दोस्ती पर सबकी निगाहें टिकीं, चीन से दुश्मनी याद है?
दुनिया
• SHANGHAI 01 Sept 2025, (अपडेटेड 01 Sept 2025, 6:37 AM IST)
भारत और चीन की सीमा 4 राज्य और 1 केंद्र शासित प्रदेश से होकर गुजरती है। हर सीमा विवादित है। नए दौर में चीन से बेहतर रिश्तों की वकालत हो रही है लेकिन चीन वही देश है, जिसने 1962 में घाव दिया था, 2020 में भी। कहानी, भारत-चीन संबधों की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। (Photo Credit: PMO)
चीन, स्वाभाविक तौर पर भारत का दोस्त नहीं है। एक नहीं, 4 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में भारत और चीन की सीमाएं विवादित रही हैं। भारत और चीन की सीमाएं लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती हैं। लद्दाख के कई इलाके और पूरे अरुणाचल प्रदेश को चीन अपने देश का हिस्सा बता देता है। भारत, चीन के नक्शे पर हर बार आपत्ति जताता है। साल 1962 से लेकर 2020 तक, चीन ने हर बार भारत को धोखा दिया है। आजादी के बाद से भारत ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' की वकालत की थी, कवायद 2014 के बाद भी चीन से बेहतर रिश्तों की हुई लेकिन चीन कभी भारत की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।
चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक प्रस्तावित है। बैठक में व्लादिमीर पुतितन, शहबाज शरीफ और शी जिनपिंग जैसे नेता शामिल हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बैठक में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने शी जिनपिंग के साथ रविवार को द्विपक्षीय वार्ता की। दोनों ने सीमा विवाद से लेकर व्यापार तक पर चर्चा की, जिनपिंग ने कहा कि ड्रैगन और हाथी को एक साथ आने की जरूरत है। हैरान करने वाली बात यह है कि जब-जब चीन ने भारत को कमजोर देखा है, हमला ही है। भारतीय सेना के अधिकारी सार्वजनिक मंचों से कह चुके हैं कि भारत-पाकिस्तान के हालिया झड़प में भारत तीन मोर्चे पर जंग लड़ रहा था, उनमें पाकिस्तान की ढाल बनकर चीन खड़ा था।
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भारत से संबंध बिगड़ने की शुरुआत कैसे हुई?
- दलाई लामा और साल 1959 का दमन: 1959 में चीन ने तिब्बत पर पूर्ण नियंत्रण के लिए सैन्य दमन तेज किया। तिब्बती विद्रोह को कुचलने के बाद, ल्हासा में हिंसा बढ़ी। दलाई लामा जैसे-तैसे जान बचाकर अपने साथियों के साथ दुर्गम पहाड़ियों को लांघकर भारत आए। 14वें दलाई लामा अब तक निर्वासित हैं। चीन के विरोध के बाद भी भारत ने उन्हें धर्मशाला में शरण दिया है।
- भारत का रुख: 1959 में तिब्बत पर चीन के कब्जे से भारत खुश नहीं था। भारत तिब्बत की स्वायत्तता आधिकारिक तौर पर नहीं करता है लेकिन नेता, स्वतंत्रत तौर पर तिब्बत में हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ हैं। भारत चीन से मैत्रिपूर्ण संबंध चाहता था, भारत पंचशील सिद्धांतों में भरोसा रखता है। भारत का कहना है कि किसी देश के आंतरिक मामले में दखल देना, संप्रभुता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
- असर: भारत ने दलाई लामा और तिब्बती शरणार्थियों को मानवीय आधार पर शरण दी, जिससे चीन के साथ तनाव बढ़ा। भारत ने खुले तौर पर चीन की निंदा नहीं की, लेकिन तिब्बती शरणार्थियों को सहायता दी। हजारों तिब्बती भारत में रहते हैं। दलाई लामा भारत में आजाद घूमते हैं, राजनायिक सम्मान होता है, तिब्बत की निर्वासित सरकार भी धर्मशाला से चलती है। चीन को यह बात खटकती है।

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कब-कब भारत की पीठ में चीन ने घुसाया खंजर
- भारत चीन युद्ध: 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला किया। लद्दाख के कई हिस्सों में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी दाखिल हुई। लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले हुए थे। चीनी सेना ने दोनों मोर्चों पर हमला किया। चीन ने पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला और पूर्व में तवांग पर अवैध कब्जा जमा लिया। यह हमला अरुणाचल प्रदेश में भी हुआ। अतिक्रमण की नींव तो 1950 के दशक में ही हो गई थी। 1957 में चीन ने अक्साई चिन की राह में पश्चिम की ओर 179 लंबी सड़क बना दी। 21 अक्तूबर को लद्दाख के कोंगका में हिंसक झड़प शुरू हुई। जंग में 1,383 भारतीय सैनिकों ने जान गंवाई थी। भारत जंग में हार गया था।
- युद्ध का परिणाम: जंग में भारत के 1,383 सैनिक मारे गए थे। 1,700 सैनिक लापता हो गए थे। चीन कहता है कि भारत के 4900 सैनिक शहीद हो गए थे। 3968 सैनिकों को जिंदा पकड़ लिया गया था। भारत ने अक्साई चिन गंवा दिया। यह भारत का अभिन्न हिस्सा है। भारत की 37,244 वर्ग किलोमीटर जमीन पर अब चीन का नियंत्रण है। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चीन से बेहतर संबंधों की वकालत कर रहे थे, चीन ने कभी न भूलने वाला घाव दिया था। अरुणाचल प्रदेश से चीन वापस हट गया था। चीन ने इकतरफा संघर्ष विराम घोषित कर दिया था।
- 2 मार्च 1963: चीन ने भारत को एक और झटका दिया। यहीं से चीन और पाकिस्तान करीब आए। 2 मार्च 1963 को पाकिस्तान और चीन के बीच सीमा चीन-पाकिस्तान सीमा समझौता हुआ था। पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो और चीन के विदेश मंत्री चेन यी ने बीजिंग में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।
नतीजा: पाकिस्तान ने पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान इलाके में मौजूद शक्सगाम घाटी का करीब 5,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीन को सौंप दिया। इस समझौते की वजह से चीन के शिंजियांग प्रांत और पाकिस्तान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों के बीच सीमा बन गई। भारत इस हिस्से को अपना मानता है। - 16 अक्टूबर 1964: चीन ने शिनजियांग प्रांत के लोप नूर में परमाणु परीक्षण किया। एशिया का यह पहला परमाणु विस्फोट था। चीन ने 1962 में भारत को जख्म दिया था। एशिया में भारत से बड़ा उसका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। भारत ने इसे अपनी सीमा में खतरे के तौर पर देखा।
नतीजा: 17 अक्तूबर को संसद में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इससे एशिया और वैश्विक शांति को गंभीर खतरा हो सकता है। यहीं से भारत के परमाणु कार्यक्रम की नींव भी पड़ी। वैज्ञानिकों ने नए सिरे से सोचना शुरू किया।

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रिश्ते संभालने की कवायद कब-कब हुई?
- 19 दिसंबर 1988: भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन जाते हैं। 34 साल से भारत और चीन के बीच कूटनीतिक संबंध बेहद तल्ख थे, 3 दशक में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला दौरा था। 34 साल में पहली बार चीन का दौरा करते हैं। राजीव गांधी के जाने का असर यह हुआ कि दोनों देशों के बीच एक जॉइंट वर्किंग ग्रुप (JWG) का गठन हुआ।
असर: दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने, सैन्य तनाव कम करने, और व्यापार, संस्कृति, और विज्ञान-तकनीक जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। सीमा पर तनाव कम हुआ। - 13 जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बुलाने पर चीन के प्रधानमंत्री झू रोंगजी भारत दौरे पर आए थे। 13 से 18 जनवरी तक वह भारत में रहे, कई प्रमुख शहरों का दौरा किया। करीब साल भर पहल 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमला हुआ था। आतंकवाद सबसे ज्वलंत मुद्दा था। हैदाराबाद हाउस में भारत चीन की शिखर वार्ता हुई।
असर: दोनों पक्षों ने आतंकवाद के खिलाफ एक साथ काम करने के लिए सहमति जताई। व्यापार पर बात हुई। क्षेत्रीय निवेश पर जोर देने की बात हुई। आपसी बातचीत से सीमा विवाद हल करने के लिए दोनों पक्ष तैयार हुए। - 9 अप्रैल 2005: 9 से 12 अप्रैल के लिए चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत आए थे। दोनों देश हाई-टेक उद्योगों में सहयोग बढ़ाने का समझौता करते हैं। सीमा विवाद सुलझाने का एक समझौता भी होता है।
असर: कृषि, व्यापार, उड्डयन के क्षेत्रों में समझौता होता है। वीजा प्रक्रिया आसान की जाती है। - 13 जनवरी 2008: तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीन का दौरा करते हैं। इस दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार 50 अरब डॉलर को पार करता है। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन जाता है।
असर: सीमा पर शांति के लिए दोनों देश सहमति जताते हैं। व्यापार को बेहतर करने की प्रतिबद्धता जताते हैं।

संभलते रिश्तों का सिला क्या मिला?
- 31 जनवरी 2009: तत्कालीन प्रधानमंत्री अरुणाचल प्रदेश गए थे। चीन ने इस दौरे पर आपत्ति जताई थी। चीन ने अरुणाचल प्रदेश को अपना बताया था, विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया था। अक्तूबर में भी वह अरुणाचल प्रदेश गए थे।
असर: भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने चीन की आपत्तियों को खारिज किया था। उन्होंने कहा था कि यह देश का अभिन्न हिस्सा है। - अगस्त 2010: चीन ने अगस्त के अंतिम दिनों में बीजिंग में भारतीय सेना के नॉर्थ कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ को दौरे की इजाजत नहीं दी थी। उनकी पोस्टिंग कश्मीर थी। लेफ्टिनेंट जनरल बलजीत सिंह जसवाल चीन में एक उच्च स्तरीय वार्ता में हिस्सा लेने जा रहे थे।
असर: भारत ने भी दो चीनी रक्षा अधिकारियों को दिल्ली आने से रोक दिया।
फिर गतिरोध रोकने की जब हुई कवायद
- 22 अक्तूबर 2013: अप्रैल के महीने में लद्दाख के देपसांग इलाके में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की थी। दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा था। 23 अक्टूबर 2013 को गतिरोध कम करने के लिए सीमा रक्षा सहयोग समझौता हुआ था। भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए कई उपायों पर सहमति जताई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 23 अक्तूबर 2013 को चीन दौरे पर थे। इसी दौरान रक्षा सचिव आरके माथुर और PLA के तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल सुन जियांगुओ के बीच सीमा रक्षा सहयोग पर समझौता हुआ था। कई अन्य समझौतों पर मुहर लगी।
- समझौता: दोनों देशों की सेनाएं LAC पर बल प्रयोग से बचेंगी। विवाद संवाद से हल होंगे। गश्त के दौरान आमने-सामने होने पर झंडे, रेडियो या हॉटलाइन जरिए बात की जाएगी। बॉर्डर मीटिंग प्वाइंट और हॉटलाइन बनेंगे। LAC पर ट्रेलिंग, पीछा करने या आक्रामक गतिविधियों पर रोक रहेगी। हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा।
प्रधानमंत्री मोदी और चीन के साथ भारत के संबंध
- 17-19 सितंबर 2014: शी जिनपिंग भारत आए। दो दिवसीय दौरे में उन्होंने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। 17 सितंबर को ही वह अहमदाबाद गए। वहां उनका भव्य स्वागत हुआ। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके स्वागत के लिए एयरपोर्ट पर मौजूद रहे। वहां से वह साबरमती आश्रम गए। प्रधानमंत्री मोदी के साथ झूले की तस्वीर भी वायरल हुई।
चीन ने इस दौरे का सिला क्या दिया?
- डोकलाम विवाद: दौरे के 3 साल बाद चीन ने एक जख्म दिया। 2017 में भारत और चीन के बीच भूटान के डोकलाम में तनाव अपने चरम पर पहुंचा। जून 2017 में, चीनी सेना ने डोकलाम पठार पर सड़क निर्माण शुरू किया। भूटान और भारत ने इस पर आपत्ति जताई और संप्रभुता के लिए खतरा माना। यह इलाका भारत, भूटान और चीन के ट्राइ जंक्शन पर था।
असर: भारत ने भूटान के समर्थन में सैनिक भेजे। 73 दिनों तक संघर्ष चला। गोलीबारी नहीं हुई. बिना सैन्य झड़प के तल्ख हालात रहे। अगस्त 2017 में समझौता हुआ। एक घटना, एक बड़े टकराहट की वजह बनी।
चीन की गद्दारी जो दशकों तक अखरेगी
- 11 अक्तूबर 2019: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोकलाम में तनाव के बाद संबंध बेहतर करने के लिए शी जिनपिंग को न्योता दिया। शी जिनपिंग 11 अक्तूबर को चेन्नई आए। तमिलनाडु के महाबलीपुरम में दोनों नेताओं ने मुलाकात की। द्विपक्षीय संबंधों, व्यापार, और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा भी खूब हुई। दो दिवसीय दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी खूब मेहमाननवाजी की।
सिला क्या मिला?
- 1 मई और 15 जून 2020: गलवान में हिंसक झड़प को भारत कभी नहीं भूल पाएगा। 1 मई मई 2020 को दोनों देशों के सौनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग त्सो झील के नॉर्थ बैंक में बहस हुई। चीनी सैनिक घुसपैठ करना चाहते थे भारत ने रोक दिया था। लड़ाई हुई, कई सैनिक हिंसक झड़प में घायल हुए। चीनी सैनिकों ने गलवान में अपनी तैनाती बढ़ाई। 15 जून को गलवान घाटी में एक और हिंसक झड़प हुई। वहां तैनात 17 सैनिकों की मौत हो गई, कुल 20 जवान शहीद हुए।

कवायद क्या की गई?
- दोनों देशों ने तनाव कम करने के लिए कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं कीं
- 2021 तक कुछ क्षेत्रों में डिसइंगेजमेंट हुआ
- पैंगोंग झील से चीनी सैनिक हटे लेकिन डेमचोक और देपसांग में डटे रहे
कड़े फैसले क्या लिए गए?
- भारत ने 60 से ज्यादा चीन के ऐप पर बैन लगा दिया
- भारत ने चीन के निवेश पर सख्ती दिखाई
- भारत ने साफ कहा कि LAC पर शांति के बिना संबंध सामान्य नहीं हो सकते
- विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि चीन को पुरानी स्थिति बहाल करनी होगी
राजनायिक स्तर पर क्या हुआ
- 2023 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी शांति का मुद्दा उठा
- 2024 में पीएम मोदी और शी जिनपिंग ने मुलाकात की
- 2025 तक, दोनों देशों ने गतिरोध कम करने के लिए सैनिकों को पीछे हटाया है
सिला क्या मिला?
डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह:-
एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो यह कि वह अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम्स के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की 'लाइव लैब' उसे मिल गई हो। हमें इस बात को बहुत ध्यान में रखना होगा। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ प्रशिक्षित लोग भी थे।'
डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने 4 जुलाई 2025 को 'ऑपरेशन सिंदूर' का जिक्र करते हुए कहा कि भारत के सीमा पर एक नहीं, कई दुश्मन हैं। उन्होंने कहा कि बीते पिछले पांच साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है।

आज जिक्र क्यों?
रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय वार्ता हुई। चीन ने कहा कि भारत के साथ बेहतर संबंधों का वक्त आ गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बेहतर भविष्य की उम्मीद जताई है। अमेरिका ने भारत पर रूस के साथ तेल खरीदने को लेकर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है। इस मुलाकात में चीन-भारत के पास आने की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे अमेरिका पर निर्भरता कम हो और अपने संप्रभुता की रक्षा हो सके। चीन और भारत ने संयुक्त रूप से सहमति जताई है। SCO बैठक भी होने वाली है, जिस पर दुनिया की निगाहें टिकीं हैं।
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