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क्या ट्रूडो के जाने पर भारत को खुश होना चाहिए? समझें क्या होगा असर

कनाडा की सत्ता पर 9 साल से काबिज जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री पद से हटने वाले हैं। उन्होंने इस्तीफे का ऐलान कर दिया है। ऐसे में जानते हैं कि ट्रूडो के जाने से भारत पर क्या असर हो सकता है?

justin trudeau and pm modi

जस्टिन ट्रूडो और पीएम मोदी। (File Photo Credit: PM India)

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने न-न करते-करते आखिरकार इस्तीफा दे ही दिया। ट्रूडो पर इस्तीफा देने का दबाव काफी समय से बन रहा था। सिर्फ विपक्ष ही नहीं, बल्कि उनकी अपनी ही लिबरल पार्टी उनसे खासी नाराज थी। बार-बार इस्तीफा मांगा जा रहा था और ट्रूडो थे कि मान ही नहीं रहे थे। आखिरकार सोमवार को जब ट्रूडो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने इस्तीफे का ऐलान किया तो कहा कि 'आंतरिक लड़ाई के कारण वो अगले चुनाव में प्रधानमंत्री के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं हो सकते।'


ट्रूडो ने पद से इस्तीफे का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन वो प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी के लीडर के पद पर तब तक बने रहेंगे, जब तक पार्टी नया नेता नहीं चुन लेती। नया नेता चुनने में काफी वक्त लग सकता है।


वैसे तो ट्रूडो के पूरी तरह से पद से हटने में वक्त लग सकता है, क्योंकि कनाडा में नया नेता चुनने की प्रक्रिया आसान नहीं है। बहरहाल, ट्रूडो का जाना भारत के लिए अच्छा माना जा सकता है, क्योंकि इससे बदतर हो चुके दोनों देशों के संबंध फिर से पटरी पर आने की उम्मीद बढ़ गई है।

ट्रूडो परिवार और भारत

ट्रूडो परिवार जब-जब सत्ता में रहा है, तब-तब भारत और कनाडा के संबंधों में गिरावट ही आई है। जस्टिन ट्रूडो से पहले उनके पिता पियरे ट्रूडो भी 1968 से 1979 और 1980 से 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे हैं। इस दौरान भारत और कनाडा के संबंध कुछ खास अच्छे नहीं थे।


भारत और कनाडा के बीच रिश्ते बिगाड़ने की शुरुआत पियरे ट्रूडो ने की थी। 60 के दशक में कनाडा ने परमाणु ऊर्जा के लिए भारत को पहले यूरेनियम और फिर प्लूटोनियम दिया था। 70 के दशक में जब पियरे ट्रूडो प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कहा कि अगर भारत ने इससे न्यूक्लियर टेस्ट किया तो वो सारा समर्थन वापस ले लेंगे। 1974 में भारत ने पोखरण में पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया। भारत ने साफ किया कि न्यूक्लियर टेस्ट कनाडा के साथ हुए समझौते का उल्लंघन नहीं करता। मगर पियरे ट्रूडो ने न्यूक्लियर प्रोग्राम के लिए सारा समर्थन वापस ले लिया और भारत में काम कर रहे कनाडाई अधिकारियों को वापस बुला लिया।


पियरे ट्रूडो ने भारत से रिश्ते बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनका खालिस्तान प्रेम भी किसी से नहीं छिपा। 80 के दशक में पंजाब में खालिस्तान आतंकवाद बढ़ रहा था। भारत ने जब इनके खिलाफ एक्शन लिया तो ये कनाडा में जाकर छिप गए। ऐसा ही एक खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार भी कनाडा में था, जो बब्बर खालसा से जुड़ा था। भारत ने कई बार परमार के प्रत्यर्पण की मांग की, लेकिन कनाडा ने ठुकरा दिया। और तो और जब 1 जून 1985 को भारत ने कनाडा को बताया कि खालिस्तानी आतंकी विमान में बम विस्फोट की साजिश रच रहे हैं। कनाडा ने इसे भी अनसुना कर दिया। आखिरकार 23 जून 1985 को टोरंटो से लंदन जा रहे एयर इंडिया के विमान को बम से उड़ा दिया। इस हमले में विमान में सवार सभी 329 यात्रियों की मौत हो गई थी।


इस खतरनाक आतंकी हमले के लिए परमार समेत कइयों को गिरफ्तार किया गया था। बाद में सबको रिहा कर दिया गया। आखिरकार 1992 में पंजाब पुलिस ने परमार को एनकाउंटर में मार गिराया।


इसे पियरे ट्रूडो का दोहरा चरित्र ही माना जाए कि एक ओर जहां भारत के कहने पर खालिस्तानियों को लेकर नरमी बताई गई तो दूसरी ओर क्यूबेक में अलगाववादी प्रदर्शनों को बर्बरता से कुचला गया। क्यूबेक के लोग कनाडा से अलग होना चाहते थे, लेकिन पियरे ने इनके विरोध को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।


खालिस्तानियों को लेकर पिता पियरे ट्रूडो ने जो नरमी दिखाई, वही नरमी बेटे जस्टिन ट्रूडो ने भी दिखाई। ट्रूडो के इसी खालिस्तान प्रेम ने भारत और कनाडा के संबंधों को बिगाड़ दिया। ट्रूडो सरकार में विदेश नीति के सलाहकार रहे ओमर अजीज ने एक लेख में लिखा था, 'भारत बार-बार कहता था कि कनाडा की सरजमीं का इस्तेमाल खालिस्तान समर्थक कर रहे हैं। ऐसे में कनाडा को कम से कम इतना तो कहना चाहिए था कि उसकी जमीन का इस्तेमाल अलगाववाद के लिए नहीं होगा। क्योंकि कनाडा का एक बहुत बड़ा तबका खालिस्तान नहीं चाहता। मगर ट्रूडो को डर था कि इससे कहीं सिख वोट न खिसक जाए।'

ट्रूडो फैमिली को खालिस्तानियों से इतना लगाव क्यों?

कनाडा में हमेशा से सिख एक बड़ा वोटबैंक रहे हैं। एक तबका है जो खालिस्तान चाहता है। ट्रूडो परिवार का ऐसा मानना है कि खालिस्तानियों का साथ देकर सिखों का वोट लिया जा सकता है।

 

2018 में जब जस्टिन ट्रूडो भारत के दौरे पर आए थे, तो उनके साथ पत्नी सोफी भी थीं। सोफी ट्रूडो मुंबई और दिल्ली में कई कार्यक्रम में शामिल हुई थीं। मुंबई में हुए कार्यक्रम में खालिस्तान समर्थक जसपाल अटवाल भी शामिल हुआ था। सोफी के साथ उसकी तस्वीर भी आई थी। इस पर जब बवाल हुआ तो दिल्ली में ट्रूडो की डिनर पार्टी के लिए जसपाल का न्योता रद्द कर दिया।


कनाडा में सिख सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। 2021 की जनगणना के मुताबिक, कनाडा में सिखों की आबादी 7.7 लाख थी। भारत के बाद सबसे ज्यादा सिख कनाडा में ही रहते हैं। कनाडा के ओंटारियो में 3 लाख और ब्रिटिश कोलंबिया में 2.9 लाख सिख रहते हैं। यही कारण है कि ट्रूडो खालिस्तानियों का समर्थन करते हैं।

ट्रूडो के जाने से क्या कुछ बदलेगा?

ट्रूडो के आने के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में मिठास तो दूर, खटास ही खटास बढ़ती रही। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी सिर्फ एक बार कनाडा गए हैं, वो भी ट्रूडो के आने से पहले। 


अप्रैल 2015 में मोदी कनाडा के दौरे पर गए थे। तब वहां कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में थी और स्टीफन हार्पर प्रधानमंत्री थे। उसके बाद मोदी कभी कनाडा नहीं गए। जबकि ट्रूडो 2018 और सितंबर 2023 में दो बार भारत की यात्रा पर आ चुके हैं।


ट्रूडो के 2018 के दौरे के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ गया था, क्योंकि कनाडा के कार्यक्रम में जसपाल अटवाल को बुलाया गया था। इससे पहले पीएम मोदी ने ट्रडो से कहा था कि किसी संप्रदाय का राजनीतिक मकसद के लिए उपयोग करने वालों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अब जब ट्रूडो का जाना तय है तो उम्मीद है कि भारत और कनाडा के रिश्ते पटरी पर लौटेंगे। 

लिबरल जाएंगे, कंजर्वेटिव आएंगे तो भारत पर क्या असर?

कनाडा में इस साल अक्टूबर में संसदीय चुनाव होने हैं। ज्यादातर सर्वे में लिबरल पार्टी की विदाई और कंजर्वेटिव पार्टी की वापसी का अनुमान लगाया गया है। अगर कंजर्वेटिव सत्ता में आते हैं तो भारत और कनाडा के रिश्ते सुधरने की उम्मीद है।


ट्रूडो जिस तरह से खालिस्तानियों को लेकर मुखर रहे हैं, उससे खालिस्तान समर्थकों का हौसला ही बढ़ा है। सितंबर 2023 में ट्रूडो ने संसद में खुलेआम खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने का इल्जाम लगाया। बाद में पिछले साल मई में कनाडा की पुलिस ने निज्जर हत्याकांड में भारतीय डिप्लोमैट्स के शामिल होने का दावा भी किया। इसके बाद भारत और कनाडा ने अपने-अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया गया था। इसके बाद तो भारत और कनाडा के रिश्ते बद से बदतर हो गए।


अब माना जा रहा है कि ट्रूडो के जाने से कनाडा में खालिस्तानी कमजोर पड़ सकते हैं। अगर चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी की जीत होती है तो खालिस्तानियों को झटका भी लग सकता है। उसकी वजह ये है कि कंजर्वेटिव पार्टी के नेता भारत पर आरोप लगाने को लेकर ट्रूडो को घेरते रहे हैं। सितंबर 2023 में जब ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने का आरोप लगाया था, तो कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे पोलीवरे ने साफ कहा था कि ट्रूडो झूठ बोल रहे हैं। 


इतना ही नहीं, अक्टूबर 2023 में एक इंटरव्यू में पियरे ने ट्रूडो को 'नॉन-प्रोफेशनल पीएम' बताया था। उन्होंने कहा था, 'ट्रूडो भारत में हंसी के पात्र बन गए हैं। वो नॉन-प्रोफेशनल पीएम हैं। मैं जब प्रधानमंत्री बनूंगा तो भारत से रिश्ते सुधार लूंगा।'


चुनाव में अगर कंजर्वेटिव पार्टी जीती तो पियरे पोलीवरे का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय है। अब तक ट्रूडो को खालिस्तान समर्थकों के वोट की जरूरत थी, मगर कंजर्वेटिव के लिए ये उतने मायने नहीं रखते। इसलिए ट्रूडो के जाने से भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार आने की उम्मीद है।

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