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'ट्रंप के PM मोदी को 4 कॉल', छापने वाले जर्मन अखबार की कहानी क्या है?

जर्मन अखबार FAZ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को 4 बार कॉल किया था लेकिन उन्होंने उठाया नहीं। ऐसे में जानते हैं कि इस अखबार की कहानी क्या है?

trump modi call

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 4 बार फोन लगाया लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी उनसे बात नहीं की। यह दावा जर्मन अखबार 'FAZ' ने किया है। जर्मन अखबार FAZ ने यह दावा ऐसे वक्त किया है, जब टैरिफ को लेकर भारत और अमेरिका के बीच जबरदस्त तनाव है। FAZ ने यह रिपोर्ट 26 अगस्त को छापी थी।


इस रिपोर्ट में FAZ ने दावा किया है कि हालिया हफ्तों में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को 4 बार फोन मिलाया था लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हालांकि, इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि यह फोन कॉल किस तारीख को किए गए थे। 


रिपोर्ट कहती है कि फोन कॉल न उठाना प्रधानमंत्री मोदी की 'नाराजगी' को दिखाता है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया है कि अमेरिका के साथ प्रधानमंत्री मोदी सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं।

अखबार ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा?

FAZ ने इस खबर की हेडिंग दी है- 'Trump calls, but Modi doesn't answer' यानी 'ट्रंप ने फोन किया, लेकिन मोदी ने जवाब नहीं दिया'।


इस खबर की शुरुआत में लिखा है, 'अब तक, अमेरिकी राष्ट्रपति ने टैरिफ विवाद में अपने सभी विरोधियों को हरा दिया है लेकिन भारत नहीं हारा। इसकी बजाय भारत अपने शक्तिशाली पड़ोसी देश चीन की ओर रुख कर रहा है और पुराने जख्मों को नजरअंदाज कर रहा है।'

 


अखबार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि पीएम मोदी 'नाराज' हैं।  रिपोर्ट में कहा गया है, 'ट्रंप बार-बार पीएम मोदी को अपना रुख बदलने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन पीएम मोदी अभी भी बात करने से इनकार कर रहे हैं, जो न सिर्फ उनकी नाराजगी दिखाता है बल्कि उनके सावधानी से आगे बढ़ने की ओर भी इशारा करता है।'


इस सावधानी बरतने का कारण बताते हुए FAZ लिखता है, 'ट्रंप ने वियतनाम के फर्स्ट सेक्रेटरी टो लैम से अमेरिका-वियतनाम के बीच ट्रेड डील को लेकर बातचीत थी। इस बातचीत में किसी समझौते पर सहमति नहीं बनी लेकिन ट्रंप ने समझौता होने का ऐलान कर दिया।' अखबार लिखता है कि 'मोदी उसी जाल में फंसना नहीं चाहते हैं।'

 

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मगर यह FAZ है क्या?

FAZ यानी फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन जिटुंग। यह जर्मनी का एक प्रतिष्ठित अखबार है। इसकी शुरुआत 1949 में हुई थी। इसका हेडक्वार्टर जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में है।


इस अखबार का पहला एडिशन 1 नवंबर 1949 को छपा था। इसके फाउंडिंग एडिटर में हैंस बॉमगार्टन, एरिक डोमब्रोव्स्की, कार्ल कोर्न, पॉल सेथे और एरिक वेल्टर शामिल हैं। 


जब यह अखबार आया तो कहा गया कि यह जर्मन अखबार 'फ्रैंकफर्टर जिटुंग' का ही नया रूप है, जिस पर 1943 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इसे शुरू करने वाले कई संपादक पहले फ्रैंकफर्टर जिटुंग के साथ काम करते थे। हालांकि, अखबार के पहले एडिशन में FAZ ने इसे खारिज कर दिया था।


इसे जर्मनी का सबसे प्रतिष्ठित और विश्वसनीय अखबार माना जाता है। इसे कंजर्वेटिव माना जाता है। शुरुआत के कई सालों तक यह अखबार सिर्फ जर्मन शहर मेंज में ही छपता और बिकता था लेकिन धीरे-धीरे इसका सर्कुलेशन बढ़ा।
  

इसके नाम में 'Allgemeine' या 'ऑलगेमाइन' इसलिए लिखा गया है, क्योंकि इसका मतलब होता है 'सबके लिए'। यह हफ्ते में 6 दिन छपता है। रविवार को इसका एक अलग एडिशन छपता है।


दिसंबर 1999 में एंजेला मार्केल ने FAZ में एक लेख भी लिखा था। इसमें उन्होंने अपने विरोधियों को निशाना बनाया था। 6 साल बाद 2005 में एंजेला मार्केल जर्मनी की चांसलर बन गई थीं।

 

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इसका मालिक कौन है?

यह पूरी तरह से प्राइवेट कंपनी है। इसका मालिकाना हक Fazit-Stiftung नाम की फाउंडेशन के पास है, जिसे FAZIT Foundation भी कहा जाता है। FAZ के संस्थापकों ने 1959 में इस फाउंडेशन को शुरू किया था। इस कंपनी का 93.7% शेयर इसी फाउंडेशन के पास है। 


इस फाउंडेशन को इसलिए बनाया गया था, ताकि अखबार को 'स्वतंत्र' रखा जा सके। इसका आइडिया एरिक वेल्टर का था। 25 अप्रैल 1959 को FAZ ने छापा था, 'सरकार, राजनीतिक पार्टियों और कारोबारियों से FAZ की आजादी की रक्षा के लिए एक फाउंडेशन की स्थापना की गई है, जो अब से FAZ का प्रबंधन करेगा।'

 


इसकी वेबसाइट के मुताबिक, FAZIT फाउंडेशन में ज्यादा से ज्यादा 9 शेयरहोल्डर यानी ट्रस्टी हो सकते हैं। फिलहाल, इस फाउंडेशन में 8 ट्रस्टी हैं। इसके दो मैनेजिंग डायरेक्टर भी हैं।


खास बात यह है कि इसके शेयरहोल्डर अपनी हिस्सेदारी न तो किसी को बेच सकते हैं और न ही किसी से खरीद सकते हैं। फाउंडेशन के ट्रस्टी ही तय करते हैं कि इसका शेयरहोल्डर कौन हो सकता है। किसी सदस्य के रिटायरमेंट पर नए ट्रस्टी को चुना जाता है।

 

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प्रतिबंध का भी सामना कर चुका है FAZ

FAZ अपनी स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए जाना जाता है। कई बार इस अखबार पर बैन भी लग चुका है। यह अखबार जर्मनी के अलावा और भी कई देशों में बिकता है। 


2006 में इस्लाम के कथित अपमान पर इसे मिस्र में बैन कर दिया था। फरवरी 2008 में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून छापने पर इसे फिर से मिस्र में बैन कर दिया गया था।


जुलाई 2019 में भी FAZ को चीन में ब्लॉक कर दिया गया था। FAZ का मानना था कि यह इसलिए हुआ था क्योंकि उसने 2019-20 में हॉन्गकॉन्ग के विरोध प्रदर्शनों पर चीनी सरकार की आलोचना की थी।


हालांकि, समय के साथ इसके सर्कुलेशन में कमी आई है। 2001 में इसकी 4 लाख से ज्यादा कॉपियां रोक बिकती थीं। माना जाता है कि अब इसकी लगभग 2 लाख कॉपियां ही बिकती हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह अखबार 148 देशों में बिकता है।

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