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भारतीय दवाओं पर टैरिफ लगाना आसान नहीं, कहीं खुद को बीमार न कर ले USA?

अमेरिका में दवाओं का भारत काफी बड़ा एक्सपोर्टर है। भारत दवाओं के अपने कुल एक्सपोर्ट का 30 प्रतिशत और जेनेरिक दवाओं का 45 प्रतिशत अमेरिका को एक्सपोर्ट करता है।

 medicine : Photo Credit: PTI

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

दशकों से भारत को दुनिया की ‘फार्मेसी ऑफ वर्ल्ड’ यानी ‘दवा की दुकान’ कहा जाता है। भारत सस्ती और असरदार जेनेरिक दवाएं पूरी दुनिया को सप्लाई करता है और उसमें से भी दवाओं के अपने कुल एक्सपोर्ट का 30 प्रतिशत और जेनेरिक दवाओं के कुल एक्सपोर्ट का 45 प्रतिशत अमेरिका को एक्सपोर्ट करता है।

 

हालांकि, अब इसमें बड़े बदलाव की संभावना है क्योंकि अमेरिका भारत की दवाओं पर ‘टैरिफ (आयात शुल्क)’ लगाने पर विचार कर रहा है। इससे न केवल भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा, बल्कि खुद अमेरिकी स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

 

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अरबों डॉलर का एक्सपोर्ट

भारत हर साल करीब 25 अरब डॉलर की दवाओं का एक्सपोर्ट करता है जिसका सबसे बड़ा खरीददार अमेरिका है। अमेरिका अकेले ही सालाना 7.5–8 अरब डॉलर की भारतीय दवाएं खरीदता है। सन फार्मा, सिप्ला, ल्यूपिन जैसी कंपनियों की दवाएं अमेरिका में बड़े स्तर पर एक्सपोर्ट की जाती हैं।

 

भारत की ज्यादातर दवाएं अमेरिका की FDA (Food and Drug Administration) जैसी एजेंसियों से प्रमाणित होती हैं। भारत HIV, कैंसर, डायबिटीज़ जैसी गंभीर बीमारियों की सस्ती दवाएं बनाता है। COVID-19 के समय भारत ने टीकों और जरूरी दवाओं की सप्लाई में भी अहम भूमिका निभाई थी।

 

ऐसे में खबरगांव आपको बता रहा है कि दवाओं की कीमतें बढ़ने से खुद अमेरिका पर किस तरह का प्रभाव पड़ सकता है।

 

दवाओं की कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी

भारत अमेरिका को लगभग 40% जेनेरिक दवाएं सप्लाई करता है। ये दवाएं ब्रांडेड दवाओं से 90% तक सस्ती होती हैं। अगर इन पर टैरिफ लगाया गया, तो ये दवाएं महंगी हो जाएंगी जिससे सामान्य अमेरिकियों को इंसुलिन, एंटीबायोटिक्स, हार्ट और कैंसर इत्यादि की दवाएं महंगी कीमतों पर खरीदनी पड़ सकती हैं।

 

एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में लगभग 30% लोग महंगी दवाओं की वजह से इलाज में देरी करते हैं। टैरिफ लगने के बाद यह संख्या और बढ़ सकती है। अमेरिका इस वक्त भारतीय दवाओं पर कोई टैरिफ नहीं लगाता है जबकि भारत अमेरिकी दवाओं पर 10 प्रतिशत का टैरिफ लगाता है।

 

गरीब और बुज़ुर्ग लोगों पर इसका और ज्यादा प्रभाव पड़ने की संभावना है।

 

दवा की सप्लाई चेन में रुकावट

अमेरिका सिर्फ तैयार दवाएं ही नहीं, बल्कि दवाओं के बनाने वाले कच्चे माल या केमिकल्स भी भारत से मंगाता है। अमेरिका के पास दवाएं बनाने के लिए अभी खुद की पर्याप्त फैक्ट्रियां नहीं हैं जो इस कच्चे माल को बना सके।

 

ऐसे में उसकी सप्लाई चेन में रुकावट आ सकती है और अस्पतालों में पेनकिलर, बुखार की दवाएं या इमरजेंसी इंजेक्शन खत्म हो सकते हैं। इसके अलावा अमेरिकी कंपनियों पर दवाएं समय पर बनाने का दबाव बढ़ेगा, लेकिन संसाधनों की कमी होने से इसमें देरी होगी।

 

इसके अलावा भारत की दवा कंपनियां अमेरिकी FDA (Food and Drug Administration) के नियमों के मुताबिक दवाएं बनाती हैं। अगर भारत की कंपनियां नुकसान में चली गईं तो वे अमेरिका के लिए दवाएं बनाना बंद कर सकती हैं। इसलिए जो दवाएं अभी मंजूर हैं, वे बाजार से गायब हो सकती हैं। इसके बाद अमेरिका को नई कंपनियों को इन दवाओं को बनाने के लिए मंजूरी देनी होगी, जिससे शुरू में घटिया या नकली दवाएं आने का खतरा बढ़ सकता है। साथ ही नई दवाओं के आने में देरी भी हो सकती है जिससे दवाओं की सप्लाई में रुकावट आ सकती है।

 

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अमेरिकी सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं में रुकावट

अमेरिका की बड़ी स्वास्थ्य योजनाएं जैसे Medicare, Medicaid, और Veterans Health Services इत्यादि भारत की सस्ती दवाओं पर निर्भर हैं अगर भारत से दवाओं की सप्लाई रुकती है तो इस पर काफी असर पड़ेगा।

 

एक अनुमान के मुताबिक जेनेरिक दवाएं अमेरिका की स्वास्थ्य प्रणाली को हर साल 300 अरब डॉलर की बचत कराती हैं। अगर दवाएं महंगी हो जाएंगी, तो सरकार को हर साल अरबों डॉलर ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। इससे अन्य सरकारी योजनाओं पर कटौती करनी पड़ सकती है।

 

अंतरराष्ट्रीय छवि को होगा नुकसान

अमेरिका ने हमेशा खुद को ग्लोबल हेल्थ लीडर की तरह पेश किया है। अगर वह भारत जैसे विकासशील देश की सस्ती दवाओं पर टैरिफ लगाता है, तो उसकी इस मानवतावादी और उदारवादी छवि को बड़ा झटका लगेगा।

 

WHO और अन्य वैश्विक संस्थाएं अमेरिका की आलोचना कर सकती हैं कि वह व्यापार को मानवता से ऊपर रख रहा है। भारत भी इसको लेकर जवाबी कार्रवाई कर सकता है। साथ ही अफ्रीका और एशिया के वे देश जो अमेरिकी सहायता से भारत की दवाएं लेते हैं, उन्हें भी नुकसान होगा।

 

टैरिफ लगाने की ताक में क्यों है अमेरिका?

अमेरिका का मानना है कि उसे अपने व्यापार घाटे कम करना है और घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देना है। साथ ही दवा आपूर्ति में आत्मनिर्भर बनते हुए चीन और भारत जैसे देशों पर निर्भरता कम करनी है।

 

हालांकि, भारत और अमेरिका को एक ही पायदान पर रखकर रणनीतिक फैसले लेना ठीक नहीं है क्योंकि भारत और चीन के संबंध अमेरिका से अलग अलग हैं।

 

क्या अमेरिका खुद दवाएं बना सकता है?

 अमेरिका को कोशिश है कि वह दवाओं के मामले में आत्मनिर्भर बने लेकिन इसमे कई तरह की दिक्कतें भी हैं। जैसे -किसी दवा फैक्ट्री लगाने में काफी समय लगता है। इसके अलावा अमेरिका मे सस्ते लेबर उपलब्ध न होने के कारण दवा की लागत बढ़ जाएगी जिससे दवाएं महंगी हो जाएंगी। इसलिए अभी अमेरिका को दवाओं के मामले में भारत का विकल्प बनने में कई दिक्कतें हैं।

 

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