा हमला किया था, जिससे किसी की जान न जाए। यहां तक कि उसने इस हमले की जानकारी अमेरिका और कतर को भी दे दी थी कि हम आपके मिलिट्री बेस पर हमला करने जा रहे हैं।


 
जैसा हमने पहले बताया, अल उदैद एयर बेस मिडिल ईस्ट में मौजूद अमेरिका का सबसे बड़ा मिलिट्री बेस है। इसे मिडिल ईस्ट का पेंटागन भी कहा जाता है। इस एयरबेस पर अमेरिका के करीब 8 हज़ार सैनिक मौजूद हैं। अमेरिका के F -22 फाइटर जेट भी यहां तैनात रहते हैं। अमेरिका के अलावा क़तर के भी सैनिक आते जाते रहते हैं यहां। ब्रिटेन के सैनिकों का भी रोटेशन होता है, इस बेस पर। कनाडा और अमेरिका के सिक्योरिटी एक्सपर्ट भी रहते हैं। 

 

जिस तरह ट्रंप और नेतन्याहू अपनी घरेलू राजनीति से बंधे हैं, वैसे ही ईरान की सत्ता के साथ भी है। नतांज़ पर अमेरिकी हमले का जवाब न देना, ख़ामेनई और उनके सलाहकारों के लिए आत्मघाती हो सकता था। इसीलिए ईरान को कुछ न कुछ तो करना ही था और यह बात अमेरिका भी समझता है। तभी बीच का रास्ता निकाला गया। पर्ची निकली अल उदैद के नाम की। यह हमला केवल यह बताने के लिए था कि अगर हमारी धरती पर अगर हमला होगा तो हम चुप नहीं बैठेंगे। हम भी जमकर पलटवार करेंगे। आप याद कीजिए, 2020 में कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद भी ईरान के इराक में अमेरिकी अड्डों पर मिसाइलें दागी थीं लेकिन तब भी, हुआ कुछ नहीं था।

 

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इस बार का हमला, अमेरिकी बेस पर हुआ लेकिन यह था तो क़तर की ज़मीन पर। इसलिए क़तर और उसके सभी क़रीबी अरब देशों ने ईरान के हमले की निंदा की। हालांकि, ईरान ने मिसाइल छोड़ते ही यह कह दिया था कि यह हमला ‘भाई’ क़तर के खिलाफ़ नहीं है। पर जब ईरानी मिसाइल क़तर के आसमान से गुज़रीं तो वहां पैनिक क्रिएट हो गया। कुछ देर के लिए क़तर एयरवेज़ की उड़ाने भी रोक दी गईं।

ट्रंप ने क्या किया?

 

जब यह सब शांत हुआ तो नोबल पुरस्कार चाहने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने धनाधन ट्रुथ सोशल पर पोस्ट लिखनी शुरू कर दीं। 2 पोस्ट का ज़िक्र हम कर देते हैं जो बड़ी मज़ेदार थीं और मज़ेदार क्यों थीं वह आपको अभी पता चलेगा।


पहली पोस्ट में ट्रंप लिखते हैं, 'ईरान ने हमारे हमलों का जवाब दिया है। मुझे बड़ी ख़ुशी है कि इसमें अमेरिका का कोई नुकसान नहीं हुआ है। ईरान ने अपना गुस्सा निकाल लिया है और उम्मीद है कि अब नफरत कम होगी। मैं ईरान का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि उन्होंने पहले से ही इस हमले कि जानकारी दे दी थी। इसी वजह से कोई भी अमेरिकी सैनिक न मारा गया और न ही घायल हुआ। ऐसा लगता है कि ईरान अब इस इलाके में शांति कि तरफ़ बढ़ना चाहता है। ईरान इसकी और बढ़े सके ऐसी कामना करता हूं और इजरायल को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा।'

 

ट्रंप का बदला टोन आप इस पोस्ट में देख रहे होंगे। अब दूसरी पोस्ट पर चलते हैं। वह इससे भी मज़ेदार है। इसमें ट्रंप लिखते हैं, 'सभी को बहुत बहुत मुबारकबाद, इजरायल और ईरान युद्ध विराम के लिए सहमत हो गए हैं। यह 12 डे वॉर का अंत है। युद्ध विराम के दौरान, दोनों पक्ष शांतिपूर्ण और सम्मानजनक रहेंगे। मैं दोनों देशों, इजरायल और ईरान को बधाई देना चाहता हूं कि उनके पास '12 डे वॉर' को समाप्त करने के लिए सहनशक्ति, साहस और बुद्धिमत्ता है। यह एक ऐसा युद्ध है जो सालों तक चल सकता था और पूरे मध्य पूर्व को नष्ट कर सकता था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कभी नहीं होगा! गॉड ब्लेस इजरायल, गॉड ब्लेस ईरान, गॉड ब्लेस मिडिल ईस्ट, गॉड ब्लेस द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका और गॉड ब्लेस द वर्ल्ड।'

 

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इन दो पोस्ट में ट्रंप प्रेम की वाणी बोल रहे हैं। ऐसी वाणी जिसमें धमकी, तबाही नहीं बल्कि सद्भावना और शांति की बात है जबकि यही आदमी कुछ देर पहले मार डालूंगा, काट डालूंगा जैसी बात कर रहा था। बारहा, जो भी है जैसा भी है जंग तो टलने की कगार पर आ गई है। इस सीज़फायर के बारे में अब तक क्या पता चला है वह आपको बताते हैं।

 

- सबसे पहले ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर इसका ऐलान किया। फिर ईरान के TV चैनल्स में यह बात चली कि ईरान ने सीज़फायर मान लिया है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी बयान जारी करके सीज़फायर मानने की घोषणा की है।
- अलजज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस युद्ध विराम में मध्यस्तता क़तर और अमेरिका ने करवाई है।
- ईरान और इजरायल दोनों एक दूसरे को धमकी दे रहे हैं कि अगर युद्ध विराम तोड़ा और हमला किया तो अच्छा नहीं होगा। आधिकारिक रूप से दोनों के बीच युद्ध विराम कायम हो चुका है लेकिन खबर लिखी जाने से कुछ देर पहले ही दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे पर हमले किए हैं।  
- इस सीज़फायर से न सिर्फ इजरायल के कट्टरपंथी दक्षिणपंथी नेता नाराज़ हैं। बल्कि खुद नेतन्याहू की लिकुद पार्टी के नेता भी इसका विरोध कर रहे हैं। लिकुद पार्टी के नेता डैन इलौज़ ने कहा है कि ईरान में ऐसा नहीं है जिसके साथ समझौते किए जाएं बल्कि ऐसा शासन है जिसे सिर्फ खत्म किया जाना चाहिए।
- वहीं इजरायल के वामपंथी दल कह रहे हैं कि जिस तरह ईरान के साथ समझौता किया है। उसी तरह गाजा में जारी 20 महीने की जंग को भी रोका जाए और बंधकों को घर वापस लाया जाए।

संघर्ष विराम उल्लंघन की जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उन्हें लेकर ट्रंप से सवाल पूछे जा रहे थे तो उन्होंने कहा कि दोनों ही पक्षों ने इसका उल्लंघन किया है। ट्रंप ने कहा, 'मैं विशेष रूप से इजरायल से नाराज़ हूं। सीज़फायर के बाद इतनी खतरनाक बॉम्बिंग कौन करता है?' 


उन्होंने आगे कहा, 'बेसिकली हमारे सामने दो ऐसे देश हैं जो कई बरसों से एक दूसरे से लड़ रहे हैं।'

आगे क्या होगा?

 

जो भी हो, लगता तो यही है कि यह लड़ाई फिलहाल रुक जाएगी इसलिए आपको 13 जून से शुरू हुई इस लड़ाई के टेक अवे बताते हैं। पहला, इस जंग ने इतिहास बदला है। ईरान और अमेरिका ने इतिहास में पहली बार एक दूसरे पर लगभग सीधा हमला किया। इजरायल ने भी पहली बार इतना बड़ा हमला ईरान पर किया। जिसकी मंशा वह दशकों से रखता था तो यह अपनी तरह का न्यू नॉर्मल है कि इस तरह की लड़ाई के बावजूद चीज़ें कंट्रोल में आ सकती हैं। रेड लाइन्स अब भी हैं लेकिन आगे खिसक गई हैं।

 

दूसरा, इस लड़ाई के बाद भी इजरायल और अमेरिका का मकसद अधूरा सा लग रहा है। हमने राजदूत के पिछले एपिसोड में तफ्सील से बताया था कि ईरान के परमाणु ठिकानों को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सका है। यह बात इजरायल और अमेरिका ने भी मानी है।  


तीसरा टेकअवे, ट्रंप कितने अनप्रेडिक्टेबल हैं यह हमें इस जंग से पता चला, पहले वह नेतन्याहू को कह रहे थे कि ईरान पर हमला नहीं करना। हम बात चीत कर रहे हैं। फिर 13 जून वाले हमले की इजाज़त दी, अमेरिकी मीडिया के मुताबिक, उस प्लान में शामिल रहे। फिर खुद भी जंग में कूदे, ख़ामेनई को मारने की धमकी दी और अब God bless iran, thank you iran कर रहे हैं।

 

इस अनप्रिडिक्टिबिलिटी का मतलब यह नहीं कि ट्रंप जो चाहें, कर सकते हैं। या उनके खिलाफ कोई बोलेगा नहीं। अपने राजनैतिक विरोधियों की तो ट्रंप ने परवाह नहीं की लेकिन ट्रंप को इस प्रकरण से मालूम चला कि 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' के नाम पर जो राजनीति उन्होंने पैदा की है, जैसे कैरेक्टर अमेरिकी समाज में छोड़े हैं, वे भस्मासुर उनकी ओर भी दौड़ लगा सकते हैं। ट्रंप को समझ में आ गया होगा कि टकर कार्लसन एंड कंपनी ने उनके समर्थन का ठेका नहीं लिया है और सबसे बड़े समर्थक भी खिलाफ जा सकते हैं, अगर ट्रंप अपनी राजनीति से पलटते हैं। MAGA में अमेरिका फर्स्ट का जो आग्रह है, इजरायल तक को उससे छूट नहीं मिली है। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि इजरायल की मदद के लिए एक पैर पर खड़े रहने वाली राजनीति, इस बार इजरायल के मुद्दे पर असहज हो जाएगी। यही वजह है कि ट्रंप जंग में तब उतरे, जब उन्हें बाहर निकलने का रास्ता भी सूझ गया। हम यह नहीं कहते कि अमेरिका इजरायल की मदद अब नहीं करेगा। ट्रंप को बस इतना ध्यान रखना होगा कि जो करें, ऐसे करें कि उनके MAGA समर्थक खुश रहें।

 

इसीलिए ट्रंप अब पीआर सेट करने में लगे हैं। क्रेडिट लेने के शौकीन ट्रंप ने इस जंग को 12 डे वॉर का नाम दे दिया है। 1967 में इजरायल ने अरब देशों के साथ एक जंग लड़ी थी। यह जंग 6 दिनों तक चली थी। इसे 6 डे वॉर कहा जाता है। उस जंग में इजरायल ने घोषित रूप से अरब देशों को हराया था लेकिन अब जंग के टेक्टिक्स बदल गए हैं। कौन जीता, कौन हारा इसका फैसला शायद कभी न हो पाए लेकिन ट्रंप ने नाम तो दे ही दिया है। तो अब इतिहास इस जंग को 12 डे वॉर के नाम से ही याद रखेगा।

 

चौथा टेक अवे यह है कि इस्लामिक क्रांति के नतीजे में जो रेजीम बना, वह अब भी ज़मीन पर मज़बूती से खड़ा है। जब नेतन्याहू बम का डर दिखाकर ईरान पर हमले कर रहे थे, तब दुनिया को कंविन्स करने में उन्हें बहुत मेहनत लग रही थी। फिर उन्होंने रेजीम चेंज का नारा दे दिया। अचानक सबको ईरान की महिलाओं की याद आ गई। यह थ्योरी सामने रख दी गई कि लीडरशिप साफ होते ही ईरान के लोग सड़क पर उतरेंगे और ख़ामेनई की सत्ता उखाड़ फेंकेंगे। लोग शाह के बेटे के विज़ुअल चलाने लगे लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। जब लोग सड़कों पर उतरे, तो वे अमेरिका और इजरायल के खिलाफ ही नारे लगा रहे थे। इसका मतलब ईरानी रेजीम इतना भी कमज़ोर नहीं कि उसे पांच बम मारकर बदल दिया जाए। इस्लामिक क्रांति को लेकर ईरान में ऐतराज़ ज़रूर है लेकिन अमेरिका या इजरायल के खिलाफ ईरान एक हो जाता है। मतलब आज भी ईरानी रेजीम पूरे मुल्क को एक कॉल, एक कॉज़ पर रैली कर पा रहा है।

 

23 जून की रात ही इजरायल ने ईरान की इविन जेल पर हमला किया था। जेल के दरवाज़े को उड़ा दिया। यह ईरान की सबसे खतरनाक जेलों में गिनी जाती है। यहां राजनीतिक कैदी भी हैं। ऐसे कैदी जो ईरान की मौजूदा रिजीम का समर्थन करते हैं और बाहर आकर ईरान की रिजीम के खिलाफ़ माहौल भी तैयार कर सकते हैं लेकिन अभी इनका साथ देने वाले सड़कों पर उतरेंगे, ऐसा कहना मुश्किल है।

 

पांचवा टेक अवे - डिप्लोमेसी तभी सफल है, जब आपके पास बड़ा बम हो। अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते पर बात मार्च महीने से चल रही है। इस बात-चीत में ईरान की तरफ से अली शामखानी मौजूद रहते थे। उनके सामने टेबल-कुर्सी की दूसरी तरफ ट्रंप के मिडिल ईस्ट एंवोय विटकोफ बैठा करते थे। 5 राउंड तक बात-चीत हो भी गई थी लेकिन इजरायल ने अली शामखानी की ही हत्या कर डाली। 

इसकी निंदा करने में दुनिया का पसीना निकल गया। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो सबकी आवाज़ हलक में कैद है क्योंकि हथियारों के भरोसे जंग के मैदान पर फैक्ट्स क्रिएट करने का दौर लौट आया है। अब परिस्थितियां होती नहीं हैं। उन्हें पैदा किया जाता है। न्यूक्लियर साइट पर बिट्टू को भेजा जाता है फिर कहा जाता है कि डील करो। अब डिप्लोमेसी में वह आगे है, जो पहले बम मारता है और उसके पास मारने के लिए बहुत सारे बम हों।
 
छटवां टेक अवे है ईरान और इजरायल की कमज़ोरी से जुड़ा। इस जंग ने बताया है कि ईरान और इजरायल अपने बारे में जो कहते हैं, वे उतने भी ताकतवर नहीं हैं। इजरायल ने ईरान के टॉप मिलिटरी लीडर्स को खत्म किया। पूरे देश में मोसाद का नेटवर्क बिछा दिया। तेहरान के आसमान पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन एक लंबे युद्ध के लिए वह तैयार नहीं था। वह सारी ईरानी मिसाइलों को आसमान में नष्ट नहीं कर पाया। उसकी राजधानी में धमाके हुए उसके इंटरसेप्टर खत्म होने लगे। नेतन्याहू पहले दिन से इस कोशिश में रहे कि किसी तरह ट्रंप को लड़ाई में शामिल होने के लिए मनाया जाए। यह साफ हुआ कि जिस तकनीक के बल पर इजरायल हमास या हिज़बोल्ला से जीत का दावा करता है, सीरिया में सत्ता परिवर्तन के बीच में हमले करता है, वह ईरान जैसे पेशेवर प्रतिद्वंद्वी के आगे अपनी सीमाओं को छूने लगती है।

 

रही बात ईरान की तो उसे भी समझ आया होगा कि 40 साल डेथ टू अमेरिका, डेथ टू इजरायल चिल्लाने से कुछ हासिल नहीं हुआ है। ईरान चुनौती तो देता है लेकिन इजरायल या अमेरिका जैसी आधुनिक शक्ति से जीतने लायक ताकत उसके पास नहीं है। अपनी खुद की राजधानी का एयरस्पेस ईरान कंट्रोल नहीं कर पाया। सैंकड़ों नागरिकों की जान की रक्षा नहीं कर पाया। यह सबक है कि आक्रामकता दिखाने भर से आपको इज़्ज़त नहीं मिलेगी। आपको वाकई शक्तिशाली होना होगा। वरना आपके वार्ताकार घर के भीतर मारे जाते रहेंगे और आप मिसाइलें दागने से आगे जा नहीं पाएंगे।

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