मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश सरकार ने उन मीडिया खबरों को खारिज किया है, जिनमें दावा किया गया था कि शेख हसीना के पिता और देश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की स्वतंत्रता सेनानी की मान्यता रद्द कर दी गई है। मुख्य सलाहकार के प्रेस विंग ने फेसबुक पर जारी एक बयान में इन खबरों को ‘पूरी तरह बेबुनियाद, झूठी और भ्रामक’ बताया। बांग्ला भाषा में इस बयान में कहा गया, ‘कई मीडिया में छपी खबरें...जिनमें मंसूर अली और एएचएम कमरुज्जमां सहित सैकड़ों नेताओं की स्वतंत्रता सेनानी की मान्यता रद्द करने की बात कही गई, पूरी तरह झूठी और भ्रामक हैं।’
बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध मामलों के सलाहकार फारूक ई आजम के हवाले से बयान में कहा गया कि मुजीब सरकार में शामिल सभी लोग स्वतंत्रता सेनानी हैं। हालांकि, जो लोग सरकार के कर्मचारी थे, उन्हें सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी कहा जाएगा, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘सहयोगी का मतलब यह नहीं कि उनका सम्मान कम किया गया है।’फेसबुक पोस्ट में लिखा था, ‘स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा 1972 में लागू की गई थी। इसे 2018 और 2022 में बदला गया। स्वतंत्रता सेनानियों और मुक्ति युद्ध के सहयोगियों का सम्मान, गरिमा और सुविधाएं पहले जैसी रहेंगी।’
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अध्यादेश की वजह से फैली अफवाह
यह स्पष्टीकरण एक अध्यादेश को लेकर शुरू हुई कथित अफवाह के बीच आया, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी की परिभाषा को फिर से परिभाषित किया गया और 'मुक्ति युद्ध' सहयोगियों के लिए एक विशेष श्रेणी शुरू की गई।
मीडिया खबरों में यह भी दावा किया गया कि 1970 के चुनाव में चुने गए 400 से अधिक नेताओं, जिन्होंने बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, की मान्यता रद्द कर दी गई है।

ढाका ट्रिब्यून ने बताया कि आजम ने कहा कि मुजीब सरकार के तहत काम करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को अब ‘मुक्ति युद्ध के सहयोगी’ कहा जाएगा, लेकिन इसका मुख्य राजनीतिक नेतृत्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा, उनकी स्थिति वही रहेगी।
सलाहकार ने एक विशेष ब्रीफिंग में बताया कि शेख मुजीबुर रहमान और चारों राष्ट्रीय नेता - सैय्यद नजरूल इस्लाम, ताजुद्दीन अहमद, एम मंसूर अली और एएचएम कमरुज्जमां - का 1971 के मुक्ति युद्ध में अपनी भूमिका के लिए स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा बरकरार रहेगा।
पाकिस्तान से की थी आजादी की घोषणा
अक्सर बांग्लादेश की अस्थायी सरकार या निर्वासित सरकार के रूप में जानी जाने वाली मुजीब सरकार को शेख मुजीबुर रहमान ने संस्थापित किया था और यह भारत के कोलकाता से संचालित होती थी।
इसके शुरू होने के समय सैयद नजरूल इस्लाम कार्यवाहक राष्ट्रपति थे और ताजुद्दीन अहमद प्रधानमंत्री थे। इसे 1971 में तब स्थापित किया गया था, जब बांग्लादेश - उस समय पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था - ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
इस बीच, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक अन्य सलाहकार ने भी फेसबुक पर स्पष्ट किया कि मान्यता रद्द करने की मीडिया खबरें झूठी हैं। 3 जून 2025 के एक आधिकारिक दस्तावेज का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए, सांस्कृतिक मामलों के सलाहकार मुस्तफा सरवर फारूकी ने कहा कि मीडिया खबरें ‘झूठी’ हैं।

उन्होंने लिखा, ‘प्यारे भाइयों और बहनों, शेख मुजीबुर रहमान और ताजुद्दीन अहमद जैसे मुक्ति युद्ध के नेताओं के स्वतंत्रता सेनानी प्रमाणपत्र रद्द करने की खबरें झूठी हैं,’। यह घटनाक्रम तब हुआ जब बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़कर भागने के बाद अस्थिर बनी हुई है और यूनुस सरकार 77 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री पर कार्रवाई कर रही है।
रविवार (1 जून) को बांग्लादेश के प्रॉसीक्यूटर्स ने हसीना पर 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले विद्रोह के दौरान हिंसक कार्रवाइयों में कथित भूमिका के लिए मानवता के खिलाफ अपराधों का आरोप लगाया, जिसके कारण अंततः उन्हें इस्तीफा देने के बाद भारत छोड़कर भागना पड़ा।