प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 दिन में 3 देशों की यात्रा पर रहेंगे। पीएम मोदी साइप्रस, कनाडा और क्रोएशिया का दौरा करेंगे। इसके लिए पीएम मोदी रवाना हो गए हैं।
इसमें सबसे अहम यात्रा साइप्रस की रहेगी। पीएम मोदी की इस यात्रा को तुर्किए के लिए एक कूटनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है। वह इसलिए क्योंकि साइप्रस के एक बड़े हिस्से पर 1974 से तुर्किए ने कब्जा कर रखा है। यह इसलिए भी अहम है, क्योंकि 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान तुर्किए ने पाकिस्तान का साथ दिया था। इसका असर भारत और तुर्किए के रिश्तों पर भी पड़ा था।
40 साल में यह तीसरी बार है, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री साइप्रस का दौरा कर रहा है। पीएम मोदी से पहले 1982 में इंदिरा गांधी और 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी ने साइप्रस का दौरा किया था। प्रधानमंत्री मोदी साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडोलाइड्स के न्योते पर जा रहे हैं।
यह भी पढ़ें-- दोस्त से दुश्मन तक... इजरायल और ईरान की दुश्मनी की पूरी कहानी
तुर्किए और साइप्रस में क्या है विवाद?
साइप्रस एक छोटा-सा द्वीप देश है, जो पूर्वी भूमध्य सागर में है। 1974 में तुर्किए ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया और वहां 'तुर्किए गणराज्य उत्तरी साइप्रस' (TRNC) बना दिया। इसे सिर्फ तुर्किए ही मान्यता देता है। बाकी दुनिया और संयुक्त राष्ट्र (UN) दक्षिणी हिस्से यानी 'रिपब्लिक ऑफ साइप्रस' को ही मान्यता देते हैं। यही हिस्सा यूरोपीय संघ का सदस्य हैं।
यह भी पढ़ें-- साइप्रस, कनाडा और क्रोएशिया; PM मोदी की यात्राओं का एजेंडा क्या है?
तुर्किए को कैसे मिलेगा संदेश?
पीएम मोदी की इस साइप्रस की यात्रा से तुर्किए को कड़ा संदेश मिलेगा। पाकिस्तान से तनाव के बीच एक तरफ साइप्रस ने भारत का साथ दिया था तो वहीं तुर्किए ने पाकिस्तान का साथ दिया था। न्यूज एजेंसी ANI ने राजनयिक सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस यात्रा का मकसद तुर्किए को संदेश भेजना है।

पहलगाम अटैक की साइप्रस ने निंदा भी की थी। आतंकवाद के खिलाफ भारत की कार्रवाई का भी साइप्रस ने समर्थन किया था। दौरे के लिए रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान जारी कर कहा कि यह दौरा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के निरंतर समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त करने का एक अवसर है।
इसके अलावा, साइप्रस उस इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) का हिस्सा भी है, जो भारत को यूरोप और मध्य पूर्व से जोड़ेगा।
यह भी पढ़ें-- ईरान, लेबनान, गाजा, हर तरफ दुश्मन, फिर भी कैसे अजेय है इजरायल?
मोदी की यात्रा कितनी अहम?
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा को रणनीतिक लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। पीएम मोदी की यह यात्रा भारत और साइप्रस के रिश्तों को और मजबूत करेगी। पीएम मोदी की यह यात्रा यूरोप में भी भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगा, क्योंकि 2026 की शुरुआत में साइप्रस यूरोपियन यूनियन काउंसिल का अध्यक्ष बनने वाला है।
भारत और तुर्किए दोनों एक-दूसरे के लिए इसलिए भी जरूरी हैं, क्योंकि भारत हमेशा से अंतर्राष्ट्रीय कानून के हिसाब से साइप्रस की समस्या का समाधान चाहता है। वहीं, साइप्रस भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सीट का समर्थन करता है। इसके साथ ही साइप्रस न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) और इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) की सदस्यता के लिए भी भारत का समर्थन करता है।
अपने दौरे में प्रधानमंत्री मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडोलाइड्स के साथ बैठक भी होगी। इस दौरे में पीएम मोदी साइप्रस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ माकारियोस III' से सम्मानित किया जाएगा।