नेपाल में चल रहे राजनीतिक संकट और हिंसक प्रदर्शनों के बीच पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम उभरकर आ रहा है। कहा जा रहा है कि वह जेन जी ग्रुप ने उन्हें अपने नेता के रूप में पेश किया है कि वह अंतरिम सरकार की कमान संभालेंगी। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि वह जेन ज़ी की तरफ से सेना से बात करेंगी और आगे की रणनीति तय करेंगी।
यह फैसला जेन-ज़ी आंदोलनकारियों की चार घंटे की वर्चुअल बैठक में लिया गया, जो देश में ताजा चुनाव होने तक सुशीला कार्की के नेतृत्व में स्थिरता की उम्मीद कर रहा है। यह नियुक्ति तब हुई है, जब प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने बढ़ते दबाव और हिंसा के बाद अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। सोमवार को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय पर धावा बोल दिया, साथ ही सुप्रीम कोर्ट और संसद भवनों में आगजनी और नेताओं के घरों में तोड़फोड़ की। इन झड़पों में 22 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक लोग घायल हुए। काठमांडू में कर्फ्यू का सन्नाटा पसरा है, और देश गहरे संकट में है।
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कौन हैं सुशीला कार्की?
7 जून 1952 को नेपाल के बिराटनगर में जन्मीं सुशीला कार्की सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। उन्होंने राजनीति विज्ञान और कानून में डिग्री हासिल की और 1979 में बिराटनगर से वकालत शुरू की। 1985 में वे धरान के महेंद्र मल्टिपल कैंपस में असिस्टेंट प्रोफेसर रहीं और 2007 में सीनियर एडवोकेट बनीं। 2009 में सुप्रीम कोर्ट की एड-हॉक जज नियुक्त हुईं और 2010 में स्थायी जज बनीं। 2016 में वे नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।
लाया गया था महाभियोग
11 जुलाई 2016 से 7 जून 2017 तक सुप्रीम कोर्ट की बागडोर संभालने वाली कार्की ने ट्रांजिशनल जस्टिस और चुनावी विवादों जैसे महत्वपूर्ण मामलों में फैसले सुनाए। 2017 में माओवादी सेंटर और नेपाली कांग्रेस द्वारा उन पर लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का देश भर में विरोध हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को रोकने का आदेश दिया और अंततः प्रस्ताव वापस ले लिया गया। इस घटना ने कार्की को दबाव में भी अडिग रहने वाली शख्सियत के रूप में स्थापित किया।
राजनेता से हुई शादी
कार्की की शादी दुर्गा प्रसाद सुवेदी से हुई, जो नेपाली कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और पंचायती शासन के खिलाफ आंदोलनों में सक्रिय रहे। रिटायरमेंट के बाद कार्की ने लेखन का भी कार्य किया। उनकी आत्मकथा न्याय (2018) और बिराटनगर जेल के अनुभवों पर आधारित उपन्यास कारा (2019) खूब चर्चित रहे।
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क्यों चुनी गईं सुशीला कार्की
जेन-ज़ी आंदोलनकारियों का मानना है कि सुशीला कार्की की छवि काफी निष्पक्ष रही है। बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि कोई भी राजनीतिक दल से जुड़ा व्यक्ति नेतृत्व नहीं करेगा, ताकि आंदोलन की गैर-राजनीतिक प्रकृति बरकरार रहे। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह और युवा नेता सागर धकाल के नामों पर भी चर्चा हुई, लेकिन कार्की की अनुभवी और स्वतंत्र छवि को प्राथमिकता दी गई। सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल के राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी या दुर्गा प्रसाई से बातचीत के सुझाव को भी प्रदर्शनकारियों ने खारिज कर दिया।