पोप फ्रांसिस नहीं रहे। 88 साल की उम्र में उनका वेटिकन सिटी में निधन हो गया। वह उम्र संबंधी परेशानियों का सामना कर रहे थे और कई हफ्तों से बीमार थे। पोप फ्रांसिस, पोप बनने वाले पहले लैटिन अमेरिकी थे। साल 2013 में उन्होंने यह पद संभाला था। बेनेडिक्ट XI के इस्तीफे के बाद उन्हें पोप चुना गया था। जब वह पोप बने थे, तब से लेकर अब तक, कई गंभीर बीमारियों से उन्हें जूझना पड़ा। वह लंबे समय से बीमार थे और कई अस्पतालों में उनका इलाज कराया गया था।
पोप फ्रांसिस का जन्म जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो के तौर पर हुआ था। वह अर्जेंटीना के थे। पोप के कई फैसले ऐसे रहे, जिसकी दुनियाभर में खूब चर्चा हुई। वह वेटिकन के सर्वोच्च नेता थे, उन्होंने कई विदेश दौरे किए, 900 से ज्यादा ईसाई संतों को दीक्षा दी।
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पोप के निधन की घोषणा कार्डिनल केविन फेरेल ने की। उन्होंने कहा, 'सुबह 7:35 बजे पोप फ्रांसिस ने आखिरी सांस ली। फ्रांसिस का पूरा जीवन ईश्वर और चर्च की सेवा में समर्पित था। पोप फ्रांसिस ने हम सबको हमेशा साहस, प्यार और समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के पक्ष में खड़ा रहने की प्रेरणा दी। पोप फ्रांसिस, प्रभु यीशू के सच्चे शिष्य थे।'
कौन थे पोप फ्रांसिस?
पोप फ्रांसिस सुधारवादी आंदलनों के लिए जाने जाते हैं। वह रोमन कैथोलिक चर्च में सुधारों के लिए दुनियाभर में विख्यात रहे। दिलचस्प बात यह है कि वह जितने लोकप्रिय सुधारवादी ईसाइयों में रहे, उतने ही रूढ़िवादियों में भी। पोप फ्रांसिस, वेटिकन सिटी के प्रतिनिधि के तौर पर दुनिया 68 से ज्यादा देशों में घूम चुके थे।
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जॉर्ज मारियो का जन्म 17 दिसंबर 1936 में हुआ था। वह अर्जेंटीना में पैदा हुए थे लेकिन इटली से भी उनकी जड़ें इटली से जुड़ी हैं। पोप को ईसाई धर्म की गहराइयों से उनकी दादी ने परिचित कराया। वह कई मौकों पर ऐसा कह चुके हैं। फ्रांसिस, 16 साल की उम्र में ही आध्यात्मिक राह पर चल पड़े थे।
दादी से सीखा धर्म, 16 साल की उम्र में संन्यास
पोप फ्रांसिस ने अपनी दादी से धर्म की शिक्षा ली। उन्हें इसी उम्र में कुछ आध्यात्मिक अनुभव हुए जिसके बाद उन्होंने ठान लिया कि अब पादरी बनना है। उन्होंने जेसुइट ऑर्डर में हिस्सा लिया और मिशनरी से जुड़ गए। कम उम्र में ही उन्हें लोकप्रियता मिलने लगी। साल 2013 में पोप बनने के बाद, उन्होंने दुनिया से एकजुट होने की अपील की। उन्होंने कहा कि दुनिया के सभी धर्मों के लोग साथ आएं।
36 साल की उम्र में बन गए थे ईसाइयों के नेता
ईसाई धर्म के पादरी के तौर पर उन्हें साल 1973 में दुनिया ने जाना। वह जब 36 साल की उम्र के थे, तब उन्हें अर्जेटीना के जेसुइट ऑर्डर का मुखिया बना दिया गया। वह साल 1979 तक इसी पद पर रहे। साल 2013 में वह रोम के बिशप बने। उन्हें पोप की गद्दी मिली। सेंट पीटर की बेसिलिका से उन्होंने दुनिया को संदेश दिया था, 'आइए पूरी दुनिया के लिए प्रार्थना करते हैं। धर्म और नस्ल से परे उनकी इंसानियत के लिए।' पोप फ्रांसिस अलग-अलग धर्मों का सम्मान करते थे, वह दुनिया से मानवता के लिए एकजुट होने की अपील करते थे।