ना 'प्रॉक्सी' ना रूस-चीन, जंग में किसने दिया ईरान का साथ?
दुनिया
• TEHRAN 24 Jun 2025, (अपडेटेड 24 Jun 2025, 11:00 PM IST)
इजरायल के साथ संघर्ष में चीन और रूस ने ईरान पर किए गए हमले की कड़ी निंदा करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया लेकिन दोनों ने ताहरान की मदद करने की पेशकश नहीं की।

अयातुल्ला अली खामेनई। Photo Credit- PTI
ईरान इजरायल के साथ चल रहे संघर्ष के बीच मंगलवार को अचानक से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान आया कि दोनों देशों के बीच 'सीजफायर' हो गया है। हालांकि, इससे पहले अमेरिका ने ईरान के फोर्डो सहित तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया, जिसके बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए ईरान ने कतर में स्थित अमेरिकी एयरबेस पर सोमवार, 23 जून को हमला कर दिया।
वहीं, इस संघर्ष में इजरायली हवाई हमले में ईरान के सैन्य, परमाणु और वाणिज्यिक ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा है। ईरान ने भी पलटवार करते हुए इजरायल की राजधानी तेल अवीव और हाइफा में अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों से कहर बरपाया। मगर, दोनों देशों के बीच जारी संघर्ष में तब बड़ा मोड़ आ गया था जब इसमें अमेरिका ने सीधी एंट्री मारी थी।
21 जून को अमेरिकी हमला
दरअसल, 21 जून को अमेरिका ने ईरान के तीन न्यूक्लियर साइट्स पर बंकर बस्टर बम गिराए थे, जिसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम को गहरा झटका लगा। साथ ही इजरायल की तरफ से ईरान पर हमला करके अमेरिका ने ये संदेश दे दिया कि वह आगे भी तेहरान पर बड़े हमले कर सकता है। इन सबके बीच एक बात जो दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है वो ये कि इजरायल की तरफ से कंधे से कंधा मिलाकर अमेरिका तो खड़ा हो गया, लेकिन ईरान के लिए अभी तक कोई सामने क्यों नहीं आया? हालांकि, इस संघर्ष में दुनिया की दूसरी और तीसरी महाशक्तियों- रूस और चीन ने अमेरिकी हमले की निंदा जरूर की है।
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ईरान को हुआ आभास
युद्ध के बीच इन कदमों से ईरान को यह आभास हो गया कि तेहरान, अमेरिका और इजरायल के खिलाफ अकेले खड़ा है। संघर्ष में ईरान को उसके हिजबुल्लाह जैसे प्रॉक्सी संगठन, रूस और चीन जैसे सहयोगियों का भी साथ मिलता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि ईरान, अमेरिका के द्वारा परमाणु साइट्स पर बमबारी के बाद दशकों बाद अपने सबसे खतरनाक समय का सामना कर रहा है। रूस और चीन किनारे पर बैठे हैं और केवल बयानबाजी का समर्थन दे रहे हैं, जबकि ईरान ने रूस को यूक्रेन पर हमले के बाद लड़ाकू ड्रोन दिए थे।
राष्ट्रपति पुतिन से अहम मुलाकात
हालांकि, इस बीच ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने सोमवार को अमेरिकी हवाई हमलों के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुलाकात की थी। इस्तांबुल में चल रही इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) शिखर सम्मेलन के फौरन बाद अब्बास अराघची ने मॉस्को पहुंचे। मुलाकात के बाद पुतिन ने बयान देते हुए अब्बास अराघची के सामने कहा कि ईरान पर अमेरिका हमला अनुचित है। उन्होंने कहा, 'यह हमला पूरी तरह बिना उकसावे के किया गया है। इसका कोई औचित्य नहीं है। रूस, ईरानी जनता के समर्थन में कदम उठा रहा है।'
इसी बीच रूस के पूर्व राष्ट्रपति और रूसी सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने भी डोनाल्ड ट्रंप पर हमला करते हुए उन पर मध्य-पूर्व में अमेरिका को एक नए युद्ध में धकेलने का आरोप लगाया था। मेदवेदेव ने तंज कसते हुए कहा, 'शांति निर्माता राष्ट्रपति के रूप में आए ट्रंप ने अमेरिका के लिए एक नया युद्ध शुरू कर दिया है।'
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ईरान को आश्वासन
मेदवेदेव ने इसी समय ईरान के परमाणु हथियारों के लिए यूरेनियम संवर्धन के जारी रहने औ तेहरान को भविष्य में परमाणु हथियार देने के संकेत दिए थे। दरअसल, ईरान दशकों में अपने सबसे महत्वपूर्ण सैन्य परीक्षण का सामना कर रहा है इसलिए जंग में रूस और चीन से आगे कोई ठोस मदद मिलने की संभावना कम दिखाई दी। जबकि दोनों देश ईरान के साथ मजबूत द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी बनाए हुए हैं।
रणनीतिक सहयोग क्या है?
मगर, इसमें रूस-चीन दोनों ही औपचारिक सैन्य सहयोगी नहीं हैं। इसके साथ ही दोनों ताकतवर देश आगे कोई भी ईरान को सैन्य या आर्थिक मदद देने के मूड में नहीं दिखे। हालांकि, दोनों देशों की तरफ से बयानबाजियां जरूर सुनने को मिलीं। इसके अलावा ईरान को 'ब्रिक्स समूह' से भी कोई समर्थन नहीं मिल रहा। जबकि, ब्रिक्स समूह का गठन ही अमेरिका और पश्चिमी देशों के बाजारों को चुनौती देने के लिए बना है। ब्रिक्स समूह की स्थापना ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने की है। ईरान समूह का हिस्सा है। ब्रिक्स समूह, इजरायल-अमेरिका के ईरान पर किए गए हमलों पर चुप्पी साधे है।
यूरोप भी दूर रहा
इसी बीच रूसी अधिकारियों ने स्पष्ट किया था कि जनवरी 2025 में ईरान के साथ जो रणनीतिक समझौता किया गया था उसमें रक्षा क्षेत्र में मदद करना शामिल नहीं है। साथ ही ईरान ने हथियारों के लिए रूस से कोई अनुरोध भी नहीं किया। इसके अलावा ना तो यूरोपियन यूनियन और ना ही किसी यूरोपीय देश ने ईरान के दर्द में मरहम लगाने की कोशिश की।
पाकिस्तान की चापलूसी
चीन ने भी अमेरिकी हमलों की कड़ी निंदा करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया लेकिन उसने ईरान की मदद करने की पेशकश नहीं की। बता दें कि ईरान, चीन को उसकी जरूरत का लगभग 90% तेल निर्यात करता है। ईरान के पड़ोस में मौजूद पड़ोसी देशों ने तेहरान को संयम बरतने को कहा। परमाणु संपन्न देश पाकिस्तान ने भी ईरान का साथ देने की बजाए अपने हित के लिए ट्रंप को शांति का नोबल पुरस्कार देने की अर्जी लगा दी। कई खाड़ी देशों ने ईरान को चेतावनी दी कि अगर ईरान मध्य पूर्व में अमेरिकी सैन्य अड्डों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो इससे क्षेत्र में विनाश आ सकता है।
कुल मिलाकर ईरान और अमेरिका से आंशिक संघर्ष में ईरान को वो समर्थन नहीं मिला, जिसके उसे सख्त जरूरत थी।
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