भारतीय की विदेश में मौत के बाद परिवार को कब और कैसे मिलता है शव?
दुनिया
• OTTAWA 23 Jun 2025, (अपडेटेड 23 Jun 2025, 3:33 PM IST)
5 दिन से अधिक समय बीत जाने के बावजूद कनाडा में तान्या त्यागी का पार्थिव शरीर भारत नहीं पहुंचा है। आखिर विदेश से शव को भारत में लाने में कितना समय लगता है, यहां जानें सबकुछ।

सांकेतिक तस्वीर, Photo Credit: Sora/chatgpt
कनाडा में पढ़ाई करने गई तान्या त्यागी की दुखद मौत हो गई है। परिवार के मुताबिक, तान्या की मौत दिल का दौरा (कार्डियक अरेस्ट) आने से हुई। अब सबसे बड़ी चिंता यह है कि उसके पार्थिव शरीर को भारत लाने में करीब 15 लाख रुपये का खर्च आ रहा है, जो परिवार के लिए बहुत बड़ी रकम है। तान्या के परिवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री से मदद की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह खुद से बेटी का शव दिल्ली ला सकें।मौत को अब पांच दिन हो चुके हैं लेकिन अभी तक यह नहीं पता कि शव भारत कब पहुंचेगा। परिवार का कहना है कि ऐसा लग रहा है कि इसमें 15 दिन से भी ज्यादा समय लग सकता है। सबसे तकलीफ की बात यह है कि 9 जुलाई को तान्या का जन्मदिन था लेकिन अब परिवार कभी भी उसके साथ वो दिन नहीं मना पाएगा। यह सिर्फ तान्या की कहानी नहीं है।
ऐसे कई भारतीय छात्र और कामकाजी लोग हैं जो कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रहते हैं और अगर वहां कोई हादसा हो जाए, तो उनके परिवार वालों को न सिर्फ भावनात्मक दर्द झेलना पड़ता है, बल्कि पार्थिव शरीर को वापस लाने की लंबी, थकाऊ और महंगी प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है। अब सवाल यह उठता है कि अगर किसी भारतीय की विदेश में मौत हो जाए, तो उसका शव भारत लाने में कितना खर्च आता है, कितने दिन लगते हैं और यह पूरी प्रक्रिया क्या होती है?
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वह सभी सवाल जिसके यहां है जवाब
विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) की वेबसाइट पर 'Transfer of Mortal Remains' वाले पेज पर इस प्रक्रिया से जुड़ी सारी जानकारी दी गई है। आज हम आपको वहीं से मिली जानकारी के आधार पर इन जरूरी सवालों के जवाब देंगे।
जैसे:
- क्या भारतीय दूतावास पार्थिव शरीर (मृत शरीर) को भारत लाने में मदद करता है?
- अगर वहां कोई रिश्तेदार या जानने वाला नहीं है जो ये प्रक्रिया पूरी कर सके, तो क्या दूतावास खुद से कुछ करता है?
- अगर परिवार पार्थिव शरीर को भारत लाने का खर्च नहीं उठा सकता, तो क्या ऐसे हालात में दूतावास या वाणिज्य दूतावास मदद करता है?
क्या है शव लाने की प्रक्रिया?
इन सभी सवालों के सीधे और साफ जवाब मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर दिए हैं, जिसके मुताबिक, 'अगर किसी भारतीय नागरिक की विदेश में मौत हो जाती है और उनके पार्थिव शरीर को भारत लाना हो, तो सबसे पहले वहां मौजूद भारतीय दूतावास या वाणिज्य दूतावास में मौत का पंजीकरण करवाना जरूरी होता है। इसके लिए आमतौर पर कुछ जरूरी दस्तावेज देने पड़ते हैं। जैसे:
- अस्पताल से मिला मृत्यु प्रमाण पत्र या मेडिकल रिपोर्ट
- अगर मौत दुर्घटना या किसी अप्राकृतिक कारण से हुई है, तो पुलिस रिपोर्ट की कॉपी (अगर वो किसी विदेशी भाषा में हो, तो उसका अंग्रेजी अनुवाद भी)
- मृतक के करीबी रिश्तेदार की तरफ से एक सहमति पत्र जिसमें लिखा हो कि वह पार्थिव शरीर को वापस भारत लाना चाहते हैं या वहीं अंतिम संस्कार करना चाहते हैं– यह पत्र नोटरी से प्रमाणित होना चाहिए
- मृतक का पासपोर्ट और वीजा पेज की फोटोकॉपी
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पार्थिव शव को भारत लाने के नियम क्या
इसके अलावा पार्थिव शरीर को पैक करने की मंजूरी और इमिग्रेशन या कस्टम जैसी स्थानीय एजेंसियों की अनुमति जैसी कुछ और औपचारिकताएं भी होती हैं। ये सभी नियम देश के हिसाब से थोड़े अलग हो सकते हैं। अगर मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है, तो आमतौर पर प्रक्रिया में ज्यादा समय नहीं लगता लेकिन अगर मौत की वजह संदेहास्पद या अप्राकृतिक हो, तो वहां की स्थानीय जांच के कारण शरीर को भारत लाने में थोड़ा ज्यादा वक्त लग सकता है।
भारतीय दूतावास के अधिकारी मृतक के परिवार से लगातार संपर्क में रहते हैं और उनकी इच्छा के मुताबिक पार्थिव शरीर को या तो भारत लाने या वहीं अंतिम संस्कार करवाने में पूरी मदद करते हैं। इसके अलावा वे स्थानीय अधिकारियों से भी संपर्क करते हैं ताकि जरूरी प्रक्रिया जल्दी पूरी की जा सके। अगर परिवार का कोई सदस्य या दोस्त पार्थिव शरीर के साथ नहीं आ सकता, तो एक अधिकार पत्र (Authorization) देकर भारतीय दूतावास को यह जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। जरूरत पड़ने पर, अगर परिवार को आर्थिक रूप से मदद चाहिए होता हैं, तो भारतीय दूतावास परिजन की स्थिति की जांच कर के सहायता देने पर विचार कर सकता है। इसके लिए परिवार को कुछ अतिरिक्त जानकारी और दस्तावेज देने पड़ सकते हैं।
क्या विदेश, खासकर खाड़ी देशों में शव को दफनाना मुमकिन?
विदेश मंत्रालय के मुताबिक, ऐसा करना मुमकिन है लेकिन ज्यादातर खाड़ी देश सिर्फ मुस्लिम लोगों को ही वहीं दफनाने की इजाजत देते हैं। अगर किसी को विदेश में दफनाना हो, तो उसके परिवार वालों की मंजूरी भी जरूरी होती है। जहां तक गैर-मुस्लिमों की बात है, तो आमतौर पर उनका शव उनके अपने देश वापस भेजा जाता है। अगर किसी का कोई रिश्तेदार या जानने वाला ना हो तो फिर वहां की लोकल अथॉरिटी ही अंतिम फैसला लेती है और जरूरी इंतजाम करती है।
भारत में डेड बॉडी लाने के लिए किन डॉक्युमेंट्स की जरूरत?
- पावर ऑफ अटॉर्नी और परिवार के कानूनी वारिस की लिखित सहमति जिससे यह साफ हो कि पार्थिव शरीर भारत लाने की अनुमति है।
- मौत का क्लिनिकल सर्टिफिकेट जो डॉक्टर द्वारा जारी किया गया, जिसमें मौत की पुष्टि हो।
- एम्बलमिंग सर्टिफिकेट जिससे पता चले कि शव को सुरक्षित तरीके से संरक्षित किया गया है।
- गैर-संचारी (Non-Communicable) बीमारी से मौत का प्रमाण जो यह दिखाने के लिए होती है कि मौत किसी ऐसी बीमारी से नहीं हुई जो फैल सकती हो।
मृत व्यक्ति का पासपोर्ट जिसे रद्द करने के लिए जमा किया जाता है। - भारतीय दूतावास से एनओसी (No Objection Certificate) जिससे बॉडी को भारत लाने की अनुमति मिल सके।
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पार्थिव शरीर को भारत लाने में कितना समय लगता है?
हर देश में पार्थिव शरीर को वापस भेजने की अपनी अलग-अलग प्रक्रियाएं होती हैं। खाड़ी देशों में आमतौर पर इसमें 2 से 4 हफ्ते लग सकते हैं। अगर मौत किसी अप्राकृतिक कारण से हुई हो और जांच चल रही हो, तो इसमें और ज्यादा समय लग सकता है। ऐसी स्थिति में भारतीय दूतावास या वाणिज्य दूतावास स्थानीय अधिकारियों से लगातार संपर्क में रहता है ताकि प्रक्रिया जल्दी पूरी हो सके।
कनाडा की एक वेबसाइट 'कनेडियन फ्यूनरल ऑनलाइन' के मुताबिक, अगर किसी का शव कनाडा से भारत भेजना हो तो वो बहुत महंगा पड़ सकता है। इंटरनेशनल अंतिम संस्कार (फ्यूनरल) शिपिंग का खर्च 10,000 डॉलर से भी ज्यादा हो सकता है। अक्सर यह खर्च 15,000 से 20,000 डॉलर तक पहुंच जाता है। इतनी ज्यादा कीमत की वजह से कई बार परिवार वाले ये खर्च उठा ही नहीं पाते।
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