रूस ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है। तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाला रूस पहला देश है। रूस की ओर से मान्यता दिए जाने के फैसले को अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने 'बहादुरी भरा फैसला' बताया है।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया था। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी को देश छोड़कर भागना पड़ा था। इसके बाद तालिबान ने अपनी सरकार बना ली थी। तब से ही तालिबान अंतर्राष्ट्रीय मान्यता हासिल करने की कोशिश कर रहा था।
यह भी पढ़ें-- जिस बिल पर मस्क से हुई लड़ाई, वह पास; ट्रंप बोले- गोल्डन एज शुरू होगा
रूस ने क्या कहा?
अफगानिस्तान की सत्ता कब्जाने के लगभग 4 साल बाद तालिबान सरकार को किसी देश से मान्यता मिली है। अब रूस में तालिबान सरकार का राजदूत होगा। रूस में गुल हसन हसन अफगानिस्तान के नए राजदूत होंगे। रूस ने एक तस्वीर भी जारी की है, जिसमें रूस के डिप्टी विदेश मंत्री आंद्रे रुदेन्को और अफगान राजदूत गुल हसन हसन साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
रूस ने तालिबानी सरकार को मान्यता देने की जानकारी देते हुए कहा, 'हमारा मानना है कि अफगानिस्तान की इस्लामी अमीरात की सरकार की मान्यता देने से दोनों देशों के बीच अलग-अलग क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ेगा।'
बयान में आगे कहा गया है कि 'हम एनर्जी, ट्रांसपोर्ट, एग्रीकल्चर और इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में व्यापार और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग की संभावनाएं देखते हैं।' रूस ने कहा कि हम आतंकवाद और ड्रग क्राइम के खतरों से निपटने में अफगानिस्तान का सहयोग करेंगे।
यह भी पढ़ें-- ट्रंप अपने 'नए दुश्मन' एलन मस्क को साउथ अफ्रीका भेज पाएंगे? समझिए
तालिबान ने क्या कहा?
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने एक तस्वीर साझा की है, जिसमें उनके साथ काबुल में रूस के राजदूत दिमित्री झेरनोव साथ दिख रहे हैं। मुत्ताकी ने रूस के फैसले को 'बहादुरी भरा' बताया है।
मुत्ताकी ने एक बयान जारी कर कहा, 'यह सकारात्मक रिश्तों और आपसी सम्मान का नया दौर है। रूस का यह फैसला दूसरे देशों के लिए मिसाल बनेगा।' मुत्ताकी ने कहा कि रूस को दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में एक 'मील के पत्थर' के रूप में याद किया जाएगा।
यह भी पढ़ें-- मोनोपोली और कंपीटिशन का खेल जिसमें फंस गया Apple! समझें पूरी कहानी
कभी तालिबान पर को घोषित किया था आतंकी संगठन
रूस और अफगानिस्तान के रिश्ते बड़े जटिल रहे हैं। 1979 में सोवियत संघ (अब रूस) ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया था। करीब 9 साल तक रूस ने यहां जंग लड़ी। ऐसा माना जाता है कि सोवियत सेना के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिका ने ही तालिबान को बनाया था। इस जंग में सोवियत सेना के 15 हजार से ज्यादा जवान मारे गए थे।
वैसे तो तालिबान 1994 में बना था, लेकिन इसमें शामिल ज्यादातर मुजाहिद वही थे, जिन्होंने सोवियत के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका की मदद की थी। साल 2003 में रूस ने तालिबान को आतंकी संगठन घोषित कर दिया था।
हालांकि, बाद में रूस और अफगानिस्तान के रिश्ते थोड़े सुधरे। 2021 में तालिबान के सत्ता में रूस उन देशों में से एक था, जिसने अफगानिस्तान में अपना दूतावास बंद नहीं किया था। पिछले साल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आतंकवाद से लड़ने में तालिबान को 'सहयोगी' बताया था।