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राजशाही, साजिश, विद्रोह और लोकतंत्र, नेपाल की कहानी क्या है?

नेपाल में एक जमाने में राजशाही थी, जिसका अंत एक दुखद मोड़ पर हुआ। नेपाल की त्रासदी भरी कहानी क्या थी, आइए जानते हैं।

Nepal Shah Family

नेपाल का राज परिवार। (Photo Credit: Wikimedia)

नेपाल के राजघराने में उस दिन तक सब ठीक था। राजपरिवार के किसी भी सदस्य को भनक तक नहीं लगी कि आज की रात कयामत की रात होने वाली है। कोई अपना ही, अपने पूरे परिवार को खत्म करने पर उतारू हो जाएगा। जिस नेपाल से राजशाही ब्रिटिश हुकूमत भी नहीं छीन पाई, दशकों का वामपंथी विद्रोह वहां कुछ नहीं बिगाड़ सका, उसे एक सनकी राजकुमार ने खत्म कर दिया। 

1 जून, 2001 को नेपाल के क्राउन प्रिंस दीपेंद्र नशे में धुत होकर आए। शाम में शाही भोज था। मेहमान जुट गए थे। नशे में धुत होकर प्रिंस दीपेंद्र भिड़ गए। लोगों ने उन्हें समझा-बुझाकर अंदर धकेला। वह नहीं माने। लोगों को लगा कि अब सब सामान्य है। सामान्य कुछ भी नहीं था।

सनकी राजकुमार ने खत्म कर दिया परिवार
राजकुमार दीपेंद्र घर में गए और 3 बंदूकें लेकर चले आए। लोगों पर धड़ाधड़ गोलियां चलाने लगे और नेपाल के राजा बीरेंद्र वीर शाह विक्रम पलभर में खत्म हो गए। रानी ऐश्वर्या और शाही परिवार के 8 अन्य सदस्य भी खत्म हो गए। छोटे भाई-बहनों को भी नहीं बख्शा। उन्होंने खुद पर भी गोली चला दी। वह बच गए। 

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राजा वीरेंद्र वीर बिक्रम शाह अपनी पत्नी महारानी ऐश्वर्या के साथ।

हत्यारा बन गया राजा
प्रिंस दीपेंद्र हत्यारे थे लेकिन राजा थे। राजा हर कानून से ऊपर होता है। आखिर सिंहासन पर बैठने वाला कोई नहीं था। वह कोमा में थे, उनका राज्याभिषेक हुआ। नेपाल के राजा बने लेकिन गोली कुछ इस तरह से लगी थी कि वह ब्रेन डेड हो गए और 4 जून 2001 को उनकी मौत हो गई। नेपाल में एक युग का अंत हो गया था। 

राजशाही खत्म होने की नींव कैसे पड़ी
दीपेंद्र की मौत हुई और यहीं से राजशाही के खात्मे की तारीख भी लिख दी गई थी। वजह यह कि कई साल नेपाल माओवाद की जद में आ गया, जिस देश को सबसे शांत जगहों में गिना जाता था, वहां माओवादियों ने आम लोगों की हत्या की, उद्योगपतियों को मारा, जमीनें छीनीं और लोकतंत्र के नाम पर वह सब कुछ किया, जिसे वहां का अमीर तबका कभी नहीं भूल सकता। जमीदारों के परिवारों में कई नरसंहार हुए। 

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राजा वीरेंद्र के बगल में सैन्य वर्दी में राजकुमार दीपेंद्र। 

नेपाल की जनता इस नरसंहार को याद करके रो पड़ती है। नेपाल के कपिलवस्तु जिले के रहने वाले इतिहासकार प्रेम कुमार बताते हैं, 'राजा को लोग भगवान विष्णु की तरह पूजते थे। उनका शासनकाल अविस्मरणीय था। उनके पोस्टर घर-घर में लोग लगाते थे। वह अपनी प्रजा से प्यार करते थे। नेपाल की राजशाही, इस लोकतंत्र से बेहतर थी।'

हत्यारे क्यों बन गए थे प्रिंस दीपेंद्र?
राजकुमार दीपेंद्र, इंग्लैंड के एटन कॉलेज में थे, जब उनकी मुलाकात नेपाल के नेता शमशेर जंग बहादुर राणा की बेटी देवयानी से हुई। दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए। नेपाल में एक बड़ा तबका मानता है कि राजा नहीं चाहते थे कि देवयानी और राजकुमार करीब आएं। दीपेंद्र इश्क में डूब चुके थे। यह भी कहा कि देवयानी की दादी रखैल थीं। दीपेंद्र को लगने लगा कि अगर ये लोग रहे तो शादी नहीं हो सकती। उन्होंने नाराज होकर सबको खत्म कर दिया। दीपेंद्र को राजघराने के फैसलों से दूर रखा जाने लगा। कुछ लोग इस कहानी पर संदेह जताते हैं।

एक कहानी और भी है कि वह शादी के लिए शाही परिवार छोड़ने को तैयार हो गए थे लेकिन देवयानी ने शर्त रखी थी कि जब उसे रानी बनाया जाएगा, तभी वह शादी करेगी। राजकुमार दीपेंद्र ने अपना परिवार ही खत्म कर दिया। एक तरफ नेपाल के शाही परिवार पर संकट आया, नेपाल में दशकों से शांत पड़े विद्रोहियों को सिर उठाने का मौका मिल गया। नेपाल में माओवादी आंदोलन ने जोर पकड़ा। घर-घर माओवादी पनपने लगे। पहाड़ी इलाकों के माओवादी, तराई में उत्पात मचाने लगे।

नेपाल में लोकतंत्र की लड़ाई कितनी पुरानी?
नेपाल में आंदोलन का इतिहास पुराना है। 1960 में राजा महेंद्र ने संसद भंग कर, पंचायत प्रणाली लागू की थी। नेपाल में राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लग गया था। चुनाव में भाग लेने का अधिकार जनता के पास नहीं था। 1980 के दशक में आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार बढ़ गया। लोगों में अंसतोष बढ़ा। नेपाल में 1990 के दशक में पहला बड़ा जनआंदोलन हुआ। लोग बहुदलीय लोकतंत्र की मांग लेकर सड़कों पर उतरे। 

कैसे माओवादी हुए मजबूत?
नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी समेत कई दल सड़क पर उतरे। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई, दर्जनों लोग मारे गए। 1990 में राजा बीरेंद्र ने बहुदलीय लोकतंत्र की मांग मान ली। नेपाल में एक संविधान को मान्यता मिली, राजनीतिक दलों को मान्यता मिली लेकिन पूरी तरह से लोकतंत्र नहीं आया था। राजा के फैसले ही अंतिम फैसले होते थे।

दूसरा आंदोलन, राजा बीरेंद्र और दीपेंद्र की मौत के बाद शुरू हुआ। राजा बीरेंद्र की जब हत्या हुई तो परिवार के सारे लोग मारे गए। राजा बीरेंद्र के भाी, ज्ञानेंद्र उस वक्त पोखरा में थे। उन्होंने परिवार की विरासत संभाली। उनके आलोचक कहते हैं कि वह भी हत्या में शामिल थे, तभी वह हत्या वाली रात पोखरा में थे।  

राजा ज्ञानेंद्र सत्ता में आए तो उन्होंने 2005 में संसद ही भंग कर दी। उन्होंने पूर्ण राजशाही की स्थापना की। तब तक नेपाल में माओवाद अपने चरम पर फैल गया था। 90 के दशक में शुरू हुआ माओवादी विद्रोह अपने चरम पर था।  सारे राजशाही विरोधी गठबंधन एक साथ आए। माओवादी इस आंदोलन को लीड कर रहे थे। राजा ज्ञानेंद्र सेना के जरिए विद्रोह कुचलने की कोशिश में लगे थे लेकिन जन आक्रोश बढ़ गया था। नेपाल की जनता उन्हें राजा नहीं स्वीकार कर पाई थी। 24 अप्रैल 2006 तक उन्हें सत्ता से बेदखल हो जाना पड़ा। 

राजा ज्ञानेंद्र की अपमानजनक बेदखली 
28 मई 2008 को नेपाल संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। राजशाही खत्म हो गई, राष्ट्रपति प्रणाली लागू हो गई। राजा ज्ञानेंद्र, राजा से नागरिक घोषित हो गए, उन्हें नारायणहिटी महल (नेपाल के राजा का आधिकारिक आवास) से बेदखल होना पड़ा। राजा से उनका महल छीन लिया गया। यह वही दौर था, जब नेपाल से दुनिया के इकलौते हिंदू राष्ट्र का खिताब छीन लिया गया। नेपाल, सेक्युलर देश बन गया। तब से लेकर अब तक रह-रहकर नेपाल की आजादी की मांग उठती रहती है। 

नेपाल में लहरा रहे हैं सीएम योगी के पोस्टर, लोग राजशाही वापसी की मांग कर रहे हैं। 

नेपाल में अब क्या हो रहा है?
नेपाल में कुछ संगठन राजतंत्र के की मांग कर रहे हैं। लोग सड़कों पर हैं। लोगों का कहना है कि नेपाल में राजशाही का दौर लौटना चाहिए और हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहिए। पोखरा और काठमांडू में रविवार को लोगों ने ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में नारे लगाए, राजशाही की मांग की। 10 हजार से ज्यादा लोगों ने त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उनकी अगवानी की। 

प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए कि नारायणहिटी को खाली कर दो, हमारे राजा आ रहे हैं। नेपाल में योगी आदित्यनाथ के समर्थन में भी पोस्टर लहराए गए, जिनमें उनके दखल देने की मांग की गई है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेननवादी) की ओर से कड़ी प्रतिक्रियाएं जाहिर की जा रही हैं। 

कहा जा रहा है कि ज्ञानेंद्र विदेशी हस्तक्षेप से राजशाही हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। माओवादी सरकार ने नेपाल की राजधानी काठमांडू में निषेधाज्ञा लगा दी है। लोगों का कहना है कि नेपाल में लोकतंत्र हाशिए पर है, लोगों का भला राजशाही से होगा।

 

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