लोकतंत्र पर नहीं रहा भरोसा! नेपाल में क्यों उठी राजशाही की मांग? समझिए
दुनिया
• KATHMANDU 10 Mar 2025, (अपडेटेड 10 Mar 2025, 11:57 AM IST)
लगभग डेढ़ दशक पहले नेपाल के लोगों ने जोरदार प्रदर्शन करके राजशाही को झुकने को मजबूर किया था। अब उसी नेपाल में एक बार फिर से राजशाही वापस लाने की मांग उठने लगी है।

केपी शर्मा ओली और ज्ञानेंद्र शाह, Photo Credit: Khabargaon
'नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन्'- नेपाल की सड़कों पर इन दिनों यह नारा आम हो गया है। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) की अगुवाई में हो रही रैलियों और कार्यक्रमों में लग रहे इस नारे का मतलब है- नारायणहिटी खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडू में नारायणगहिटी में ही वह रॉयल पैलेस है जहां राजशाही व्यवस्था खत्म होने के पहले तक नेपाल के राजा रहा करते थे। यह मामला उस वक्त और रोचक हो गया जब मौजूदा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने यह कह दिया कि नेपाल के पूर्व राजा को ज्ञानेंद्र शाह को अगर लगता है कि वह लोकप्रिय हैं तो उन्हें अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ना चाहिए। ओली ने यह भी कहा था कि इन दिनों कुछ लोग राजशाही की वापसी के नारे लगा रहे हैं लेकिन यह संभव नहीं है।
प्रधानमंत्री ओली के बाद नेपाली कांग्रेस के मुखिया शेर बहादुर देउबा, पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' और कई अन्य नेताओं ने भी पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को सलाह दी है क वे गुमराह करने वाली हरकतों से बचें। ज्यादातर नेता यह भी दोहरा रहे हैं कि नेपाल में अब राजशाही की वापसी की कोई गुंजाइश नहीं है। वहीं, काठमांडू में रैली का आयोजन करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (RPP) के मुखिया राजेंद्र लिंगदेन का कहना है कि इस संघीय सरकार का अंत जरूरी है क्योंकि इससे एक भ्रष्ट व्यवस्था मजबूत हो रही है।
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पिछले डेढ़ दशक से सत्ता पर काबिज इन नेताओं की बयान कुछ भी कह रहे हों लेकिन शनिवार को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का काठमांडू में जैसा स्वागत हुआ, उससे कुछ अलग ही संकेत मिल रहे हैं। राजशाही के समर्थकों और RPP के कार्यकर्ताओं ने भारी भीड़ जुटाई। काठमांडू एयरपोर्ट से लेकर निर्मल निवास तक भारी भीड़ जुटी जिसके पास तरह-तरह के नारों वाले पोस्टर और प्लेकार्ड तक थे। नतीजा यह रहा कि सिर्फ 5 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में ज्ञानेंद्र शाह को दो-ढाई घंटे लग गए। इस भीड़ ने भी राजशाही की वापसी के समर्थन में जबरदस्त नारेबाजी की। बता दें कि ज्ञानेंद्र शाह पिछले दो महीने से काठमांडू से बाहर थे और इस दौरान वह कई जगहों पर गए और धर्म स्थलों का भी दौरा किया।
राजशाही क्यों चाहिए?
BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, RPP के उपाध्यक्ष रविंद्र मिश्रा कहते हैं, 'नेपाल की मौजूदा व्यवस्था से लोगों का मोहभंग हो गया है। अब किंग ज्ञानेंद्र को लोग विलेन की तरह नहीं देखते। अब वह जहां जाते हैं, वहां लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। किंग ज्ञानेंद्र को नेता नहीं, राजा बनना है। चुनावी राजनीति के जरिए कोई राजा नहीं बनता है। यही वजह है कि नेपाल के लोग राजशाही व्यवस्था के लिए सड़क पर उतर रहे हैं।'
एक और रोचक बात यह देखने को मिली कि जब पोखरा में महाराजा वीरेंद्र की मूर्ति के अनावरण के दौरान राजशाही व्यवस्था वाला राष्ट्रगान गाया गया तो पुलिस वहां मौजूद लोगों को रोक नहीं पाई।
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रैली में योगी आदित्यनाथ की तस्वीर
RPP की बाइक रैली में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर की तस्वीर वाले कुछ पोस्टर भी नजर आए। इसको लेकर के पी शर्मा ओली के राजनीतिक सलाहकार बिष्णु रिमल ने चिंता भी जाहिर की है। वहीं, RPP के प्रवक्ता मोहन श्रेष्ठ ने कहा कि उन्हें इसके बारे में जानकारी नहीं है कि योगी आदित्यनाथ की तस्वीर का इस्तेमाल क्यों किया गया?
रोचक बात यह है कि इसी साल 30 जनवरी को ज्ञानेंद्र शाह गोरखपुर के दौरे पर गए थे और उन्होंने योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी की थी। तब भी उन्होंने नेपाल की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था की आलोचना भी की थी।
केपी शर्मा ओली ने क्या कहा?
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को आड़े हाथ लेते हुए केपी शर्मा ओली ने कहा, 'वह संविधान का कोई जिक्र नहीं करते, कानून की बात नहीं करते, लोकतंत्र, सिस्टम, प्रक्रिया आदि किसी की बात नहीं करते, वह कहते हैं कि मेरा समर्थन करो, मैं आऊंगा और देश बचाऊंगा। आखिर देश को क्या हो गया है? इस तरह की गतिविधि से अस्थिरता बढ़ेगी। उनके इशारे पर जो अराजक गतिविधियां हो रही हैं वे देश को हाशिए पर धकेल रही हैं।'
उन्होंने ज्ञानेंद्र शाह पर तंज कसते हुए कहा था, 'मैं उन्हें सलाह देना चाहता हूं कि पीढ़ियों तक राजा के तौर पर काम करने के बाद उन्हें यह सलाह देनी चाहिए था कि लोकतांत्रिक तरीकों का पालन करते हुए देश को कैसे चलाया जाए। इसके बजाय वह किस चीज के लिए समर्थन मांग रहे हैं? चुनाव लड़ने के लिए? वोट मांग रहे हैं? वह कहते हैं कि मेरा समर्थन करो, मैं आऊंगा। वह कहां आना चाहते हैं? आइए, राजनीति जॉइन करिए, हम आपका स्वागत करने के लिए तैयार हैं। आप राजनीतिक या गैरराजनीतिक फ्रंट के जरिए आना चाहते हैं? अगर आप राजनीति में आना चाहते हैं तो आपका स्वागत है।'
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कहां से शुरू हुआ विवाद?
दरअसल, कुछ हफ्ते पहले नेपाल के लोकतंत्र दिवस (19 फरवरी) की पूर्व संध्या पर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने लोगों से अपील की थी कि वे पुरानी गलतियां सुधारें और नेपाल को एक स्थिर और मजबूत देश बनाने की ओर आगे बढ़ें। उन्होंने अपने आधिकारिक बयान में कहा था, 'अगर हम अपने देश को बचाना चाहते हैं और राष्ट्रीय एकता रखना चाहते हैं तो हम देश के सभी लोगों से कहते हैं कि देश की तरक्की के लिए वे हमारा साथ दें।' उन्होंने यह तक कह दिया था कि लोकतांत्रिक सरकार से लोगों ने जो उम्मीद की थी उसे वह पूरा करने में नाकामयाब रही है।
RPP की ताकत कितनी बड़ी है?
नेपाल की प्रतिनिधि सभा में कुल 275 सांसद होते हैं। इसमें 165 सामान्य निर्वाचन प्रक्रिया से चुने जाते हैं और 110 सांसद समानुपातिक प्रक्रिया से चुने जाते हैं। इसमें से RPP के पास कुल 14 सांसद ही हैं। 7 सामान्य निर्वाचन से चुने गए हैं और 7 समानुपातिक प्रक्रिया से चुनकर आए हैं। ऐसे में RPP को फिलहाल इतनी बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं माना जा रहा है। शायद यही वजह है कि बाकी के नेता ज्ञानेंद्र शाह को राजनीति में आने की चुनौती दे रहे हैं और ज्ञानेंद्र शाह चुनावी राजनीति के बजाय राजशाही का तरीका चाहते हैं।
नेपाल में स्थिर नहीं हो पा रही सरकार
नेपाल में पिछले 16 साल में 13 बार प्रधानमंत्री बदल चुके हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली पहली बार 2015 में प्रधानमंत्री बने थे लेकिन सिर्फ 10 साल में ही वह चौथी बार प्रधामंत्री बने हैं। वहीं, पुष्प कुमार दहल प्रचंड तीन बार और 2008 के बाद ही शेर बहादुर देउबा दो बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। नेपाल में प्रधानमंत्री का कार्यकाल 5 साल का होता है लेकिन 2008 से लेकर अभी तक एक भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ जो अपना कार्यकाल पूरा कर पाया हो। 2008 से लेकर अभी तक कुल 4 बार चुनाव हुए हैं लेकिन नेपाल को स्थिर सरकार नहीं मिल पाई है। इसके चलते नेपाल में अस्थिरता का दौर जारी है और लोगों का भरोसा हिल रहा है।
कैसे खत्म हुई थी राजशाही?
नेपाल के इतिहास को देखें तो वहां लगातार व्यवस्था बदलती रही। 2008 में राजशाही खत्म होने से पहले 1990 से 2008 तक प्रधानमंत्री जरूर होता था लेकिन अंतिम निर्णय राजपरिवार के पास ही था। उससे पहले 1960 से 1990 तक भी प्रधानमंत्री होता था लेकिन तब पार्टी सिस्टम नहीं था और प्रधानमंत्री राजशाही के हिसाब से ही काम करता था। 2008 में जब राजशाही खत्म की गई तो नेपाल संविधान के हिसाब से चलने वाला लोकतांत्रिक देश बन गया। तब नारायणहिटी में स्थित रॉयल पैलेस यानी राजा के निवास को म्यूजियम में बदल दिया गया।
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बताते चलें कि साल 2006 में एक समझौते के बाद गृहयुद्ध समाप्त हुआ था। इससे पहले, साल 2001 क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। दीपेंद्र ने अपने पिता यानी राजा बीरेंद्र, रानी ऐश्वर्या समेत अपने परिवार के कुल 9 लोगों को गोली मारने के बाद खुद को भी गोली मार ली थी। तब दीपेंद्र के चाचा यानी राजा बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र राजा बने थे।
दूसरी तरफ नेपाल में माओवादियों का आंदोलन चल रहा था। ऐसे में फरवरी 2005 में तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र शाह ने नेपाल में इमरजेंसी लगा दी और सारी शक्तियां अपने हाथ में ले ली। मामला और बिगड़ गया। जमकर हिंसा हुई और आखिरकार 2006 में राजा को झुकना पड़ा। इसके बाद जनवरी 2006 में युद्ध विराम की घोषणा की जाती है। अप्रैल 2006 में ज्ञानेंद्र ने देश की सत्ता जनता को सौंपने की बात कही। यहीं से नेपाल में राजशाही का अंत हो गया। अब 18 साल के बाद ज्ञानेंद्र शाह खुद को एक लोकप्रिय नेता के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
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