विश्व के दो बड़े और मजबूत देश चीन और रूस, दोनों ही मजबूत और पुराने साझेदार रहे हैं। वैश्विक राजनीति से लेकर व्यापार और एनर्जी समेत कई सेक्टर में दोनों ही एक दूसरे के साथ मजबूती से खड़े नजर आते हैं। अमेरिका के विरोध में इनके रिश्ते ज्यादा पनपे हैं जो पश्चिम देशों के प्रभुत्व को चुनौती देते नजर आते हैं। 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सत्ता में आने के बाद से दोनों के रिश्ते और भी मजबूत हुए हैं। दोनों देशों के संबंध आर्थिक सहयोग पर आधारित है। रूस कच्चे माल और उर्जा के आपूर्तिकर्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाता है जबकि चीन तकनीकी, बाजार और वित्तीय सहयोग करता है।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 2000 में सत्ता में आने के बाद से इन दोनों देशों के बीच साझेदार और मजबूत हुआ है। 2014 में क्रीमिया पर कब्जा या 2022 में यूक्रेन पर हमले से लेकर चीन का रूस को दिया समर्थन आज के रिश्तों को और मजबूत बनाता है। दोनों देश एक दूसरे की न्यूक्लियर मजबूती को सपोर्ट करते हैं। फिलहाल की बात करें तो दोनों ही देशों के संबंध व्यवहारिक है। विचारधारा के स्तर पर दोनों दल एक-दूसरे के सिद्धातों के अनुकूल हैं। दोनों ही एक दूसरे की मदद हर स्थिति में करने को तैयार रहते हैं।
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दोनों देशों का इतिहास
दोनों देशों की सीमा लगभग 4,200 किलोमीटर लंबी है। 19वीं सदी के अंत में किंग डायनेस्टी के जारवादी विस्तार के समय से ही दोनों के बीच संघर्ष का प्रमुख हिस्सा रही है। 1969 में झेनबाओ द्वीप पर सैन्य तनाव ने रूस और चीन के बीच एक अनसुलझे सीमा विवाद के रणनीतिक बोझ को दर्शाया है। 1990 के बाद दोनों देशों ने सुधार के लिए प्रयास कई किए हैं।इसमें सैन्य वापसी और सीमा पर व्यापार के साथ शुरू हुई बातचीत शामिल है। 2004 के सीमा समझौते के बाद सीमा पर व्यापार के संबंध में होने वाले बदलावों को लागू किया गया है।आपको बता दें कि रूस द्वारा चीन के कुछ हिस्सों को अभी तक वापस नहीं किया गया है।
दोनों देशों के बीच संबंध कैसे है
1. रणनीतिक साझेदार- चीन और रूस अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी कहते हैं। उनके बीच औपचारिक सैन्य गठबंधन नहीं है लेकिन दोनों ही आपसी सहमति, विश्वास और मल्टीपोलर दुनिया की व्यवस्था पर जोर देते हैं। दोनों अक्सर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एकमत होते हैं (जैसे, पश्चिमी समर्थित प्रस्तावों के खिलाफ वीटो लगाना)।
2. व्यापार और आर्थिक संबंध- साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में छपी खबर के मुताबिक, जुलाई 2025 में चीन और रूस के बीच का कुल व्यापार 19.14 अरब अमेरिकी डॉलर रहा जो जून की तुलना में 8.7 प्रतिशत अधिक है। यह आकड़ें ट्रंप द्वारा लगाए गए रुस पर टैरिफ लगाने के बावजूद बढ़े हैं। दोनों देशों के बीच का कुल व्यापार लगभग 106.48 अरब अमेरिकी डॉलर का है। रूस चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। रूस चीन को तेल, नैचुरल गैस और कोयले की सप्लाई करता है। पॉवर ऑफ साइबेरिया गैस पाइपलाइन जो कि 2019 से ऑपरेशनल है, दोनों के बीच बहुत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है।
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3. व्यापार और निवेश- बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के तहत रेलवे, उर्जा पाइपलाइन और आर्कटिक विकास में दोनों देश तेजी से काम कर रहे हैं। वेस्ट देशों के प्रतिबंधों से बचने के लिए रूस व्यापार में युआन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा रहा है। रूस और चीन के बीच 50% से ज्यादा का व्यापार युआन और रूबल में हो चुका है। चीन, रूस को सेमीकंडक्टर, तकनीकी उपकरण और ड्रोन जैसी जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति करता है।
4. संकट में सहयोग- यूक्रेन से युद्ध के बाद चीन ने रूस के खिलाफ कोई भी बयान जारी नहीं किया। बल्कि रियायती दरों पर रूसी उर्जा खरीदकर बीजिंग ने मास्को की बहुत मदद की। कई पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बावजूद चीन का बड़ा बाजार रूस के लिए जीवनरेखा का काम करता है।
5. राजनीतिक और सैन्य आयाम- दोनों देशों के बीच शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे ढांचों के अंतर्गत सैन्य अभ्यास करते हैं। रूस ने चीन को Su-35 लड़ाकू विमान, S-400 वायु रक्षा प्रणाली जैसे कई हथियार बेचे हैं। दोनों ही संवेदनशील मुद्दों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। चीन नाटो विस्तार के खिलाफ रूस का समर्थन करता है। रूस ताइवान, शिनजियांग और हांगकांग पर चीन का समर्थन करता है।
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चीन और रूस के रिश्ते ऊर्जा व्यापार, वित्तीय सहयोग और पश्चिमी प्रभुत्व के साझा विरोध पर आधारित हैं। खासकर संकट के समय में रूस कच्चा माल और ऊर्जा प्रदान करता है, जबकि चीन तकनीक, बाजार और वित्तीय सहयोग प्रदान करता है। भारत का दोनों देशों के साथ संबंध खासकर रूस के साथ सकारात्मक है। भारत के साथ चीन के संबंध कई वर्षों से डॉउनफॉल में ही चल रहे हैं। अमेरिका के प्रतिबंधों के बाद भारत चीन और रूस के साथ संबंधों में किस तरह बदलाव होगा ये देखना होगा।