कौन हैं हबीब उमर बिन हाफिज जिनके दखल से बदल सकती है निमिषा की किस्मत?
दुनिया
• SANAA 15 Jul 2025, (अपडेटेड 15 Jul 2025, 9:37 PM IST)
यमन में सजा-ए-मौत का सामना कर रहीं निमिषा प्रिया की फांसी रुक सकती है। यमन के प्रभावशाली सूफी विद्वान हबीब उमर बिन हाफिज, तलाल के परिवार से बात करने वाले हैं।

शेख हबीब उमर बिन हाफिज। (Photo Credit: Fb/KQZInstitutePage)
यमन की जेल में बंद केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी पर बड़ी खबर सामने आई है। न्यूज एजेंसी PTI ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि निमिषा प्रिया की फांसी को फिलहाल टाल दिया गया है। निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को फांसी दी जानी थी। उन्हें अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी हत्या के जुर्म में फांसी की सजा दी गई है।
ऐसा बताया जा रहा है कि सूफी विद्वान और सुन्नी मुसलमानों के एक नेता कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार की तरफ से निमिषा प्रिया की फांसी रुकवाने के लिए आखिरी वक्त में कोशिश की जा रही है। मुसलियार को आधिकारिक तौर पर शेख अबूबकर अहमद के नाम से जाना जाता है, जिन्हें भारत के ग्रैंड मुफ्ती की उपाधि मिली है। उन्होंने यमन के इस्लामिक विद्वानों के साथ मुलाकात की थी। इसके बाद सूफी नेता शेख हबीब उमर बिन हाफिज को तलाल के परिवार से मुलाकात करने को कहा गया है।
तो टल जाएगी निमिषा की फांसी?
बताया जा रहा है कि तलाल के परिवार के एक सदस्य, जो होदेदाह कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं और यमन की शूरा काउंसिल के सदस्य भी हैं, शेख हबीब उमर की सिफारिश पर बातचीत में शामिल होने के लिए तलाल के पैतृक शहर धमार पहुंच गए हैं।
तलाल की हत्या का धमार के लोगों के लिए भी भावनात्मक मामला है, इसलिए अब तक कोई भी उनके परिवार से बातचीत नहीं कर पाया था। हालांकि, अब अबूबकर मुसलियार के दखल के बाद यह मुमकीन हो पाया है। बताया जा रहा है कि शेख हबीब उमर हाफिज से बात करने के लिए तलाल का परिवार मान गया है।
दरअसल, निमिषा के परिवार ने तलाल के परिवार को 'ब्लड मनी' देने की पेशकश की है। ब्लड मनी असल में वह रकम होती है जो पीड़ित परिवार को दी जाती है, जिसे लेकर वह दोषी परिवार को माफी दे सकता है। इसे लेकर शेख हबीब उमर बिन हाफिज और तलाल के परिवार के बीच बात हो सकती है। अगर बातचीत कामयाब होती है और तलाल का परिवार ब्लड मनी के लिए मानकर माफी दे देता है तो निमिषा की फांसी रुक सकती है।
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कौन हैं अबूबकर मुसलियार?
एपी अबूबकर मुसलियार एक प्रमुख भारतीय इस्लामी विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक नेता हैं। वह भारत के दसवें और वर्तमान ग्रैंड मुफ्ती हैं। ग्रैंड मुफ्ती का पद इस्लामी कानून यानी शरिया में सबसे ऊपर होता है। वह ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलेमा और समस्त केरल जमीयतुल उलेमा के महासचिव भी हैं।
22 मार्च 1931 को केरल के कोझिकोड जिले के कंथापुरम गांव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में जन्मे अबूबकर मुसलियार का नाम अलुंगा पॉयिल है। उनके पिता का नाम मौथरियिल अहमद हाजी और माता का नाम कुन्हीमा हज्जुम्मा था। उनके पिता का निधन तब हुआ जब वह केवल 12 वर्ष के थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कंथापुरम के AMLP स्कूल से हासिल की, जहां इस्लामी और सामान्य शिक्षा दोनों दी जाती थी।
20 जुलाई 2018 को पूर्व ग्रैंड मुफ्ती मुहम्मद अख्तर रजा खान कादरी के इंतकाल के बाद, ऑल इंडिया तंजीम उलेमा-ए-इस्लाम ने 24 फरवरी 2019 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें भारत का ग्रैंड मुफ्ती चुना।
निमिषा प्रिया केस के बारे में उन्होंने कहा कि ब्लड मनी यानी दियाह को मान लेना चाहिए। उन्होंने कहा, 'यमन में एक हत्या हुई। हत्या के बाद अदालत में मामला दायर किया गया और अदालत ने निमिषा प्रिया को फांसी देने का आदेश दिया। इस्लाम में हत्या के बदले दियाह (ब्लड मनी) देने का भी रिवाज है। मैंने उनसे दियाह स्वीकार करने का अनुरोध किया है क्योंकि यहां पार्टी इसके लिए तैयार है। इस बारे में बातचीत चल रही है कि क्या मेरा अनुरोध स्वीकार किया जाना चाहिए।'
#WATCH | Kozhikode, Kerala | On the case of Nimisha Priya, Grand Mufti Sheikh Abubakr Ahmad Kanthapuram says "A murder happened in Yemen. After the murder, a case was filed in court and the court ordered the execution of Nimisha Priya. In Islam, instead of killing, there is also… pic.twitter.com/6O1wTBR744
— ANI (@ANI) July 15, 2025
कौन हैं शेख हबीब उमर हाफिज?
तलाल के परिवार से शेख हबीब उमर हाफिज की बातचीत होगी। अगर सबकुछ ठीक रहा तो निमिषा की फांसी टल सकती है और वह रिहा हो सकती हैं।
शेख हबीब उमर बिन हाफिज का जन्म 27 मई 1963 को यमन के तरिम में हुआ था। वह एक इस्लामी विद्वान और शिक्षक हैं, जो सुन्नी इस्लाम और सूफी परंपरा का पालन करते हैं। वह यमन के तरिम शहर में दार अल-मुस्तफा नामक एक प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान के संस्थापक और प्रमुख हैं। इसके अलावा, वह अबू धाबी में तबाह फाउंडेशन की सुप्रीम एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य भी हैं।
उन्हें सय्यिद यानी पैगंबर मुहम्मद की संतान माना जाता है, जिनके पूर्वज उनके नाती हुसैन बिन अली से जुड़े हैं। उनके परिवार का उपनाम 'हाफिज' उनके परदादा से आया है, जो शेख अबूबकर बिन सलीम परिवार से जुड़ा है।
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15 साल की उम्र से ही पढ़ाना शुरू कर दिया था
बताया जाता है कि हबीब उमर बिन हाफिज ने बहुत कम उम्र में ही कुरान को याद कर लिया था। उनके पिता मुहम्मद बिन सलीम बिन हाफिज तरिम के मुफ्ती थे। कम्युनिस्ट विद्रोह के दौरान उनके पिता की हत्या कर दी गई थी।
यमन के अल-रैबात शहर के अल-बायदा रिबात से उन्होंने फिक्ह, हदीस और अरबी भाषा समेत कई धार्मिक विषयों की पढ़ाई की। बताया जाता है कि 15 साल की उम्र से ही उन्होंने इस्लाम की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी। वह इस्लाम की शिक्षा भी देते थे और खुद भी पढ़ते थे।
उन्होंने तरिम में 'दार उल-मुस्तफा' नाम से एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना भी की, जो अब काफी प्रसिद्ध है। यहां दुनियाभर से आए छात्रों को इस्लामी शिक्षा दी जाती है। इसकी खास बात यह है कि यहां पारंपरिक इस्लामी शिक्षा को आधुनिक तरीके से पढ़ाया जाता है।
इसके अलावा, उन्होंने महिलाओं को इस्लामी शिक्षा देने के मकसद से 'दार अल-जहरा' नाम से भी एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना की थी।
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कई किताबें भी लिख चुके हैं हबीब उमर
हबीब उमर और उनका परिवार कई पीढ़ियों से इस्लाम का प्रचार कर रहा है। उन्होंने अब तक कई किताबें भी लिखी हैं। पैगंबर मुहम्मद के जीवन पर उन्होंने 'अल-दिया अल-लामी फि धिक्र मौलिद अल-नबी अल-शफी' नाम से एक किताब भी लिखी है, जिसे 'The Shimmering Light' के नाम से भी जाना जाता है।
हबीब उमर दुनिया के सबसे प्रभावशाली मुस्लिमों में से एक हैं। 2025 के सबसे प्रभावशाली 500 मुस्लिमों में हबीब उमर दूसरे नंबर पर थे।
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