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थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद की असली वजह क्या है? पूरी कहानी

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद क्यों बार-बार उभरता है? जानिए प्रीह विहार मंदिर से लेकर हालिया सैन्य झड़पों तक की पूरी कहानी, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक असर।

representational image । Photo Credit: X/@garudazhwar_

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: X/@garudazhwar_

दक्षिण-पूर्वी एशिया में स्थित दो पड़ोसी देश कंबोडिया और थाईलैंड के बीच गुरुवार को हुई हिंसा ने एशिया में युद्ध का एक और फ्रंट खोल दिया है। गुरुवार को दोनों देशों की सेनाओं के बीच हुई गोलीबारी, एयरस्ट्राइक और सैनिकों की मौत जैसी घटनाओं ने पूरे क्षेत्र में अशांति की आशंका को जन्म दे दिया है, लेकिन यह विवाद केवल सीमा रेखा का नहीं है, बल्कि इसकी वजहें ऐतिहासिक, उपनिवेशकालीन और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से गहराई से जुड़ी हैं

 

कंबोडिया का आरोप है कि थाईलैंड उसकी सीमा में अतिक्रमण कर रहा है, जबकि थाईलैंड का दावा है कि कुछ क्षेत्र उसके अधिकार में आते हैं और कंबोडिया जानबूझकर उन क्षेत्रों को लेकर आक्रामक रवैया अपना रहा है। कंबोडिया ने इस मुद्दे को एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में ले जाने का निर्णय लिया है, वहीं थाईलैंड द्विपक्षीय संवाद और संयुक्त सीमा आयोग (Joint Boundary Commission - JBC) के माध्यम से समाधान की वकालत कर रहा है। दोनों देशों के बीच बढ़ते विवाद ने अब इस पर एक बार फिर से चर्चा छेड़ दी है।

 

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इस लेख में खबरगांव आपको बताएगा कि कंबोडिया-थाईलैंड सीमा विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है और अब तक क्या घटनाएं हुईं हैं? इसके अलावा इसे लेकर दोनों देशों के दृष्टिकोण, सैन्य कार्रवाई और संभावित भविष्य के बारे में भी चर्चा करेंगे।

क्या है विवाद की जड़

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच 508 मील (817 किलोमीटर) की ज़मीन की सीमा है, जिसका ज़्यादातर हिस्सा 20वीं सदी की शुरुआत में फ्रांसीसी औपनिवेशिक नक्शों से तय हुआ था। दोनों देशों ने कई बार शांति से सहयोग किया, लेकिन सीमा पर बार-बार तनाव हुआ, खासकर प्राचीन मंदिरों जैसे प्रीह विहार, ता मोआन थोम और ता मुएन थोम के आसपास, जो घने जंगलों और ऊबड़-खाबड़ इलाकों में हैं।

 

मुख्य विवाद प्रीह विहार मंदिर को लेकर है, जो 9वीं सदी का एक हिंदू मंदिर है और खमेर साम्राज्य के दौरान डैंग्रेक पहाड़ों की चट्टान पर बनाया गया था। यह मंदिर भौगोलिक रूप से थाईलैंड के करीब है, लेकिन 1962 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने फैसला दिया कि यह मंदिर कंबोडिया का है। थाईलैंड ने फैसला मान लिया, लेकिन मन में नाराज़गी रही।

 

2008 में तनाव फिर बढ़ा जब कंबोडिया ने प्रीह विहार को UNESCO विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिलवाया। थाईलैंड ने इसका विरोध किया, क्योंकि नक्शे में मंदिर के आसपास 4.6 वर्ग किमी का विवादित क्षेत्र शामिल था। इससे थाईलैंड में राष्ट्रवादी प्रदर्शन हुए, संसद में हंगामा हुआ और सीमा पर हिंसक झड़पें हुईं।

 

2008 से 2011 तक यह विवाद कई बार हिंसक हुआ, जिसमें 2011 में एक हफ्ते में हुई गोलीबारी में कम से कम बारह लोग मारे गए और दोनों देशों के हज़ारों गांव वाले भागने को मजबूर हुए। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमला करने और संप्रभुता तोड़ने का आरोप लगाया।

 

2013 में ICJ ने स्पष्ट किया कि प्रीह विहार मंदिर के आसपास का क्षेत्र भी कंबोडिया का है और थाई सैनिकों को वहां से हटने का आदेश दिया। थाईलैंड ने आदेश माना, लेकिन नक्शों, सैन्य गश्त और संप्रभुता के निशानों को लेकर असहमति बनी रही।

 

प्रीह विहार के अलावा, ता मोआन थोम और ता मुएन थोम जैसे अन्य प्राचीन मंदिर, जो थाईलैंड के सुरिन प्रांत में कंबोडिया के ओड्डार मीनचे के पास हैं, भी विवाद का कारण बने। ये मंदिर अस्पष्ट सीमा पर हैं और दोनों देशों के लिए राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक महत्व रखते हैं।

 

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अविश्वास गहरा है

सीमा विवाद सिर्फ़ नक्शे की रेखाओं का मसला नहीं है। यह राष्ट्रवाद, इतिहास और संप्रभुता से जुड़ा है। यह मंदिर सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनका खमेर सभ्यता से गहरा रिश्ता है। कंबोडिया को लगता है कि इन जगहों पर थाईलैंड की मौजूदगी एक तरह का नव-औपनिवेशिक अतिक्रमण है। वहीं, थाईलैंड का कहना है कि कंबोडिया UNESCO जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का इस्तेमाल करके अवसरवादी तरीके से ज़मीन हड़प रहा है।

 

1962 के ICJ के फैसले और 2013 के स्पष्टीकरण में कंबोडिया को प्रीह विहार मंदिर और उसके आसपास का नियंत्रण मिला, लेकिन आसपास के बफर ज़ोन को लेकर विवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। दोनों देशों की संयुक्त समितियों और ASEAN की मध्यस्थता से सीमा निर्धारण की कोशिशें बार-बार रुकीं, क्योंकि दोनों देशों में आंतरिक राजनीतिक दबाव बढ़ गया।

2025 के ताजा घटनाक्रम

फरवरी 2025 में विवाद ने एक बार फिर तब तूल पकड़ा जब कंबोडियाई सैनिकों ने कथित तौर पर 25 सिविलियन्स को एस्कॉर्ट किया जिन्होंने Ta Muen Thom मंदिर परिसर में राष्ट्रगान गाया और वहां थाई प्रतीकों को हटाने की कोशिश की। थाईलैंड ने इसे उकसावे की कार्रवाई बताया।

 

27-28 मई को Emerald Triangle (Chong Bok क्षेत्र) में हुई झड़प में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर संघर्ष शुरू करने का आरोप लगाया। इसके बाद जून में कंबोडिया ने घोषणा की कि वह सीमा विवाद को लेकर ICJ में औपचारिक शिकायत करेगा।

 

14-15 जून को JBC की बैठक में कंबोडिया ने आरोप लगाया कि थाईलैंड ने सीमा क्षेत्र में हथियार, खाई और अवैध संरचनाएं तैनात की हैं। कंबोडिया ने ड्रोन गतिविधियों और आक्रामक सैनिक गश्त को भी मुद्दा बनाया। हालांकि थाईलैंड ने इन आरोपों को खारिज किया और संयम बरतने की बात कही।

 

24 जुलाई 2025 को संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया जब प्रीह विहार मंदिर क्षेत्र में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोलीबारी हुई, जिसमें कई लोग घायल हुए। कथित तौर पर थाईलैंड ने F-16 फाइटर जेट्स का इस्तेमाल किया और कंबोडियाई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। इसके बाद दोनों देशों ने अपने-अपने राजदूतों को निष्कासित कर दिया।


इस विवाद ने दोनों देशों के घरेलू राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित किया है। थाईलैंड में सरकार पर राष्ट्रवादी दबाव है, जो सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा है। दूसरी ओर कंबोडिया में प्रधानमंत्री हुन मानेट की सरकार पहली बार सीमा विवाद को लेकर सख्त रुख अपना रही है।

 

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कितना गहरा है विवाद?

इस संघर्ष की गंभीरता केवल सैन्य झड़पों तक सीमित नहीं है। सीमा क्षेत्रों में रहने वाले हजारों नागरिक विस्थापित हो चुके हैं। व्यापारिक मार्ग बंद हो गए हैं जिससे दोनों देशों की सीमावर्ती अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। थाईलैंड ने फलों और वस्तुओं के आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है, जिससे कंबोडिया की स्थानीय अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है।

 

इसके हाल ही में थाईलैंड ने आरोप लगाया कि कंबोडिया ने बॉर्डर एरिया में लैंडमाइन बिछाईं जिससे उसके सैनिक मारे गए। दोनों देश इस पर एक-दूसरे को दोष दे रहे हैं, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ चुकी है। कंबोडिया और थाईलैंड का यह विवाद केवल दो देशों की सीमा का सवाल नहीं है, बल्कि यह पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया की स्थिरता के लिए एक चुनौती बन चुका है। 

 

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