कभी खट्टे-कभी मीठे... कहानी भारत और अमेरिका के रिश्तों की
दुनिया
• NEW DELHI 13 Feb 2025, (अपडेटेड 13 Feb 2025, 6:25 AM IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के दौरे पर रहेंगे। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में पीएम मोदी का ये पहला अमेरिका दौरा है। ऐसे में जानते हैं कि भारत और अमेरिका के रिश्ते कैसे रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रंप और पीएम मोदी। (File Photo Credit: PMOIndia)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आज मुलाकात होने वाली है। ट्रंप का दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी का ये पहला अमेरिकी दौरा है। प्रधानमंत्री मोदी का ये दौरा ऐसे समय हो रहा है, जब हाल ही में अमेरिका से 104 भारतीयों को डिपोर्ट करने का मामला गरमाया हुआ है।
जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से उनका ये 10वां अमेरिका दौरा है। वहीं, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और जो बाइडेन एक-एक बार भारत आए हैं। ट्रंप भी अपने पहले कार्यकाल में सिर्फ एक बार ही भारत आए थे। तब उन्होंने अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।
भारत-अमेरिका रिश्तों की ठंडी शुरुआत!
1947 में बंटवारे के बाद जब भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क बने तो अमेरिका ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। अमेरिका और पाकिस्तान की दोस्ती का जवाब देने के लिए भारत ने सोवियत संघ (अब रूस) से करीबियां बढ़ाईं।
हालांकि, 1960 के बाद जब अमेरिका और सोवियत संघ में 'कोल्ड वॉर' शुरू हुआ तो नेहरू ने 'गुट निरपेक्ष की नीति' का पालन किया। भारत ने किसी को खुश करने के लिए दूसरे को नाराज नहीं किया। उसने सबसे अच्छे संबंध बनाए रखे। हालांकि, आजादी के बाद कई दशकों तक भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे। इसे इस उदाहरण से ही समझा जा सकता है कि कभी अमेरिका ने गेहूं के लिए भारत को 'भिखारियों का मुल्क' तक कह दिया था।
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'भिखारियों का मुल्क'
आजादी के बाद कई सालों तक भारत अपनी खाने-पीने की जरूरतों के लिए अमेरिका पर निर्भर था। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो मार्च 1966 में वो अपनी पहली विदेश यात्रा पर गईं। उस दौरे में इंदिरा गांधी को अमेरिका भी जाना था।
रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'नेहरू के बाद भारत' में लिखते हैं, 'इंदिरा गांधी की यात्रा पर अल्बामा के एक अखबार ने खबर छापी थी, जिसकी हेडलाइन थी- भारत की नई प्रधानमंत्री खाद्यान्नों की भीख मांगने अमेरिका आ रही हैं।'
इंदिरा गांधी ने अपनी इस यात्रा से अमेरिकियों को खासा प्रभावित कर दिया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडसे जॉनसन भी काफी प्रभावित हुए। इंदिरा जब भारत लौटीं तो अमेरिका ने एक शर्त रखी। भारत चाहता था कि सालभर की जरूरत का अनाज एक बार में ही मिल जाए। जबकि, लिंडसे जॉनसन इसे हर महीने के हिसाब से देना चाहते थे। जॉनसन का मानना था कि भारतीयों को खेती करना नहीं आता और उन्हें अमेरिकियों से ये सीखना चाहिए।
1965 और 1966 में भारत ने अमेरिका से पब्लिक लोन के तहत 1.5 करोड़ टन गेहूं आयात किया था। इसे PL480 कहा जाता है। तब अमेरिका ने भारत का मजाक उड़ाते हुए एक रिपोर्ट में लिखा था, 'हिंदुस्तान भिखारियों और निराश्रितों का देश है।'
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1971 की जंग में भी पाकिस्तान का साथ
1971 में जब जंग शुरू हुई तो अमेरिका एक तरह से पाकिस्तान के साथ खड़ा था। इस जंग में जब भारत पूरी तरह से शामिल हुआ और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भारतीय सेना दाखिल हुई तो अमेरिका बौखला गया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अपना एयरक्राफ्ट कैरियर बंगाल की खाड़ी में भेज दिया। निक्सन के आदेश थे कि जरूरत पड़ने पर भारतीय सैन्य बेस पर हमला करने में हिचकिचाएं नहीं।
इसके बाद भारत की मदद के लिए रूस आगे आया। रूस अपनी न्यूक्लियर पॉवर्ड सबमरीन को पानी की ऊपरी सतह पर ले आया। जब अमेरिका को इसका पता चला तो वो घबरा गया, क्योंकि वो जानता था कि अगर भारत पर हमला हुआ तो रूस की पनडुब्बी उसके जहाज को उड़ा देगी। लिहाजा अमेरिका ने अपने एयरक्राफ्ट कैरियर को बंगाल की खाड़ी से वापस बुला लिया।
जब न्यूक्लियर टेस्ट पर मुंह फुला बैठा था अमेरिका!
कोई नहीं चाहता कि ताकत में कोई भी उसके बराबर हो या उससे ज्याद हो। अमेरिका की भी यही फितरत रही है। यही कारण है परमाणु परीक्षण करने पर अमेरिका तिलमिला जाता है।
1974 में इंदिरा गांधी की सरकार में भारत ने राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। इसे 'स्माइलिंग बुद्धा' नाम दिया गया। अमेरिका इससे तिलमिला गया। अमेरिका में भारत पर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए। उसी साल परमाणु अप्रसार संधि यानी NPT लाई गई। साफ किया गया कि जो देश इस पर साइन नहीं करेगा, उससे कोई परमाणु कारोबार नहीं किया जाएगा। भारत ने संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भारत ने एक बार फिर पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। इससे अमेरिका और चिढ़ गया। भारत पर फिर कड़े प्रतिबंध लगाए गए। आलम ये हुआ कि कई सालों तक भारत और अमेरिका के बीच जबरदस्त तनाव आ गया।
मई 2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अमेरिका से रिश्ते सुधारने की पहल की। 2005 में मनमोहन ने अमेरिका का दौरा किया। उस दौर में उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश से मुलाकात की और एक परमाणु समझौते के लिए मना लिया। मार्च 2006 में जॉर्ज बुश अमेरिका आए। इस दौरे में भारत और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक परमाणु समझौता हुआ। हालांकि, ये डील पूरी होने में ढाई साल का समय लग गया। अक्टूबर 2008 में जॉर्ज बुश ने समझौते पर हस्ताक्षर किए।
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तो क्या अच्छे दोस्त नहीं हैं भारत-अमेरिका?
अमेरिका पर भरोसा कर पाना थोड़ा मुश्किल सा होता है। उसकी वजह भी है। भारत और पाकिस्तान जब अलग-अलग मुल्क बने तो अमेरिका की नजदीकियां पाकिस्तान से ज्यादा रहीं। कोल्ड वॉर के दौरान भी अमेरिका के खेमे में पाकिस्तान रहा।
अमेरिका से नजदीकियां 90 के दशक में तब बढ़नी शुरू हुईं, जब भारत ने अपना बाजार खोल दिया। हालांकि, इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान की करीबियां चीन से बढ़ गईं। भारत और अमेरिका के खट्टे-मीठे रिश्तों की एक वजह ये भी है कि जब भी वहां सरकार बदलती है तो नीतियां बदल जाती हैं। जबकि, भारत के साथ ऐसा नहीं है। भारत आज भी नेहरू के दौर की 'गुट निरपेक्ष नीति' पर ही चलता है।
मोदी सरकार में भारत और अमेरिका पहले से काफी करीब आए हैं। हालांकि, इसकी एक वजह चीन भी है। चीन तेजी से उभर रहा है और अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती दे रहा है। चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत की जरूरत है। इन सबके बीच भारत एक बेहतर 'बैलेंस' बनाकर चल रहा है।
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